Kali Poster Controversy: TMC सांसद ने देश छोड़ने की जताई इच्छा, अहम् सवाल आम भारतीय कहां जाए?
Kali Poster Controversy: TMC सांसद ने देश छोड़ने की जताई इच्छा, अहम् सवाल आम भारतीय कहां जाए?
काली पोस्टर विवाद में जितेंद्र उपाध्याय की तल्ख टिप्पणी
Kali Poster Controversy: फिल्ममेकर लीना मणिमेकलाई की डॉक्युमेंट्री फिल्म काली के पोस्टर पर अपने विवादित बयान को लेकर चर्चा में आई टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के एक और ताजा बयान से राजनीतिक माहौल और गरम हो गया है। भाजपा पर हमला करते हुए कहा है कि मैं ऐसे भारत नहीं रहना चाहती जहां पितृसत्तात्मक ब्राम्हणवाद सोच हावी हो। अब सवाल उठता है कि लंदन में बैंकर के कैरियर में उंची ओहदा हासिल करने के बावजूद उसे ठुकरा कर अपने यहां के समाज व राजनीति में बदलाव करने का संकल्प लेकर भारत लौटी महुआ मोइत्रा आखिर पीछे क्यों हट रही हैं।
यह सच है कि विदेशों में रहकर उच्च शिक्षा हासिल कर अच्छी नौकरी करनेवाली महुआ मोइत्रा तो अपने सुख सुविधा व ऐशो आराम वाली जिंदगी में पुनः लौट सकती हैं,लेकिन समाज व राजनीति में बदलाव लाने का लोगों को भरोसा दिलाकर पश्चिम बंगाल की विधान सभा से लेकर संसद तक का सफर तय करनेवाली महुआ की जनता का क्या होगा। आखिर इस प्रतिकुल हालात का मुकाबला किए बिना आम भारतीय कहां जाए।
इन सवालों का जवाब ढुढने के पहले जानते हैं टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के बचपन से लेकर जवानी तक के किस्से। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में जन्मीं महुआ का शुरुआती जीवन असम और कोलकाता में बीता। लेकिन 15 साल की उम्र में वह अपने परिवार के साथ अमेरिका शिफ्ट हो गईं। इसके बाद अर्थशास्त्र की पढ़ाई की और न्यूयॉर्क में बैंकर की नौकरी शुरू कर दी। उन्होंने न्यूयॉर्क और लंदन में जेपी मॉर्गन चेज के लिए एक निवेश बैंकर के रूप में काम किया। वह कंपनी की वाइस प्रेसीडेंट बना दी गईं। करियर में शीर्ष पर होने के बावजूद वह सबकुछ छोड़ 2009 में भारत वापस लौट गईं और फिर यहां राजनीति में भाग्य आजमाया। इस दौरान उन्होंने कहा था कि भारत की राजनीति व समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए काम करना चाहती हूं। यहां वह भारतीय युवा कांग्रेस से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की। जहां वह आम आदमी का सिपाही परियोजना में राहुल गांधी की भरोसेमंदों में से एक थीं। 2010 में, वह तृणमूल कांग्रेस पार्टी में चली गईं। वह 2016 में हुए विधान सभा चुनावों में पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के करीमपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गईं। 2019 आम चुनावों में वह कृष्णानगर से 17वीं लोकसभा के लिए संसद सदस्य के रूप में चुनी गई। 13 नवंबर 2021 को, उन्हें 2022 गोवा विधानसभा चुनाव के लिए टीएमसी पार्टी के गोवा प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया है।
एक बंगाली हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मी महुआ मोइत्रा का कोलकाता में एक बहुसांस्कृतिक परवरिश में प्रारंभीक जीवन बीता। उनके पड़ोसी पारसी थे और उन्होंने उनके साथ नॉरूज मनाया। वह डेनमार्क में रही, उसके पूर्व पति डेनिश फाइनेंसर लार्स ब्रोरसन थे। मोइत्रा ने खुद ही इस बारे में खुलासा किया था कि उन्होंने डेनिश फाइनेंसर लार्स ब्रॉर्सन से शादी की थी। हालांकि, यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली और उन दोनों के बीच तलाक हो गया। महुआ अब तलाकशुदा हैं और दिल्ली में रहती हैं।
टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा राजनीति में आने के बाद से अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रही हैं। संसद के अंदर व बाहर उनके द्वारा समय समय पर दिए गए बयानों से एक बात साफ है कि वह ब्राम्हणवादी व पुरूषवादी मानसिकता के खिलाफ लड़ने में किसी हद तक जाने की बात करती हैं। जिसके चलते यह हमेशा भाजपा के निशाने पर रही हैं। इसे और विस्तार से जानने के लिए उनके बयानों को जानते हैैं।
बयानों को लेकर सुर्ख़ियों में रही महुआ मोइत्रा
दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में कुत्ता टहलाने को लेकर विवादों में आए आईएएस का अरुणाचल प्रदेश ट्रांसफर करने के बाद महुआ मोइत्रा ने इस कार्रवाई को पूर्वोत्तर का अपमान बताया था। ट्वीट किया था कि पूर्वोत्तर राज्य में तबादला कर गृह मंत्रालय ने बता दिया है कि ये राज्य उसकी नजर में कचरा फेंकने का मैदान हैं।
महुआ मोइत्रा ने गुजरात के नगरपालिका क्षेत्रों में मीट बैन का मुद्दा उठाया था। लोकसभा में उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा था, "आप केवल हमारे वोटों से संतुष्ट नहीं हैं। आप हमारे सिर के अंदर, घरों के अंदर जाना चाहते हैं। आप हमें बताना चाहते हैं कि क्या खाएं, क्या पहनें, किससे प्यार करें। आप उस भारत से डरते हैं, जहां एक जैन लड़का घर से छिपकर अहमदाबाद की सड़क पर ठेले से काठी कबाब खाता है।" इस पर जैन समुदाय ने आपत्ति जताई थी।
फरवरी 2021 में लोकसभा में महुआ ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को लेकर टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था, न्यायपालिका कभी गाय जितनी पवित्र थी वह अब पवित्र नहीं रही। न्यायपालिका उसी दिन अपवित्र हो गई थी जिस दिन एक चीफ जस्टिस पर यौन शोषण का गंभीर आरोप लगा था। लेकिन उसने न इस्तीफा दिया, न ही अपने मुकदमे से दूर रहा। जेड प्लस सुरक्षा के साथ रिटायर होने के बाद उसे राज्यसभा की सदस्यता मिल गई। इस बयान पर भी खूब हंगामा हुआ था।
दिसंबर 2020 में कोलकाता में टीएमसी की एक बैठक के दौरान सांसद महुआ मोइत्रा ने मीडिया को लेकर भी विवादित बयान दिया था। उन्होंने कहा था, "किसने यहां दो पोइसर (दो पैसे) वाली प्रेस को बुलाया है? इन्हें यहां से हटा दें। हमारी पार्टी के कुछ सदस्य टीवी पर अपना चेहरा दिखाने के लिए ऐसे लोगों को बंद-दरवाजे की बैठकों में बुलाते हैं। यही नहीं होना चाहिए।"
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों के दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान सीएम ममता बनर्जी को 'दीदी!ओ दीदी' कह कर संबोधित किया था। इसके बाद टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने पीएम मोदी को रौकेर छेले कहकर संबोधित किया था। उन्होंने कहा था, "बंगाल में कुछ लोग होते हैं, जिन्हें 'रौकेर छेले' कहा जाता है। इसका मतलब वैसे लड़कों से होता है, जो सड़क किनारे बैठकर आती-जाती हर महिला को 'दीदी ए दीदी' कहकर पुकारते हैं।
संसद में 10 मिनट के भाषण से आई थी चर्चा में
लोकसभा में महुआ मोइत्रा ने हिंदी के कवि रामधारी सिंह दिनकर, उर्दू के शायर राहत इंदौरी और आजादी की लड़ाई लड़ने वाले सेनानी मौलाना आजाद का जिक्र करते हुए जो भाषण दिया, बीजेपी को जिस तरह घेरा, उसकी खूब चर्चा हुई थी। एनआरसी, बेरोजगारी, फेक न्यूज, मीडिया की स्वतंत्रता, किसान, राष्ट्रवाद समेत तमाम मुद्दों पर उन्होंने अपने तथ्यों और तर्कों से बीजेपी सरकार की जमकर आलोचना की थी। 2019 लोकसभा चुनाव के बारे में महुआ मोइत्रा ने कहा कि ये पूरा चुनाव वॉट्सऐप और फेक न्यूज पर लड़ गया। उन्होंने 7 बिंदुओं के जरिए बताने की कोशिश की थी कि कैसे बीजेपी सरकार का रवैया तानाशाही है। मजबूत और कट्टर राष्ट्रवाद से देश के सामाजिक ताने-बाने को आधात पहुंचा है। इस तरह के राष्ट्रवाद का नजरिया काफी संकीर्ण और डराने वाला है। देश में मानव अधिकारों के हनन की कई घटनाएं घट चुकी हैं. सरकार के हर स्तर पर मानव अधिकारों का हनन हो रहा है। देश में ऐसा माहौल बनाया गया है जिसमें नफरत के आधार पर हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं।
महुआ ने संसद में मीडिया के सरकारी नियंत्रण पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि मीडिया को उस हद तक नियंत्रित किए जाने की कोशिशें हो रही हैं जितना सोचा भी नहीं जा सकता। देश में राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर शत्रु खड़ा करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। 'हर कोई इस बेनामी 'काले भूत' से डर रहा है। सरकार और धर्म के एक दूसरे से संबंधो पर भी उन्होंने सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा कि सिटिजन अमेंडमेंट बिल के जरिए एक खास समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। इस सरकार ने सभी बुद्धिजीवियों और कलाकारों का तिरस्कार किया है। मोदी सरकार ने विरोध को दबाने की सारी कोशिशें की हैं। उन्होंने दावा किया 2019 के चुनावों में 60 हजार करोड खर्च हुए और सिर्फ एक पार्टी ने इसका 50 फीसदी खर्च किया।
टीएमसी सांसद के ताजा बयान पर मचा है बवेला
फिल्ममेकर लीना मणिमेकलाई की डॉक्युमेंट्री फिल्म काली के पोस्टर (ज्ञंसप को लेकर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस पोस्टर में मां काली को सिगरेट पीते दर्शाया गया है। पोस्टर को लेकर प्रतिक्रिया पूछे जाने पर महुआ मोइत्रा ने कहा, मेरे लिए मां काली के कई रूप हैं। मेरे लिए काली का मतलब मांस और शराब स्वीकार करने वाली देवी है। लोगों की अलग-अलग राय होती है। मुझे इसे लेकर कोई परेशानी नहीं है।"
भाजपा पर हमला करते हुए कहा है कि मैं ऐसे भारत नहीं रहना चाहती जहां पितृसत्तात्मक ब्राम्हणवाद सोच हावी हो। हिंदू धर्म की भावनाएं आहत करने को लेकर फिल्ममेकर के खिलाफ कई राज्यों में मामले दर्ज कराए जा चुके हैं। महुआ मोइत्रा के इस बयान से टीएमसी के किनारा करने के बाद मोइत्रा ने भी टीएमसी को ट्विटर पर अनफॉलो कर दिया है।
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने किया टीएमसी सांसद का बचाव
शशि थरूर ने कहा है कि महुआ मोइत्रा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिश नहीं कर रही थीं। आज देश में ऐसी स्थिति बन चुकी है कि धर्म के किसी पहलू पर कोई कुछ भी नहीं बोल सकता है। कांग्रेस नेता बोले हैं कि वह महुआ मोइत्रा पर हुए हमले से अचंभित हैं। उन्होंने वही कहा जो सभी हिंदू जानते हैं। हमारे यहां पूजा का रूप अलग-अलग है। भक्त भोग के रूप में जो कुछ चढ़ाते हैं, वह देवी से ज्यादा उनके बारे में बताता है। कांग्रेस नेता बोले कि हम ऐसी स्टेज पर आ चुके हैं जहां धर्म के किसी पहलू के बारे में कुछ भी सार्वजनिक तरीके से बोला नहीं जा सकता है। यह लाजिमी है कि महुआ मोइत्रा किसी की भावनाओं को आहत नहीं करना चाहती थीं।
अब सवाल उठता है कि अगर ऐसे भारत में महुआ मोइत्रा नहीं रहना चाहती हैं तो उनके राजनीति में आने के दौरान किए गए वादों का क्या होगा। आखिर यहां के लोगों ने इन्हें सदन में इसी विश्वास के साथ तो भेजा कि राजनीति को बदलने का वह कार्य करेंगी। तब आखिर धार्मिक कटटरता से लेकर मनुवादी विचार व उनकी मान्यताओं के खिलाफ कैसे लड़ाई आगे बढ़ेगी। पश्चिम बंगाल की वरिष्ठ पत्रकार पुनम मसीह कहती हैं कि किसी के धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। लेकिन ब्राम्हणवाद व समाज को जाति व धर्म के विवादों में फंसाकर पीछे ढकेलने की कोशिश का विरोध होना चाहिए। इस प्रतिरोध की राजनीति के साथ खड़ा होने का यह वक्त है, न की पीछे हटकर मैदान छोड़ देने का। ऐसी बात करनेवाले राजनीतिज्ञों व उनके विचारधाराओं का विरोध होना चाहिए।