वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
2014 के बाद से हरेक चुनाव – चाहे लोक सभा के हों, या विधान सभा के – उनमें प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी के दूसरे नेताओं के भाषणों का स्तर एक फूहड़ कॉमेडी शो से अधिक कुछ नहीं रहता। याद कीजिये, बिहार के पिछले चुनाव के समय को जब मोदी जी ने हाथ हवा में लहराते हुए नीतीश बाबू के डीएनए को खराब बताया था, नीतीश बाबू पर घोटाले के आरोप मढ़े थे और यह भी बताया था कि नीतीश कुमार केंद्र की किसी योजना को बिहार में लागू नहीं करते। पिछले चुनाव के समय मोदी जी लगभग आंसू बहाते हुए कह रहे थे कि उन्हें बिहार में जिस थाली में खाना दिया गया था उसमें छेद था। यही नहीं, पिछले चुनाव के समय मोदी जी ने नीतीश राज में बिजली की बदहाली पर भी राग छेड़ा था। उस समय मोदी जी की हरेक रैली के बाद नीतीश बाबू लम्बी प्रेस कांफ्रेंस करते थे, और आंकड़ों के साथ बताते थे कि मोदी जी ने जो कहा वह सरासर गलत था, और सही स्थिति यह है। डीएनए वाले बयान के बाद तो नीतीश कुमार ने कहा था कि यह बिहार की जनता का अपमान है। इन चुनावों में यही अपमान सम्मान में बदल चुका है।
भारतीय राजनीति में थूक कर चाटने की एक लम्बी परंपरा रही है। अंतर बस इतना सा है कि पहले लोग नजरें चुरा कर थूक चाटते थे, जबकि अब खुले मंच पर भीड़ के सामने और अपना सीना 56 इंच का बताते हुए थूक चाट रहे हैं। मोदी जी ने बिहार विधान सभा के पिछले चुनाव के समय नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के गठबंधन पर कटाक्ष करते हुए, चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत रहत भुजंग, की तर्ज पर रैली में बार बार जनता के सामने कहा था – इसमें चन्दन कौन है और भुजंग कौन है, हमें नहीं मालूम। इसके आगे अपनी ही शैली में उन्होंने जनता से भी पूछा था, आपलोगों को पता है क्या, चन्दन कौन और भुजंग कौन। पर, बाद में लगभग डेढ़ साल बाद नीतीश कुमार के साथ सरकार बना कर उन्होंने साबित कर दिया कि आखिर असली भुजंग कौन था।
इस बार भी बिहार के सासाराम में अपनी पहली ही रैली में एक ऐसा वक्तव्य दिया है, जिसपर चर्चा तो नहीं की गई, पर मोदी जी की मानसिकता स्पष्ट जरूर हो जाती है। मोदी जी ने नीतीश कुमार के 15 वर्ष के दौर के बारे में बताया, शुरू के 10 वर्षों में उन्हें केंद्र ने कोई काम नहीं करने दिया, फिर 18 महीने जो हुआ वो आप सब जानते हैं, पर पिछले साढ़े तीन वर्षों में इस डबल इंजन की सरकार ने तेजी से काम किया है। जाहिर है, प्रधानमंत्री जी अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के बारे में बता रहे हैं कि उन्होंने पिछले 15 वर्षों से कुर्सी तो संभाली है, पर काम केवल साढ़े तीन वर्ष ही किया है।
वैसे भी किसी भी चुनाव के समय क्या-क्या होगा, अब उम्मीद से परे नहीं है। पहले तो सिर्फ चुनावों के ठीक पहले उस राज्य से सम्बंधित परियोजनाओं की बारिश और नेताओं के भाषणों में विपक्ष की नाकामियाँ ही रहती थी, पर अब इनके साथ ही उसी समय देश को अचानक आतंकवादियों से खतरा भी होने लगता है, और कितने आतंकवादी किस रास्ते से आयेंगें, यह भी भाषणों में बताया जाता है। भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के पास पुख्ता सबूत है कि देश में 30 आतंकवादी प्रवेश करने वाले हैं – संभव है कि उन्हें उनके नाम और पते भी पता हों। ऐसी जानकारी बीजेपी की तरफ से पहले बार आयी हो ऐसा नहीं है, यह हरेक चुनावों की बात है। प्रधानमंत्री जी स्वयं सेना का राजनैतिक इस्तेमाल भी लगातार करते रहे हैं – यह भी एक नया ट्रेंड है। अब सेना भी भारतीय सेना नहीं है, बल्कि राज्यों के सैनिक होने लगे हैं। ऐसे भाषणों के लिए मानो सरकारें विशेष स्थितियां उत्पन्न करती हैं, जैसे गलवान वैली में बिहार रेजिमेंट की तैनाती।
एक और नया ट्रेंड है – चुनावों के दौर में विपक्षी दलों या उम्मीदवारों या फिर उनके करीबियों पर केंद्र सरकार की जांच संस्थाओं द्वारा धावा बोला जाना। इन चुनावों में भी बीजेपी उम्मीदवार के घर से 20 किलो सोना बरामद होने के बाद भी आयकर विभाग अँधा बना रहता है, पर पटना स्थित कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय पर खोजबीन के लिए पहुँच जाता है।
इस बार कोविड 19 के दौर में चुनाव हो रहे हैं, जाहिर है इसका कुछ असर भाषणों में तो रहेगा। कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने कोविड 19 से सम्बंधित राष्ट्र के नाम एक संबोधन किया था। कहा जाता है कि प्रधानमंत्री की बातें देशवासी पूरी श्रद्धा से मानते हैं, पर हकीकत यह है कि प्रधानमंत्री की बातें बीजेपी नेता और कार्यकर्ता को छोड़कर बाकी पूरा देश मानता है। बीजेपी के नेताओं की कोविड 19 से सम्बंधित गंभीरता का आलम देखिये, यही लोग थोक के भाव में इस वैश्विक महामारी की चपेट में आ रहे हैं। अभी सुशील मोदी के साथ ही दूसरे नेता और अनेक कार्यकर्ता इसकी चपेट में हैं। लगभग एक महीने पहले पटना स्थित बीजेपी कार्यालय के लगभग सभी लोगों को कोविड 19 हो गया था। बीजेपी ही एक ऐसी पार्टी है, जिसके कार्यकर्ता टीवी के समाचार चैनलों पर बेशर्मी से कोविड 19 के ख़त्म होने दावा करते हैं। ऐसा केवल बिहार में ही नहीं बल्कि पूरे देश में किया जा रहा है। पिछले महीने पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष ने भी कैमरे के सामने कहा था, कहाँ है कोरोना, वह तो चला गया।
पहले राज्यों के चुनावों में दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री या मंत्री किसी पार्टी के स्टार प्रचारक नहीं रहते थे। बीजेपी ने इस परंपरा को भी ध्वस्त कर दिया है और एक ऐसे मुख्यमंत्री को इस काम के लिए शामिल कर लिया है जिनसे अपना राज्य किसी भी तरह नहीं संभल रहा है। आज के दौर में कुख्यात अपराधों और मानवाधिकार हनन का सिरमौर राज्य, तथाकथित उत्तम प्रदेश, के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ हरेक राज्य में प्रचारक रहते हैं। बिहार में भी उन्होंने अपनी तारीफ़ में बताया कि उन्हें शासन काल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश अपराधमुक्त हो गया है। ये वही मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने तीन वर्ष पहले हरेक समाचार चैनल पर पूरे उत्तर प्रदेश के अपराधमुक्ति का दावा किया था। तब कहा था कि पूरे राज्य के अपराधी या तो जेल पहुँच गए हैं या फिर राज्य छोड़कर जा चुके हैं।
देश में लोकतंत्र का चीरहरण तो बहुत पहले ही हो गया था, अब तो हरेक चुनाव के दौरान इसका एनकाउंटर होता है। भाड़े पर जुटाई गई जनता के सामने मंच से अश्लील चुटकुलों की बौछार की जाती है, कुछ प्रवचन होते हैं और फिर एक उड़नखटोले में बैठकर जनता के ऊपर धुल की बौछार करते हुए नेता जी उड़ जाते हैं। इसके आगे का लोकतंत्र सरकारी टुकड़ों पर पलता मीडिया और सरकारी हुक्म बजाने वाला चुनाव आयोग संभालता है। जनता तो बस अपना डीएनए ही संभाल पाती है। मोदी जी सही कहते हैं, चुनाव सही में बस एक उत्सव है।