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विमर्श

मर्सिडीज खरीदने सिर्फ 6 % ब्याज और ट्रैक्टर पर 14 से 28 फीसदी वसूल रही सरकार !

Janjwar Desk
14 Aug 2025 7:18 PM IST
मर्सिडीज खरीदने सिर्फ 6 % ब्याज और ट्रैक्टर पर 14 से 28 फीसदी वसूल रही सरकार !
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ट्रैक्टर के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा दिया जाने वाला ब्याज दर अत्यधिक है। छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद), महाराष्ट्र में कॉर्पोरेट क्षेत्र के निदेशक-प्रबंधकों को 100 मर्सिडीज गाड़ियों की खरीद के लिए राष्ट्रीयकृत बैंक से मात्र 6% ब्याज दर पर ऋण मिला, जबकि ट्रैक्टर और कृषि उपकरणों के लिए ब्याज दर 14% से लेकर 28% तक है...

अखिल भारतीय किसान महासभा के अध्यक्ष राजन क्षीरसागर की टिप्पणी

ट्रैक्टर दिल्ली की बॉर्डर पर हुए ऐतिहासिक आंदोलन में किसानों की निशानी के रूप में एक प्रतिकार का रूपक बनकर उभरा। हरित क्रांति की पृष्ठभूमि में ट्रैक्टर का उपयोग पूरे देश में बढ़ता रहा। हाल के समय में बैलों का पालन-पोषण दिन-ब-दिन कठिन होता जा रहा है।

पुराने समय में दरवाजे पर जो खूबसूरत बैल जोड़ी होती थी, वह समृद्धि का चिन्ह मानी जाती थी। देखते-देखते इस बैल जोड़ी की जगह ट्रैक्टर ने ले ली। बढ़ते चारे के खर्च, देखभाल के लिए आवश्यक शारीरिक श्रम, नकदी फसलों की मांग के कारण कई छोटे किसानों के लिए बैल रखना संभव नहीं रहा। इसके बजाय, किराये के ट्रैक्टर से बुवाई और अन्य कार्य कराना धीरे-धीरे बढ़ती आदत बन गई। इससे गांवों में ट्रैक्टर धारकों की संख्या बढ़ती गई। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक के चीनी उद्योग ने परिवहन व्यवसाय में और मजबूती दी।

इससे बागवानी क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी क्षेत्रों के गांवों और कस्बे में भी ट्रैक्टर की संख्या बढ़ी। व्यवसाय के यांत्रिकीकरण ने ट्रैक्टर के आधार पर खेतों की ज़मीन को समेटा। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश ये राज्य इस क्षेत्र में प्रमुख रहे।

आज के समय में खेती व्यवसाय में ट्रैक्टर की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। इस महत्वपूर्ण यंत्र पर अब नए वाहन संबंधी नियम लागू किए जाने वाले हैं। पहले सरकार इसके लिए बाकी डीजल गाड़ियों की तरह 10 साल का कालावधि निश्चित करने जा रही थी, लेकिन इस निर्णय से किसानों में तीव्र प्रकार की प्रतिक्रियाएँ आई, जिसके बाद सरकार ने 15 साल की उम्र निधारित की। परिवहन मंत्रालय के नए निर्देशों के अनुसार हर ट्रैक्टर या कृषि में उपयोग होने वाले वाहन को निश्चित कालावधि के बाद फिटनेस प्रमाणपत्र देना होगा अन्यथा प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। नए प्रदूषण मानकों का पालन करके यदि ट्रैक्टर ने फिटनेस प्रमाणपत्र नहीं लिया तो उसे पेट्रोल और डीजल देने पर पेट्रोल पंप के चालक प्रतिबंधित होंगे।

इस विषय का पूरा विवरण और किसानों पर इसके प्रभाव को समझना आवश्यक है —

1. खेती व्यवसाय में ट्रॅक्टर के उपयोग को बढ़ावा देने और यांत्रिकीकरण को गति देने के लिए कुछ समय तक ट्रॅक्टर के लिए सब्सिडी भी दी गई थी। अब आर्थिक उदारीकरण की नीति के कारण इस सब्सिडी को समाप्त या सीमित कर दिया गया है।

2. ट्रैक्टर खरीदने पर 12% GST कर लगाया गया है। इससे केंद्र और राज्य सरकारों को सालाना लगभग 7500 करोड़ रुपये की आमदनी होती है। इसके अलावा, ट्रैक्टर के साथ उपयोग होने वाले अन्य कृषि उपकरणों—जैसे बुवाई यंत्र, मळणी यंत्र, नांगर—पर भी स्वतंत्र GST लगाया गया है।

3. केंद्र सरकार के परिवहन मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के अनुसार ट्रैक्टर की पंजीकरण वाहन के रूप में की गई है। इसलिए अन्य वाहनों की तरह आवश्यक मानदंड पूरा करना अनिवार्य है।

4. ट्रैक्टर का उपयोग अमर्यादित समय तक नहीं किया जा सकेगा; नए ट्रैक्टर्स को निर्धारित समय मतलब 15 साल के बाद फिटनेस प्रमाणपत्र और प्रदूषण मानकों का पालन करते हुए प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा, तभी अगले पांच वर्षों तक उपयोग संभव होगा। अगले पांच वर्षों के लिए भी तत्कालीन फिटनेस प्रमाणपत्र और प्रदूषण मानकों का पालन करना आवश्यक होगा।

5. यदि इस प्रकार के नियमों का पालन नहीं किया गया तो किसी भी पेट्रोल पंप पर ईंधन उपलब्ध नहीं होगा। मूलतः दस वर्षों की अवधि को लागू करने का प्रयास कॉर्पोरेट दबाव की रणनीति माना गया था, लेकिन बढ़ती किसानों की प्रतिक्रिया को देखते हुए केंद्र सरकार ने इस अवधि को 15 वर्ष तक अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है। खास बात यह है कि यात्रियों के विमानों के लिए यह अवधि 30 वर्ष है, यह भी ध्यान में रखना चाहिए।

साथ ही ट्रैक्टर मालिक निम्नलिखित समस्याओं से जूझ रहे हैं —

ट्रैक्टर बीमा (थर्ड पार्टी वाहन बीमा)

भारत में वाहनों के बीमा क्षेत्र में कुछ ही बीमा कंपनियां सालाना लगभग 85,000 करोड़ रुपये प्रीमियम वसूलती हैं। ट्रैक्टर के लिए थर्ड पार्टी बीमा राशि ट्रॅक्टर मूल्य के 5% से 7% तक होती है, जो लगभग 50,000 से 70,000 रुपये के बीच है। अन्य देशों की तुलना में यह राशि काफी अधिक है। कई देशों में इसे सब्सिडी देकर कम रखा जाता है। विशेषतः ब्राजील में यह राशि केवल 0.3% (लगभग 3000 रुपये) और चीन में 0.5% (लगभग 5000 रुपये) है। केंद्र सरकार ने इस ट्रैक्टर बीमा राशि पर लगाए गए GST से लगभग 9,000 करोड़ रुपये इकट्ठा किए हैं। ट्रैक्टर बीमा को एक बोझ समझा जा रहा है। भारत में इस कृषि उपयोगी यंत्र के बीमा को ब्राजील की तरह 0.3% से अधिक नहीं होनी चाहिए। बीमा प्रीमियम निर्धारण को लूटने का व्यवसाय माना जाता है।

मरम्मत का अधिकार (Right to Repair)

ट्रैक्टर कंपनियों का वितरण एवं सेवा नेटवर्क व्यापक है जिसने ट्रैक्टर की देखभाल एवं मरम्मत में एकाधिकार स्थापित कर रखा है। ट्रॅक्टर में खराबी होने पर मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स अत्यधिक महंगे हैं। स्थानीय और अन्य तकनीशियनों को मरम्मत के क्षेत्र में प्रवेश नहीं मिलने दिया जाता। यदि कोई स्थानीय तकनीशियन कंप्यूटर आधारित सिस्टम में हस्तक्षेप करता है तो कंपनी वारंटी से इनकार करती है। वारंटी अवधि भी सीमित है। इस प्रकार के आधुनिक व्यवस्थाओं से ट्रॅक्टर मालिकों को काफी शोषण झेलना पड़ता है।

किसानों की शिकायतों और सामाजिक आंदोलन के कारण कई देशों ने मरम्मत का अधिकार (Right to Repair) कानून बनाए हैं। भारत में इस जागरूकता की कमी का फायदा बड़ी ट्रॅक्टर कंपनियां उठा रही हैं। कृषि उपकरण और उपकरण बाजार में सालाना 12-15% की वृद्धि होती है और सालाना लगभग 10 लाख ट्रैक्टर बेचे जाते हैं। इन विक्रयों से सरकार को लगभग 40,000 करोड़ रुपये GST की आमदनी होती है।

तीव्र यांत्रिकीकरण को देखते हुए मरम्मत का अधिकार देना आवश्यक हो गया है। केवल ग्राहक संरक्षण के नाम पर खेती उपकरण उपयोगकर्ताओं को वंचित नहीं छोड़ना चाहिए। जब वैश्विक कृषि उपकरण बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बाजार खोल दिया जा रहा है, तब इसके लिए कानून बनाना आवश्यक है। इसमें वारंटी कालावधि को ट्रॅक्टर की आयु तक यानी लगभग 35 वर्ष तक बढ़ाना, तकनीक और कौशल अधिकार का विस्तार, निर्गमन क्षेत्रों पर नियंत्रण और मरम्मत और रखरखाव लागत को कम करना शामिल होना चाहिए।

बैल और अन्य पशुओं का उपयोग अभी भी बड़े पैमाने पर होता है, लेकिन बढ़ते खर्चों के कारण बैल उपयोग कम हो रहा है। इसलिए ट्रैक्टर का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। सालाना देशभर में लाखों ट्रॅक्टर की संख्या बढ़ रही है।

ट्रैक्टर की कीमत

भारत में ट्रैक्टर की वास्तविक उत्पादन लागत उसकी बिक्री कीमत के 40-70% के बीच होती है। बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियां भारतीय किसानों को मक्कारी से अधिक मूल्य वसूलती हैं।

भारत से अन्य विकासशील देशों को भी ट्रॅक्टर और कृषि उपकरण बड़े पैमाने पर निर्यात किए जाते हैं। निर्यात पर कर छूट और अनुदान के माध्यम से बड़ी रकम कॉर्पोरेट क्षेत्र को उपलब्ध होती है। अप्रैल 2025 तक, भारत सरकार ने RoDTEP योजना के तहत निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिए ₹57,976.78 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। आधुनिक कीमतों में कम से कम 25% कटौती की मांग कृषि प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ करते हैं, लेकिन इसे अनदेखा किया जाता है।

असामान्य कीमतों के कारण ट्रैक्टर उपयोगकर्ताओं के ऊपर ऋण का बोझ बढ़ रहा है। कर्ज के दुष्चक्र से किसानों को छुटकारा नहीं मिला। ट्रैक्टर उपयोगकर्ता किसान भी ऋण के जाल में फंसे हुए हैं। कृषि उत्पादों की आश्वस्त कीमत का अभाव और प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे किसानों पर ऋण का भार इस प्रकार है। ट्रैक्टर मालिक को खुशहाल खेतमालिक माना जाता है, जो विभिन्न माध्यमों में चित्रित किया जाता है, लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है।

ट्रैक्टर के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा दिया जाने वाला ब्याज दर अत्यधिक है। छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद), महाराष्ट्र में कॉर्पोरेट क्षेत्र के निदेशक-प्रबंधकों को 100 मर्सिडीज गाड़ियों की खरीद के लिए राष्ट्रीयकृत बैंक से मात्र 6% ब्याज दर पर ऋण मिला, जबकि ट्रैक्टर और कृषि उपकरणों के लिए ब्याज दर 14% से लेकर 28% तक है। इससे किसानों की वास्तविक समस्या स्पष्ट होती है और अब इसे समझने का वक्त आ गया है।


ट्रैक्टर और अन्य खेती के औजारों का खर्च और किसानों पर कर्ज का जोड़ लगाएं तो यह तस्वीर और भी भयावह हो सकती है। पूरे देश के किसानों की आत्महत्याएं न केवल देश के लिए बल्कि मानवता के लिए भी एक काला धब्बा बन गई हैं, यह कई विचारकों द्वारा व्यक्त किया जाता है, लेकिन सरकार इस बारे में अधिक संवेदनशील दिखाई नहीं देती।

सभी प्रकार के वाहनों को निर्धारित अवधि के बाद फिटनेस प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य किया जा रहा है। इसी का बड़ा दबाव किसान समुदाय पर पड़ने की संभावना है। सरकार ने वाहन उपयोग समाप्ति के नियमों में भी बदलाव किया है, जहां वाहन के कार्यकाल समाप्त होने के बाद उसे बंद करने का बंधन निर्माता कंपनी पर लगाया जा रहा है। ऐसी कंपनियों को अपने वाहन उपयोग समाप्ति केंद्र स्थापित करना आवश्यक होगा इस प्रकार की व्यवस्था की जा रही है।

ट्रैक्टर जैसे कृषि उपकरण के लिए यह अवधि कितनी होनी चाहिए, इस पर अभी स्पष्ट निर्णय नहीं है, लेकिन विभिन्न रूपों में इसके बारे में निर्णय लिया जा सकता है। 2030 में भारत में ट्रैक्टर की बाजार क्षमता लगभग 50 हजार करोड़ रुपये की होने का अनुमान है। कई मजबूत अमेरिकी ट्रैक्टर कंपनियां इस भारतीय बाजार की ओर आकर्षित हैं। इसके लिए भारत-अमेरिका व्यापार शर्तों में भी कुछ छुपे हुए प्रावधान आगे बढ़ाए जा रहे हैं।

इस पृष्ठभूमि में भारतीय किसानों के हितों और देश के औद्योगिक विकास संबंधी नीतिगत चुनौतियां सामने आ रही हैं। भारत-अमेरिका व्यापार समझौते के अलावा नीति आयोग ने अमेरिकी कृषि आयात के आयात शुल्क कम करने की भी सिफारिश की है। साथ ही, इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर को बढ़ावा देने का इरादा भी बताया गया है।

आज भारत में लगभग 75% ट्रैक्टर 10 वर्ष से अधिक पुराने हैं। ऐसे में इन सभी बदलावों के कारण गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है। भारतीय ट्रैक्टर धारक किसानों के हितों को मजबूत करने वाली कोई भी पहल न किए जाने वाला कोई भी निर्णय कृषि व्यवसाय में अराजकता पैदा कर सकता है। इस बारे में निश्चित ही भारतीय किसान जागरूकता के साथ प्रतिरोध करने की समझ रखते हैं, जो समय-समय पर किसान आंदोलनों द्वारा भी प्रदर्शित हो चुका है।

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