Kapil Sibal Quits Congress : कांग्रेस की डाल से एक और पका फल टूटा, विपक्ष ने थाम लिया
Kapil Sibal Quits Congress : कांग्रेस की डाल से एक और पका फल टूटा, विपक्ष ने थाम लिया
सौमित्र रॉय का विश्लेषण
Kapil Sibal Quits Congress : कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने वाले 23 असंतुष्ट नेताओं में से एक कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने बुधवार को कांग्रेस से किनारा कर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राज्यसभा का नामांकन (Kapil Sibal Rajyasabha Nomination) भरा। इस तरह कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर के 10 दिन के भीतर पार्टी की डाल से एक और पका फल टूट गया। फर्क केवल इतना है कि इस फल को सत्ता ने नहीं, बल्कि विपक्ष ने थामा।
कपिल सिबल ने कांग्रेस (Congress) छोड़ने का ऐलान करते हुए कहा कि वे पार्टी की स्थापित परंपराओं का निर्वाह करते हुए आलोचना नहीं करेंगे। लेकिन उन्होंने 16 मई को ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। यानी उदयपुर चिंतन शिविर (Congress Chintan Shivir) खत्म होने के फौरन बाद। सिबल देश के जाने-माने वकील हैं और संसद में बीजेपी सरकार (BJP Govt) से असहमत सबसे मुखर नेताओं में से एक रहे हैं। इससे पहले पंजाब कांग्रेस (Punjab Govt) से सुनील जाखड़ और पार्टी की गुजरात इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था। बीते 10 दिन में पार्टी छोड़ने वाले सिबल तीसरे नेता हैं।
सिबल ने क्यों दिया इस्तीफा ?
मंगलवार को ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में राजनीतिक मामलों के समूह का गठन किया था। समूह में पार्टी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन और संगठनात्मक बदलाव की मांग करने वाले G 23 समूह के असंतुष्ट नेताओं में से दो- गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) और आनंद शर्मा (Anand Sharma) को जगह दी थी। इससे यह तय हो गया था कि पार्टी इन दोनों नेताओं को राज्यसभा (Rajya Sabha) भेजेगी। सोनिया ने उदयपुर चिंतन शिविर में किए गए ऐलान के तहत ही यह कदम उठाया था। सोनिया ने 2024 के आम चुनाव के लिए पार्टी के टास्क फोर्स का भी गठन किया है। दोनों ही समितियों में सिबल का नाम नहीं था। बुधवार को पार्टी छोड़ते हुए सिबल ने कहा कि उनका इस्तीफा तो 16 मई से ही अध्यक्ष के पास लंबित था। इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेस को सिबल के जाने का कोई दुख नहीं है और कहीं न कहीं इसीलिए पार्टी ने उन्हें मनाने की कोशिश नहीं की।
कांग्रेस के राजनीतिक मामलों के समूह में आजाद और शर्मा के साथ ही अंबिका सोनी, दिग्विजय सिंह, केसी वेणुगोपाल और असम के प्रभारी महासचिव जितेंद्र सिंह के भी नाम थे। जितेंद्र सिंह युवा नेता हैं और उन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। सोनिया गांधी ने इस समूह को केवल सलाहकार परिषद का दर्जा दिया है, जो कांग्रेस आलाकमान- यानी पार्टी अध्यक्ष को सलाह देगा। यानी पार्टी के संसदीय बोर्ड को पुर्नस्थापित करने, सामूहिक और समावेशी नेतृत्व की स्थापना की G 23 की मांग को सिरे से खारिज कर गांधी परिवार के पार्टी पर नियंत्रण को और मजबूत करने की कोशिश की गई है।
अभी डाल से और भी पके फल टूट सकते हैं!
कांग्रेस पार्टी के एक आला नेता ने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की इस पूरी कवायद को 'बकवास' करार देते हुए कहा कि यह बिल्कुल ऐसा ही है, जैसे भरभराकर गिरते खंडहर की नींव मजबूत करने के बजाय उसे बाहर से पेंट कर सजा दिया जाए। राजनीतिक मामलों का समूह केवल एक सलाहकार की भूमिका निभाएगा- जिसका कोई मतलब नहीं है। सोनिया के टास्क फोर्स में सुनील कानुगोलू को छोड़कर तमाम नेता गांधी परिवार के भक्त हैं। कानुगोलू को चुनावी रणनीतिकार के रूप में जगह दी गई है, जो पहले प्रशांत किशोर की टीम में थे। मतलब यह हुआ कि प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) कांग्रेस का हिस्सा न होकर भी कहीं न कहीं पार्टी की 2024 की चुनावी रणनीति का हिस्सा जरूरत बने रहेंगे।
उदयपुर चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी में जिन दो अहम समूहों की घोषणा की है, उनमें सिबल के अलावा एक और वरिष्ठ नेता एके एंटनी का भी नाम गायब है। सितंबर 2020 में जब G 23 ने बगावत के सुर साधे थे, तब सोनिया गांधी ने इसी तरह 6 समितियों का गठन किया था, जिसमें एंटनी भी शामिल थे। एंटनी ने इसी साल अप्रैल में कहा था कि वे राष्ट्रीय राजनीति से संन्यास लेने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
सवाल क्या केवल राज्यसभा सीट का है ?
चाय में थोड़ी अदरक मजा दोगुना कर देती है। लेकिन अगर वही अदरक ज्यादा मात्रा में डाली जाए तो उससे चाय का स्वाद कड़वा हो जाता है। कांग्रेस लगातार चुनाव हार रही है, लेकिन उन्हीं हारे हुए नेताओं को ही अहम जिम्मेदारी भी सौंपी जा रही है। इससे G यानी जिंजर (अदरक) ही कड़वा हो चुका है। केवल दो राज्यों की सत्ता में सिमट चुकी कांग्रेस पार्टी के पास 9-10 राज्यसभा सीटें ही बाकी हैं। ऐसे में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी अपनी चाय को और कड़वा नहीं करना चाहतीं। कपिल सिबल ने यह भांप लिया था, इसलिए उन्होंने बजाय सत्ता की आवाज बनने के, निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में ऊपरी सदन जाना ज्यादा बेहतर समझा। सिबल ने उदयपुर चिंतन शिविर से भी दूरी बनाए रखी। ठीक वैसे ही, जैसे उन्होंने G 23 नेताओं के साथ पार्टी के संवाद से भी किनारा किया था।
पिछले साल सितंबर में सिबल ने मीडिया से कहा था कि कांग्रेस का कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। यह बात कौन नहीं जानता कि बिना जबावदेही के पार्टी में फैसले कौन ले रहा है। सिबल के इस बयान पर उनके घर जरूर अंडे-टमाटर फेंके गए, लेकिन उनके बयान सच्चाई सर्वविदित है कि राहुल गांधी ही पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ने के बाद भी अहम फैसले ले रहे हैं।
फिलहाल, स्थिति यह है कि 137 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी में लगातार होते इस्तीफों को लेकर देश में सबसे बड़ा सवाल यह है कि पार्टी को कांग्रेस के नाम से बुलाएं या गांधी परिवार के नाम से ? सिबल ने इस सवाल को अपने इस्तीफे से फिर कुरेदा है और शायद आगे कुछ और नेता इसी सवाल पर पार्टी छोड़ दें। जख्म को बार-बार कुरेदने से वह नासूर बन जाता है। लगता है कांग्रेस नेतृत्व यही चाहती भी है।