भारत के खिलाफ जाकर पहले नया नक्शा पास फिर मारी 5 भारतीयों को गोली, आखिर क्या चाहता है नेपाल
पीयूष पंत का विश्लेषण
जनज्वार। इधर जब भारत का गोदी मीडिया प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पड़ोसी देश चीन को सबक सिखाने और चीन के पीछे हट जाने की गरमा-गरम बहस छेड़े हुआ था, उसी समय भारत का एक अन्य पड़ोसी देश अपनी संसद द्वारा नए राजनीतिक नक़्शे को सहमति दिला भारत को मुंह चिढ़ाने की कोशिश कर रहा था।
मंगलवार 9 जून को नेपाली संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा ने नेपाल के नए राजनीतिक नक्शे और नए प्रतीक चिन्ह को अपनाने के लिए सरकार द्वारा प्रस्तावित संविधान संशोधन पर आम सहमति बना ली।
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक आज शुक्रवार 12 जून को बिहार में सीतामढ़ी के सोनबरसा में भारत-नेपाल सीमा पर शुक्रवार को नेपाली पुलिस ने पांच भारतीयों को गोली मार दी, जिसमें 25 वर्षीय विकेश कुमार नाम के युवक की मौत हो गई। तीन अन्य जख्मी लोगों को पास के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इसके अलावा एक जख्मी युवक को नेपाल पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।
जानकारी के मुताबिक यह घटना उस वक्त की है जब पिपरा परसाइन पंचायत के लालबंदी जानकी नगर बॉडर पर कई लोग खेत में काम कर रहे थे। तभी अचानक नेपाल की सशस्त्र पुलिस ने उन पर फायरिंग की। नेपाल प्रहरी ने आरोप लगाया है कि हथियार छीनने की कोशिश के दौरान गोली मारी है। फिलहाल एसएसबी पूरे मामले की छानबीन कर रही है।
गौरतलब है कि भारत और नेपाल के बीच फिलहाल नक्शा को लेकर तनातनी चल रही है और उसी बीच सीमा पर गोलीबारी की इस घटना का सामने आना तनाव को और बढ़ायेगा। नेपाल के नए नक्शे में कालापानी और लिपुलेख को शामिल किए जाने के बाद दोनों देशों के बीच सीमा संबंधी विवाद पर बातचीत को लेकर संशय हो गया है। इस नए नक्शे में नेपाल ने कुल 395 वर्गकिलोमीटर के इलाके को अपने हिस्से में दिखाया है। इसमें लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी के अलावा गुंजी, नाभी और काटी गांव भी शामिल हैं।
9 जून को प्रतिनिधि सभा में संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर बहस हुई थी और अंत में इसे स्वीकार कर लिया गया। सभी पार्टियों ने एक सुर में इस प्रस्ताव का समर्थन किया जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को भी नेपाल का हिस्सा बताया गया है जो भारत के मुताबिक उसका क्षेत्र है। हालांकि इस बारे में संसद के दूसरे सदन में अभी और बहस होनी बाकी है। साथ ही संविधान संशोधन के औपचारिक मसौदे पर वोटिंग भी होनी है।
गौरतलब है कि संविधान संशोधन की ज़रुरत इसलिए आन पडी क्योंकि नेपाल की ओली सरकार ने पिछले मई महीने के अंत में नेपाल का एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था जिसमें आधिकारिक रूप से 1816 में हुई सुगौली संधि के तहत लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र के रूप में दिखाया है। नये नक़्शे में भारत का 395 किलोमीटर इलाक़ा शामिल किया गया है।
वैसे प्रतिनिधि सभा में संविधान संशोधन को स्वीकृति मिलना बड़ी बात है क्योंकि ओली सरकार को निचले सदन में ज़रूरी दो तिहाई बहुमत नहीं हासिल है। 275 सदस्यों वाले सदन में इसके 174 सदस्य हैं। हालाँकि दूसरे सदन राष्ट्रीय सभा में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी को ज़रूरी बहुमत हासिल है। 59 सदस्यों वाले सदन में इसकी संख्या 50 है। वैसे प्रतिनिधि सभा में 63 सदस्यों वाले विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस का समर्थन प्राप्त कर इसने दो तिहाई बहुमत का आंकड़ा छू लिया। हालांकि इस मसले पर बाद में सरकार को मधेसी समेत सभी दलों का समर्थन हासिल हो गया।
संशोधन का समर्थन करते हुए जनता समाजबादी पार्टी के नेता राजेंद्र श्रेष्ठ ने संसद में कहा कि राष्ट्रीय संप्रभुता और अखंडता के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होना चाहिए। नेपाली कांग्रेस के मुख्य सचेतक ने कहा कि उनकी पार्टी पहले ही संशोधन का समर्थन करना तय कर चुकी है लेकिन हम यह भी चाहते हैं कि सरकार को भारत के साथ कूटनीतिक बातचीत शुरू करने की दिशा में प्रयास तेज करने चाहिए।
किसी भी संवैधानिक संशोधन को दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास होना ज़रूरी है। यह संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद राष्ट्रपति बिध्या देवी भंडारी के अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा। उनके हस्ताक्षर होने के बाद ही यह क़ानून बन पाएगा। इसलिए पूरी प्रक्रिया में कुछ दिन का समय और लग सकता है।
गौरतलब है कि नेपाल में संविधान संशोधन प्रस्ताव स्वीकृत हो जाने के बाद सांसदों को प्रस्ताव में संशोधन लाने के लिए 72 घंटे का समय दिया जाता है। उसके बाद विधेयक को दोनों सदनों में वोटिंग के लिए पेश किया जाता है।
लेकिन सरकार चला रही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य और विदेश मामलों के विभाग में डेपुटी चीफ बिष्नु रिज़ाल ने ट्विट करते हुए लिखा- "आज तक किसी ने भी नवीनीकृत नक़्शे का विरोध करने की हिम्मत नहीं की है। इसलिए सांसदों की तरफ से कोई संशोधन नहीं आएगा और सभी सांसद विधेयक का समर्थन करेंगे।"
उधर संसद में कुछ विपक्षी सांसदों द्वारा भारत-नेपाल रिश्तों पर चिंता जताने पर नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली ने कहा,"हम थोड़े सदमे में हैं क्योंकि सीमा विवाद को बातचीत से सुलझाने के हमारे प्रस्ताव का कोई जवाब नहीं मिला। अगर भारत और चीन अपने मसले सुलझा सकते हैं, तो ऐसा कोई कारण नहीं है कि नेपाल और भारत ऐसा ना कर सकें। हमें उम्मीद है कि बहुप्रतीक्षित बातचीत जल्दी ही हो पाएगी।"
अगर नेपाली मीडिया की मानें तो काठमांडू ने दिल्ली से विदेश सचिव स्तर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बातचीत करने का अनुरोध किया है, ताकि दोनों देशों के बीच एक बार फिर विश्वास पैदा हो सके।
लेकिन भारत का कहना है कि उन्होंने काठमांडू को सूचित कर दिया है कि सीमा विवाद को लेकर कोई भी बात कोविड 19 महामारी के ख़त्म हो जाने के बाद ही संभव हो पाएगी।
ऐसे परिदृश्य में सबसे मज़ेदार बात तो ये है कि जहां नेपाल की संसद नए नक़्शे सम्बन्धी नेपाल की सरकार के प्रस्ताव को स्वीकृति देने की तैयारी कर रही थी, वहीं भारत का गोदी मीडिया प्रधानमंत्री मोदी के दबदबे की बात करते हुए ये बताने की कोशिश में लगा था कि नेपाल भारत से डरकर अब बातचीत की मेज पर आना चाहता है।
यह भी कहा जाने लगा कि चीन के प्रभाव में आ कर अलग रास्ते पर निकले नेपाल के कदम लौटते दिख रहे हैं। एक हिंदी राष्ट्रीय दैनिक ने तो बाकायदा ये हेडलाइन लगाई थी, 'आखिर समझ गया नेपाल, अब बातचीत के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग को भी तैयार'