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विमर्श

मोदीराज में साल 2021 में 1 लाख 64 हजार लोगों ने की आत्महत्या, मगर प्रधानमंत्री सुनाते हैं चुटकुला

Janjwar Desk
2 May 2023 8:24 AM GMT
मोदीराज में साल 2021 में 1 लाख 64 हजार लोगों ने की आत्महत्या, मगर प्रधानमंत्री सुनाते हैं चुटकुला
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file photo

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2021 में देश में कुल 164033 लोगों ने आत्महत्या की, यानि हरेक दिन लगभग 450 व्यक्ति इस देश में आत्महत्या कर लेते हैं। केवल पांच राज्यों – महाराष्ट्र, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक – में ही देश में कुल आत्महत्या में से 50 प्रतिशत से अधिक मामले दर्ज किये जाते हैं। इन पांच राज्यों में से तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार है....

महेंद्र पांडेय सवाल करते हैं मोदी प्रधानमंत्री हैं, तो क्या कुछ भी बोलने का मिल जाता है उन्हें अधिकार

Prime Minister threw a joke on suicides and senior journalists laughed on it along with PM. तेजस्वी यादव ने एक बार प्रधानमंत्री के किसी वक्तव्य पर कटाक्ष करते हुए कहा था, प्रधानमंत्री हैं कुछ भी बोल सकते हैं। यह वाक्य कितना सटीक है, इसका उदाहरण हमारे प्रधानमंत्री लगभग हरेक भाषण में प्रस्तुत करते हैं। हाल में ही, 26 अप्रैल को मीडिया से सम्बंधित किसी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी ने अपने भाषण के शुरू में एक चुटकुला सुनाया। “एक वरिष्ठ प्रोफ़ेसर की एक बेटी थी। एक दिन जब वह सुबह घर पर नहीं दिखी तब प्रोफ़ेसर साहब ने खोजबीन शुरू की और उन्हें अपनी बेटी का पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि अब वह जीवन से ऊब गयी है, थक गयी है और जीना नहीं चाहती इसलिए कांकरिया झील में डूबने जा रही है। प्रोफ़ेसर ने जब उस पत्र को पढ़ा तो क्रोधित हो गया और सोचने लगा कि इतने वर्षों से मैं छात्रों को लगन से पढ़ा रहा हूँ और मेरी बेटी ही कांकरिया झील की स्पेलिंग ठीक नहीं लिख पा रही है।”

इसके बाद प्रधानमंत्री जी हंसने लगे, जाहिर है प्रधानमंत्री जब हंस रहे हों तब तथाकथित श्रोता जिसमें अनेक तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार भी थे, खिलखिलाकर हंसने लगे। इस भाषण का टीवी चैनलों से लाइव प्रसारण किया जा रहा था और इसे सोशल मीडिया पर भी खूब पोस्ट किया गया।

प्रधानमंत्री जी ने हमारे समाज के बेहद संवेदनशील मुद्दे का सरेआम मजाक उड़ाया और उसपर चुटकुला सुनाया – यह आश्चर्य का विषय कतई नहीं है। यह सब तो हम वर्ष 2014 से देख रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी को तो चारो तरफ बस विकास नजर आ रहा है - भूख, गरीबी, लाचारी, लैंगिक असमानता, प्रदूषण, सामाजिक विषमता, सामाजिक ध्रुवीकरण, आर्थिक तंगी जैसे मुद्दे तो उन्हें नजर ही नहीं आती, फिर गरीबी, आर्थिक तंगी या फिर बेरोजगारी के कारण होने वाली आत्महत्याएं कैसे नजर आयेंगीं? प्रधानमंत्री हैं, कुछ भी बोल सकते हैं। आश्चर्य तो यह है कि वरिष्ठ मीडिया जनों को आज भी सामान्य जनता प्रबुद्ध समझती है और ऐसे लोग भी प्रधानमंत्री के साथ आत्महत्या के चुटकुले पर ठहाका लगाते हैं। बीजेपी समर्थक ऐसे संवेदनहीन चुटकुले को प्रवचन मान कर सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं।

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2021 में देश में कुल 164033 लोगों ने आत्महत्या की, यानि हरेक दिन लगभग 450 व्यक्ति इस देश में आत्महत्या कर लेते हैं। केवल पांच राज्यों – महाराष्ट्र, तमिलनाडू, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक – में ही देश में कुल आत्महत्या में से 50 प्रतिशत से अधिक मामले दर्ज किये जाते हैं। इन पांच राज्यों में से तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार है। वर्ष 2020 और 2021 को मिलाकर देश में आत्महत्या के दर्ज मामले 3.17 लाख हैं। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि देश में आत्महत्या के सारे मामले दर्ज नहीं होते। देश में औसतन एक लाख आबादी में से 12 लोग आत्महत्या कर लेते हैं, जबकि चीन में यह आंकड़ा 6 का है। हमारे देश में कुल आत्महत्या के मामलों में 34.5 प्रतिशत संख्या 18 से 30 वर्ष के युवाओं की है, जबकि 31 प्रतिशत संख्या 31 से 45 वर्ष के उम्र के लोगों की है। आत्महत्या करने वालों में लगभग 26 प्रतिशत दैनिक श्रमिक हैं। जाहिर है, आत्महत्या करने वालों में 65 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जिनसे अर्थव्यवस्था में सीधे भागीदारी की उम्मीद है।

आत्महत्या के प्रमुख कारणों में आर्थिक तंगी, कर्जे का बोझ, बेरोजगारी, जाति आधारित भेदभाव और पढाई में पिछड़ना है। ऐसे व्यापक और संवेदनशील मुद्दे पर प्रधानमंत्री चुटकुले सुनाकर खिलखिलाकर हंसते हैं तो आश्चर्य तो नहीं होता पर मानसिक स्तर का पता जरूर चलता है। प्रधानमंत्री के इस चुटकुले की भर्त्सना करने वालों में प्रियंका गाँधी, राहुल गाँधी, आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा, शिव सेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी प्रमुख है।

प्रधानमंत्री के संवेदनहीन चुटकुले पर खिलखिलाकर हंसने वाले लोगों और पत्रकारों के मानसिक स्तर का और हास्य-विनोद का आकलन आप एक दूसरी घटना से कर सकते हैं। हाल में ही संयुक्त राष्ट्र ने बताया कि भारत जल्दी ही चीन को आबादी के मामले में पछाड़ देगा। इस घटना को दुनियाभर में प्रमुखता से मीडिया ने कवर किया। जर्मनी के एक समाचारपत्र, डर स्पिएजेल, के कार्टूनिस्ट ने इस विषय पर एक कार्टून प्रकाशित किया। इस कार्टून में एक सामान्य भारतीय रेल जो यात्रियों से अन्दर-बाहर, छत पर खचाखच भरी है जो एक चीनी बुलेट ट्रेन को क्रॉस कर आगे निकल जाती है।

बुलेट ट्रेन के इंजन के दो चालक आश्चर्य से खचाखच यात्रियों से भरी भारतीय रेल को आश्चर्य से देख रहे हैं। यह एक सामान्य सा कार्टून था और कहीं से भी भारत की खिल्ली उड़ाने जैसा तो इसे कतई नहीं कहा जा सकता। यहाँ अखिल भारतीय स्तर की परीक्षाओं के समय या फिर बड़े त्योहारों के समय रेल की छत पर, इंजन के किनारे के प्लेटफोर्म पर और दरवाजे से लटके यात्रियों से भरी ट्रेन का नजारा सामान्य है।

दूसरी तरफ यदि समग्र तौर पर इस कार्टून को देखें तो इसका एक मतलब यह भी है कि भारत सामान्य परिस्थितियों और तरीकों से भी चीन से आगे निकल रहा है। पर, इस कार्टून को वरिष्ठ पत्रकार और अब बीजेपी नेता कंचन गुप्ता समेत अनेक पत्रकारों और तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग ने आनन-फानन में नस्लवादी, उपनिवेशवादी सोच, भारत को नीचा दिखाने की साजिश, मोदी जी की विकासवादी सोच से जलन और इस तरह की मानसिकता करार दिया। कंचन गुप्ता की पत्रकारिता हकीकत से कितनी दूर रही होगी यह उनके वक्तव्य से जाहिर होता है – उन्होंने कहा कि यह कार्टून हकीकत के आसपास भी नहीं है। इलेक्ट्रॉनिक्स और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश जितनी तेजी से विकास कर रहा है उसपर शक करना बेवकूफी है और भारत की अर्थव्यवस्था जल्दी ही जर्मनी की अर्थव्यवस्था से बड़ी होगी।

आज हमारे देश के तथाकथित पत्रकारों की जो स्थिति है, वह तो समाचारपत्रों और न्यूज़चैनलों से स्पष्ट है। अब जनता के मुद्दे पूरी तरह से गायब हैं और पत्रकारिता का आधार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। प्रधानमंत्री के आधारहीन वक्तव्यों का आधार खोजना ही पत्रकारिता रह गयी है। जाहिर है, ऐसे में प्रधानमंत्री जब हसेंगें तब पत्रकार तब खिलखिलायेंगें और जब प्रधानमंत्री गंभीर होंगें तब पत्रकार उस विषय को कोसना शुरू करेंगें। इन पत्रकारों पर अब दुनिया हंस रही है।

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