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विमर्श

विरोधी आवाज को खामोश करने के लिए न्यायपालिका का इस्तेमाल कर रही मोदी सरकार

Janjwar Desk
31 Jan 2021 7:19 AM GMT
Chhawla Gangrape Murder Case : अनामिका गैंगरेप के 3 दोषियों को SC ने किया बरी, HC ने हैवान बताकर दी थी फांसी की सजा, देश को दहलाने वाली घटना की पूरी कहानी
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Chhawla Gangrape Murder Case : अनामिका गैंगरेप के 3 दोषियों को SC ने किया बरी, HC ने हैवान बताकर दी थी फांसी की सजा, देश को दहलाने वाली घटना की पूरी कहानी

किसान आंदोलन को बर्बरतापूर्वक कुचलने में असमर्थ होने पर मोदी सरकार अब किसान नेताओं के साथ साथ पत्रकारों को भी झूठे मुकदमे में फंसाने में जुट गई है। उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर के नोएडा में गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुए उपद्रव मामले में पुलिस ने बृहस्पतिवार रात कांग्रेस सांसद शशि थरूर व 6 वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से मोदी सरकार को खतरा नजर आता है और वह अपने विरोध में उठने वाली हर आवाज को खामोश कर देना चाहती है। अब तक इस तरह के दमन की खबरें तानाशाही द्वारा संचालित देशों से ही आती थी। जबकि दुनिया भर के लिए भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था एक आदर्श उदाहरण बनी हुई थी जहां संविधान ने प्रत्येक नागरिक को असहमति जताते हुए सत्ता की आलोचना करने का अधिकार दिया है। लेकिन मोदी सरकार ने संविधान की मूल भावना को कुचलते हुए तानाशाहों जैसा आचरण शुरू कर दिया है और अपने विरोध में उठने वाली आवाजों को सहिष्णुता के साथ सुनने और सम्मान करने की जगह वह अपनी कठपुतली न्यायपालिका का इस्तेमाल दंड देने और आतंकित करने के लिए कर रही है।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने देवी देवताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में स्टैंड अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी की बेल याचिका दोबारा खारिज कर दी है। गुरुवार को चली सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि देश में सौहार्द और भाईचारा बनाए रखने की ज़िम्मेदारी हर भारतीय नागरिक की होती है ‌और इसमें किसी प्रकार की कोई छूट नहीं दी जा सकती। मुनव्वर फारूकी की जमानत याचिका पर 25 जनवरी को सुनवाई हुई थी। गुरुवार को इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।

मुनव्वर फारूकी के समर्थन में अब देश के अन्य हास्य कलाकार सामने आ रहे हैं। देश के जाने माने कॉमेडियन नीति पलता, अनुभव पाल, डायरेक्टर ओनिर समेत कई अन्य हास्य कलाकारों ने जमानत याचिका खारिज होने पर निराशा जताया। कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस रोहित आर्य की पीठ ने कहा कि व्यक्ति की आजादी और उनके कर्तव्य में संतुलन बनाए रखना आवश्यक होता है।

डायरेक्टर ओनिर ने कोर्ट द्वारा दिए गए इस आर्डर को अभियोग अभियोजन पक्ष करार देते हुए कहा कि कॉमेडियन को उस बात की सजा मिल रही है जो उसने की ही नहीं। फारुकी को सिर्फ इसीलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वह अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखता है।

कोर्ट के इस फैसले के बाद नीतीश पलटा का भी ट्वीट सामने आया है। उन्होंने कोर्ट के फैसले का विरोध जताते हुए कहा कि अपराध करने वाले और अन्य बदमाश सड़कों पर घूम रहे हैं और पत्रकार एवं कॉमेडियन को जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ रहा है। उन्होंने कहा की यह न्याय नहीं है। अनुभव पाल ने भी इस संदर्भ में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने एक तस्वीर साझा करते हुए लिखा कि भारत में बोलने की आजादी तो है लेकिन जब बोल दो तो उसके साथ क्या होगा यह कोई नहीं कह सकता।

कुल मिलाकर देखा जाए तो पिछले कई दिनों से मुनव्वर फारुकी जेल में बंद हैं और अब धीरे-धीरे देश के अन्य हास्य कलाकार उनके समर्थन में आगे आ रहे हैं। कई सोशल मीडिया यूजर्स ने भी मशहूर कॉमेडियन का समर्थन किया और ट्वीट करते हुए लिखा कि अल्पसंख्यक समुदाय से आने के कारण उन्हें यह दंड दिया जा रहा है। फिलहाल यह मामला कोर्ट में चल रहा है और स्टैंड अप कॉमेडियन की जमानत याचिका दूसरी बार खारिज की गई है।

दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने वेब सिरीज़ 'तांडव' के निर्माताओं को गिरफ़्तारी से अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया है। उनके ख़िलाफ़ अलग-अलग तीन मामले चल रहे हैं। जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस एम. आर. शाह की बेंच ने इस मामले से जुड़े लोगों से कहा है कि वे ज़मानत के लिए हाई कोर्ट जाएं।

निर्माता अली अब्बास ज़फ़र, एमेजॉन प्राइम इंडिया की अपर्णा पुरोहित, निर्माता हिमांशु मेहरा, पटकथा लेखक गौरव सोलंकी और अभिनेता मुहम्मद जीशान अयूब की अलग-अलग याचिकाएं सुनने के बाद अदालत कहा कि वह उन्हें कोई राहत नहीं दे सकती। 'लाइव लॉ' के अनुसार अदालत ने अपने आदेश में कहा, "हम धारा 482 के तहत दी गई शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। हम अंतरिम राहत देने के इच्छुक नहीं हैं।"

अदालत संघी गिरोह की दलीलों का इस्तेमाल कर रही है और संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो अधिकार दिया गया है उसे कुचलने पर आमदा है। अपने आका के आदेश पर जज गण ऐसे अजीब तर्क देने लगे हैं जिससे लगता है कि देश कहीं आदिम युग में तो नहीं चला गया है। डिजिटल माध्यम का टेंटुआ दबाने के लिए संघी गिरोह इस तरह के मुद्दों को उछालकर शोर मचा रहा है और न्यायपालिका उसके साथ सहयोग कर रही है।

किसान आंदोलन को बर्बरतापूर्वक कुचलने में असमर्थ होने पर मोदी सरकार अब किसान नेताओं के साथ साथ पत्रकारों को भी झूठे मुकदमे में फंसाने में जुट गई है। उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर के नोएडा में गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुए उपद्रव मामले में पुलिस ने बृहस्पतिवार रात कांग्रेस सांसद शशि थरूर व 6 वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है।

वरिष्ठ पत्रकारों में राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय, जफर आगा, परेशनाथ, अनंत नाथ व विनोद जोस शामिल हैं। सभी आरोपियों पर देशद्रोह व शांति भंग, धार्मिक भावनाएं आहत करने तथा आईटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं।

नोएडा के सेक्टर-20 थाना पुलिस के मुताबिक सुपरटेक केपटाउन निवासी अर्पित मिश्रा ने बताया कि दिल्ली में उपद्रव के दौरान कुछ लोगों ने अपमानजनक, गुमराह करने और उकसाने वाली खबर सोशल मीडिया पर प्रसारित की थी कि पुलिस ने ट्रैक्टर चालक किसान की गोली मारकर हत्या कर दी है। सुनियोजित षड्यंत्र के तहत इस तरह की झूठी सूचनाएं प्रसारित की गईं। प्रदर्शनकारियों को भड़काने के उद्देश्य से जानबूझकर ऐसा किया गया। इस कारण प्रदर्शनकारी लाल किला परिसर तक पहुंच गए और वहां धार्मिक व अन्य झंडे लगा दिए तथा पुलिसकर्मियों पर हमला किया। साफ है कि पत्रकारों को भयभीत करने के लिए मोदी सरकार इस तरह के हथकंडे आजमा रही है।

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