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विमर्श

क्या किसानों की हताशा और गुस्से का प्रतीक है दूध के दाम 100 रुपये लीटर किये जाने की ख़बर

Janjwar Desk
28 Feb 2021 10:22 AM IST
क्या किसानों की हताशा और गुस्से का प्रतीक है दूध के दाम 100 रुपये लीटर किये जाने की ख़बर
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जैसे सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाये वैसे किसान आंदोलनकारी भी कल 1 मार्च से दूध की कीमत 100 रुपये लीटर करने का ऐलान कर चुके हैं, क्या इस पहलकदमी से किसान आंदोलन मजबूत होगा (file photo)

दूध के दाम दुगने कर देने वाला यह बयान जारी करने के पीछे लगभग 100 दिनों से दिल्ली के तीनों बॉर्डर्स सिंघु, टिकरी और गाजीपुर पर धरने में बैठे किसानों की हताशा और गुस्सा दोनों को ही देखा जा सकता है....

वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पंत का विश्लेषण

जनज्वार। शनिवार 27 फरवरी को दिनभर ट्विटर पर एक हैशटैग #1 मार्च से दूध 100 रुपये प्रति लीटर ट्रेंड करता रहा। दूध के 100 रुपये प्रति लीटर होने की खबर सोशल मीडिया के दूसरे प्लेटफॉर्म्स में भी छायी रही।

दरअसल इस खबर के सोशल मीडिया में हिट होने का कारण भारतीय किसान यूनियन के जिला प्रधान मल्कीत सिंह का वो बयान है जिसमें उन्होंने कहा था कि एक मार्च से किसान दूध के दामों में बढ़ोतरी करने जा रहे हैं, जिसके बाद 50 रुपये लीटर बिकने वाला दूध अब दोगुनी कीमत यानी 100 रुपये लीटर बेचा जाएगा।

मलकीत सिंह का कहना था कि केंद्र सरकार ने डीजल के दाम बढ़ाकर किसानों पर चारों तरफ से घेरने का भरसक प्रयास किया है, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने तोड़ निकालते हुए दूध के दाम दोगुने करने का कड़ा फैसला ले लिया है। अगर सरकार अब भी न मानी तो आने वाले दिनों में आंदोलन को शांतिपूर्वक आगे बढ़ाते हुए हम सब्जियों के दामों में भी वृद्धि करेंगे।

साफ़ है कि दूध के दाम दुगने कर देने वाला यह बयान जारी करने के पीछे लगभग 100 दिनों से दिल्ली के तीनों बॉर्डर्स (सिंघु, टिकरी और गाजीपुर) पर धरने में बैठे किसानों की हताशा और गुस्सा दोनों को ही देखा जा सकता है। हताशा इसलिए क्योंकि कृषि क़ानून की उनकी मांग को सरकार लगातार अनदेखा कर रही है और क़ानून वापिस नहीं लेने की ज़िद पर अड़ी है, जबकि सैकड़ों किसान अपनी जान गवां चुके हैं। गुस्सा इसलिए कि सरकार लगातार पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ा कर किसानों की कमर तोड़ना चाहती है ताकि वे आंदोलन को वापिस ले लें।

यह गुस्सा इसलिए भी कि पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दामों का जन-विरोध भी नहीं हो रहा है। यह गुस्सा कहीं न कहीं मल्कीत सिंह की इस बात से झलक जाता है जब वे कहते है," अगर जनता 100 रुपये लीटर पेट्रोल ले सकती है तो फिर 100 रुपये लीटर दूध क्यों नहीं ले सकती। अब तक किसान एक लीटर दूध को नो प्राफिट नो लॉस पर ही बेचता आया है।"

लेकिन किसान यूनियन का दूध के दाम दुगने करने का निर्णय आम लोगों को नाराज़ कर सकता है और धीरे-धीरे किसान आंदोलन के प्रति बढ़ रहे जन समर्थन पर विराम लगा सकता है। किसान नेता का यह कहना वाजिब हो सकता है कि लोग महंगे होते जा रहे पेट्रोल-डीज़ल के खिलाफ भी तो आवाज़ नहीं उठा रहे हैं, लेकिन यहां यह भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि बहुत से लोगों के लिए पेट्रोल-डीज़ल का उपभोग ज़रूरत नहीं है, लेकिन दूध हमारे देश में सभी की ज़रूरत है।

इसलिए किसानों का दूध के दाम 100 रुपये करने का कदम आत्मघाती भी साबित हो सकता है, कुछ उसी तरह से जैसे भारतीय किसान यूनियन के नेता व राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का खड़ी फसल जोत लेने वाला बयान हुआ था। टिकैत ने सरकार को चेतावनी देते हुए फसल तक को जला देने की बात कही तो किसानों ने अपनी फसलों की जुताई करनी शुरू कर दी थी। इस बारे में लगातार पंजाब और उत्तर प्रदेश से ख़बरें भी आ रहीं थीं।

उल्टे अब किसान नेताओं को फसलों को नष्ट नहीं करने की अपील किसानों से करनी पड़ रही है और उन्हें यह समझाना पड़ रहा है कि फसल जलाने का असली मतलब है कि फसल की देखरेख नहीं की जाये और धरने पर ही बैठा रहा जाये। किसानों को यह भी समझाया जा रहा है कि फसलों की जुताई से सरकार की जगह किसानों का ही नुकसान होगा।

ऐसा ही कुछ दूध के दाम दुगने करने पर हो सकता है। इससे सरकार को ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ेगा, बल्कि किसानों का ही नुक्सान हो सकता है क्योंकि इससे न केवल दूध बहुत सारे लोगों की पहुँच के बाहर हो जायेगा, बल्कि दूध से बनने वाले बहुत से उत्पाद भी महंगे हो जायेंगे। वैसे भी मोदी सरकार डेयरी क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़ा चुकी है और विदेशी कम्पनियाँ लार टपकाते हुए भारत के व्यापक दुग्ध बाजार में घुसपैठ करने की पूरी तैयारी में हैं।

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