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विमर्श

Mohan Bhagwat News: मंदिर आंदोलन से क्यों हाथ खींचना चाहती है RSS? भागवत के बयान से बीजेपी फायदे में

Janjwar Desk
3 Jun 2022 3:32 PM IST
RSS Chief Mohan Bhagwat : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में किसी की जात—पात नहीं पूछी जाती।
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RSS Chief Mohan Bhagwat : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में किसी की जात—पात नहीं पूछी जाती।

Mohan Bhagwat News: एक ओर जहां बीजेपी के नेता ज्ञानवापी के बाद मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पर आंदोलन चलाने की बात कर रहे हैं तो आरएसएस ने आंदोलन से हाथ क्यों खींच लिए?

Mohan Bhagwat News: संघ प्रमुख मोहन भागवत जब बोलते हैं तो उनकी बातें सरकार के लिए नजीर बन जाती हैं। लेकिन उनके बयान का भावार्थ निकालना खासा मुश्किल होता है कि आखिर वे कहना क्या चाहते हैं और उनके बयान के फौरी और दूरगामी अर्थ कैसे निकालें जाएं। गुरुवार को मोहन भागवत ने यह कहकर चौंका दिया कि राम जन्मभूमि के बाद आरएसएस आगे किसी भी आंदोलन का हिस्सा नहीं बनेगा।

सवाल यह है कि एक ओर जहां बीजेपी के नेता ज्ञानवापी के बाद मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पर आंदोलन चलाने की बात कर रहे हैं और खुद विश्व हिंदू परिषद भी इसे लेकर कमर कस रही है तो फिर आरएसएस ने आंदोलन से हाथ क्यों खींच लिए? सवाल यह भी है कि क्या मोहन भागवत का बयान बीजेपी के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में परेशानी का कारण बनेगा ? ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी तो चाहेगी कि ज्ञानवापी का विवाद अदालती प्रक्रिया में लंबा खिंचे, ताकि अगले साल 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 को होने वाले आम चुनाव तक यह मुद्दा देश में राजनीतिक ध्रुवीकरण में सहायक हो।

क्या कहा था मोहन भागवत ने?

भागवत ने यह बयान वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को केंद्र में रखकर दिया है। उन्होंने कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश नहीं करनी चाहिए। रोजाना एक नया मुद्दा खड़ा करना ठीक नहीं। हम इतिहास को नहीं बदल सकते। इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया है और न ही आज के मुसलमानों ने। उन्होंने साफ कर दिया कि 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या मामले पर फैसले के बाद आरएसएस का काम पूरा हो गया। आगे संघ किसी नए आंदोलन का हिस्सा बनने के बजाय चरित्र निर्माण पर काम करेगा। ज्ञानवापी विवाद पर अदालत का जो भी फैसला होगा, हमें मंजूर है।

जब 1959 में पहली बार उठा काशी विश्वनाथ मंदिर का मुद्दा

इतिहास को खंगालें तो आरएसएस ने पहली बार 1959 में काशी विश्वनाथ मंदिर का मुद्दा उठाया था। लेकिन अयोध्या में बाबरी ढांचे के विध्वंस के एक दशक से भी अधिक समय के बाद 2003 में संघ की ओर से एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें राम जन्मभूमि के साथ काशी विश्वनाथ और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को हिंदुओं को सौंपने की मांग की गई थी। मोहन भागवत ने कहा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का मुद्दा संघ के लिए कभी भी प्राथमिकता में नहीं रहा। हालांकि, आरएसएस, जनसंघ और बीजेपी के विभिन्न अधिवेशनों में पारित प्रस्तावों को देखें तो पता चलेगा कि तकरीबन सभी में तीनों मंदिरों का जिक्र किया गया है।

अब क्यों हाथ खींचना चाहती है आरएसएस?

आरएसएस ने 2003 में काशी, मथुरा और अयोध्या का पहली बार उल्लेख किया था। तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। उसके बाद से ही संघ ने काशी और मथुरा के मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन अपने किसी भी अनुषंगिक संगठन को इस पर बोलेने से नहीं रोका है। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि संघ दोनों मंदिरों के मुद्दे को लंबी अदालती प्रक्रिया में नहीं उलझाना चाहता है। संघ यह मानने लगा है कि राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद उसकी भूमिका सीमित हो चुकी है। उसे लगता है कि अगर बीजेपी काशी और मथुरा के मुद्दे पर आगे बढ़ना चाहती है तो यह उसकी राजनीतिक प्रतिबद्धता हो सकती है, लेकन आरएसएस की नहीं। भागवत ने गुरुवार को नागपुर में दिए गए बयान में बिना कहे इस ओर साफ इशारा किया है।

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