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विमर्श

ऑस्ट्रेलिया में कोयला खनन के विरोधियों के परिवार की जासूसी करा रहे हैं अडानी

Janjwar Desk
29 Oct 2020 8:13 AM GMT
ऑस्ट्रेलिया में कोयला खनन के विरोधियों के परिवार की जासूसी करा रहे हैं अडानी
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अडानी भारत समेत जिन भी देशों में काम कर रहे हैं, हरेक जगह विरोध को कुचला जा रहा है और प्राकृतिक संसाधनों का विनाश किया जा रहा है, इन सबके बाद भी अडानी को हमारी सरकार हरेक संपत्ति उपहार में दे रही है....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

दुनिया के अरबपतियों की पैसे की भूख कभी ख़त्म नहीं होती और इसका सबसे बड़ा उदाहरण गौतम अडानी और उनकी दुनियाभर में फ़ैली कम्पनियां हैं। दरअसल अडानी जैसे पूंजीपति उद्योग नहीं चलाते, बल्कि सरकारें चलाते हैं। जाहिर है, जिस तरह सरकारें अपने विरोधियों को लगातार कुचलती हैं, उसी-तरह पूंजीपति भी जनता का हक़ छीनकर और प्राकृतिक संसाधनों को लूटकर पूंजी जमा करते हैं और विरोधियों को दमन करते रहते हैं। अडानी अपने देश में तो सरकार की मदद से लगातार खनन परियोजनाओं के विरोधियों की आवाज दबाते रहे हैं, अब ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसा ही कर रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया में अडानी की कोयला खदान परियोजना का लगातार विरोध किया जा रहा है। यह विरोध इस खदान के कारण पर्यावरण के विनाश को लेकर किया जा रहा है, इससे अनेक स्थानिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। इस मुहिम में गेलीली ब्लोकेड नामक संस्था लगातार सक्रिय रही है। इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता बेन पेंनिंग्स हैं, जिनपर अडानी जासूसी करा रहे हैं और अनेक मुकदमे भी दायर किये हैं। अडानी की कंपनी ने क्वीन्सलैंड के सुप्रीम कोर्ट में बेन पेंनिंग्स के विरुद्ध मुक़दमा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि वे लोगों को आन्दोलनों के लिए भड़का रहे हैं और उन्होंने खदान से सम्बंधित कुछ गोपनीय कागजातों की चोरी भी की है और उसके सहारे अब काम करे रहे ठेकेदारों को ब्लैकमेल कर रहे हैं। याचिका में मांग की गई थी कि कंपनी को बेन पेंनिंग्स के घर की बिना बताये तलाशी का अधिकार दिया जाए, जिससे गोपनीय दस्तावेजों को खोजा जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने बेन पेंनिंग्स के घर की तलाशी के मामले में अडानी की कंपनी को इजाजत नहीं दी। इसके बाद कंपनी ने फैसले के विरुद्ध अपील की पर सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर कायम रहा। जब यह मुक़दमा सुप्रीम कोर्ट में चल ही रहा था, इसी बीच में अडानी की कंपनी ने एक प्राइवेट जासूस की सेवाएं लीं जिसने केवल बेन पेंनिंग्स की ही नहीं बल्कि उनकी पत्नी और छोटी बच्चियों का पीछा किया, उनकी जासूसी की और फोटो खींचे। उनकी पत्नी रचेल के सोशल मीडिया अकाउंट को खंगाला।

बेन पेंनिंग्स के अनुसार यह पूरा मामला पूरी तरह से निजता पर हमले का सवाल है। यदि किसी राजनेता के पत्नी और बच्चों के साथ ऐसा किया जाता तो इसे निजता पर हमला बताकर बड़े आन्दोलन किये जाते, और यह एक चर्चित मामला बन जाता, पर एक पर्यावरण कार्यकर्ता के साथ ऐसा किया गया है इसलिए ऐसी हरकत के विरुद्ध कोई आवाज नहीं उठी। अडानी की कंपनी शुरू से ही इस परियोजना के विरुद्ध उठाती आवाजों को कुचल रही है। पिछले वर्ष इस परियोजना से पर्यावरण को होने वाले नुकसानों पर जिन वैज्ञानिकों ने गंभीर सवाल उठाये थे, अडानी की कंपनी ने इन वैज्ञानिकों के विरुद्ध एक मुहीम छेड़ दी थी। स्थानीय समाचारपत्रों के बहुर सारे रिपोर्टर्स के विरुद्ध भी ऐसी ही मुहीम छेड़ी गई है।

पहले कभी ऑस्ट्रेलिया को पर्यावरण संरक्षण के अग्रणी देशों में शुमार किया जाता था पर आज के दौर में यहां के पर्यावरण को बुरी तरीके से बर्बाद किया जा रहा है। बड़े पैमाने पर जंगल काटे जा रहे हैं, समुद्री जीवन नष्ट किया जा रहा है, कोरल रीफ मर रहे हैं और जैव-विविधता नष्ट हो रही है। कुछ समय पहले प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के जिन पांच देशों में जैव-विविधता सबसे तेजी से नष्ट की जा रही है, उसमें भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र की नयी रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया भी उन देशों में सम्मिलित है जो तापमान बृद्धि को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं। इसे ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने नकार दिया था पर वहाँ की सरकारी रिपोर्ट के अनुसार ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है।

कुछ समय पहले तक पर्यावरण आन्दोलनों में केवल कुछ गैर-सरकारी संगठन ही शामिल होते थे, फिर सामान्य जनता भी जुड़ती गयी। अब तो स्कूलों के विद्यार्थी भी अपने बल-बूते पर तापमान बृद्धि के खिलाफ सडकों पर आन्दोलन कर लेते हैं। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री की अपील ठुकराकर हजारों की संख्या में स्कूलों के विद्यार्थी तापमान बृद्धि के मामले में सरकार की आँखे खोलने के लिए सडकों पर उतर आये थे। अडानी की कोयला खान के विरोध में भी बड़ी संख्या में स्कूलों और यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था।

अडानी को मानवाधिकार का खुलेआम हनन करने वालों के साथ भी धंधा करने से कोई परहेज नहीं है। इस कंपनी ने म्यानमार के यांगून में कंटेनर पोर्ट विकसित करने का ठेका दो वर्ष पहले प्राप्त किया था। कंटेनर पोर्ट जहां विकसित किया जाना है वह भूमि म्यानमार इकोनोमिक कोऑपरेशन नामक संस्था के पास है जिसका स्वामित्व म्यानमार की फौज के पास है। यानि इस परियोजना का मुनाफा वहां की फ़ौज के पास पहुंचेगा। इस परियोजना के विरोध का कारण भी यही है। वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने एक तीन सदस्यीय दल बनाया था जिसे म्यानमार की फौज द्वारा किये जाने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन और नरसंहार के बारे में जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी। म्यानमार की फौज ने रोहिंग्या लोगों के साथ जो अमानवीय व्यवहार किया था, इसी की पुष्टि करने के लिए यह रिपोर्ट बनायी गयी। वहां की फ़ौज ने संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य को म्यानमार में प्रवेश नहीं करने दिया था। फिर इस दल के सदस्यों ने लगभग 875 विस्थापितों के साक्षात्कार के आधार पर 440 पृष्ठों की एक रिपोर्ट सितम्बर 2018 में प्रस्तुत किया। ये सभी विस्थापित फ़ौज द्वारा रोहिंग्या के शोषण और नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी भी थे।

इस रिपोर्ट के अनुसार म्यानमार की फ़ौज नरसंहार, ह्त्या, बिना कारण जेल में डालना, महिलाओं और बच्चियों से बलात्कार, बच्चों के शोषण और इनके गाँव में आगजनी के लिए दोषी है। रिपोर्ट में सभी देशों से अनुरोध किया गया है कि वे म्यानमार की फ़ौज के साथ किसी भी तरह के रिश्ते न रखें। इसके बाद भी अडानी की कंपनी इसी फ़ौज के साथ व्यापारिक रिश्ते बना रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अडानी की ऑस्ट्रेलिया में खनन परियोजना से जो लाभ होगा, उसे म्यानमार की परियोजना में लगाया जाएगा।

इसका सीधा मतलब यह है कि अडानी ऑस्ट्रेलिया की कमाई से ऐसे लोगों का भला करेंगे जो मानवाधिकार हनन और नरसंहार के लिए जिम्मेदार हैं। जैसी कि उम्मीद थी, अडानी की कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा है कि वे लोग ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका या फिर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार से सम्बंधित किसी दिशा-निर्देश का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं।

जब संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ही कहती हो कि म्यानमार की सेना से किसी भी तरह के सम्बन्ध नहीं रखे जाएँ, फिर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के दिशा निर्देशों का उल्लंघन कैसे नहीं हो रहा है, इसका जवाब तो केवल अडानी ही दे सकते हैं। यहाँ धुंआ रखने वाली बात है कि 50 वर्षों के इस परियोजना की लागत 29 करोड़ अमेरिकी डॉलर है और विदेशों में काम करने के लिए जितनी भी अनुमति चाहिए वह भारत सरकार इस परियोजना को दे चुकी है।

अडानी भारत समेत जिन भी देशों में काम कर रहे हैं, हरेक जगह विरोध को कुचला जा रहा है और प्राकृतिक संसाधनों का विनाश किया जा रहा है। इन सबके बाद भी अडानी को हमारी सरकार हरेक संपत्ति उपहार में दे रही है, जाहिर है अडानी भी सरकार के नुमाइंदों को भरपूर उपहार दे रहे होंगें।

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