7 करोड़ अमेरिकी खबरों की दुनिया से दूर, मात्र 3 सालों में बंद हो चुके हैं 360 मीडिया संस्थान, फेसबुक की खबरों पर बढ़ रहा भरोसा
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
अमेरिका में किये गए एक अध्ययन के अनुसार वहां वर्ष 2019 के अंत से मई 2022 तक के बीच हरेक सप्ताह औसतन 2 समाचारपत्र या वेब न्यूज़ पोर्टल बंद हो रहे हैं। इनमें से अधिकतर के बंद होने का कारण आर्थिक तंगी है, और अधिकतर बंद होने वाले मीडिया हाउस अपेक्षाकृत गरीब इलाकों में स्थित थे और इन्हीं इलाकों में समाज का सबसे शोषित और उपेक्षित वर्ग रहता है।
जाहिर है शहरों की अमीर आबादी के लिए स्थानीय समाचार उपलब्ध हैं, पर सर्वहारा वर्ग से यह सुविधा छिनती जा रही है। यह एक नए किस्म की सामाजिक असमानता है, जिस पर अमेरिका में प्रकाशित "स्टेट ऑफ़ लोकल मीडिया 2022" (State of Local Media 2022) नामक रिपोर्ट में विस्तार से चर्चा की गयी है। इस रिपोर्ट को नार्थवेस्टर्न्स मेडील्ल स्कूल ऑफ़ जर्नलिज्म, मीडिया एंड इंटीग्रेटेड मार्किट कम्युनिटीज (Northwestern's Medill School of Journalism, Media & Integrated Market Communities) ने तैयार किया है।
इस रिपोर्ट में वैसे इलाकों जहां स्थानीय समाचार उपलब्ध नहीं हैं, को न्यूज़ डेजर्ट (News Desert) यानि समाचार रेगिस्तान का नाम दिया गया है। दुखद यह है कि न्यूज़ डेजर्ट हमेशा गरीब और वंचित इलाकों में ही पनपते हैं। वैसे तो यह रिपोर्ट अमेरिका में मीडिया की स्थिति पर आधारित है, पर यही वास्तविकता आज पूरी दुनिया झेल रही है।
इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 के अंत से मई 2022 के बीच अमेरिका में 360 समाचारपत्र या वेब न्यूज़ पोर्टल बंद हो चुके हैं। वर्ष 2005 के बाद से अबतक अमेरिका के लगभग एक-चौथाई समाचारपत्र बंद किये जा चुके हैं, और अनुमान है कि वर्ष 2025 तक एक-तिहाई समाचारपत्र बंद हो चुके होंगे। इनमें से अधिकतर बंद हो चुके समाचारपत्रों का प्रिंट या डिजिटल स्वरूप की वापसी की कोई उम्मीद नहीं है।
अमेरिका की 7 करोड़ आबादी जो पूरी आबादी का 20 प्रतिशत है, ऐसे इलाकों में रहती है जहां या तो कोई मीडिया संस्थान नहीं है, या फिर केवल एक मीडिया संस्थान है जो बंद होने के कगार पर है। इस रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के 211 काउंटी में, जो कुल काउंटी का 7 प्रतिशत है, में कोई भी स्थानीय समाचारपत्र नहीं है। इससे जमीनी स्तर पर प्रजातंत्र खोखला होता है।
इस संस्थान के प्रोफ़ेसर पेनेलोप म्युज अबेरनथी (Prof Penelope Muse Abernathy) के अनुसार न्यूज़ डेजर्ट का दायरा तेजी से बढ़ रहा है। यह स्थिति समाज और प्रजातंत्र के लिए खतरनाक है। आर्थिक तौर पर संघर्ष करते और राजनैतिक तौर पर वंचित समाज, जिन्हें स्थानीय समाचारों की सबसे अधिक जरूरत है, ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां मीडिया संस्थान स्थापित करना, समाचारपत्र या डिजिटल न्यूज़ निकालना आर्थिक सन्दर्भ में सबसे कठिन काम है।
बहुत सारे अनुसंधान बताते हैं कि सशक्त स्थानीय मीडिया संस्थानों से वंचित इलाकों में लोग मतदान की प्रक्रिया से उदासीन होते हैं और ऐसे क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबाला होता है। ऐसे मीडिया संस्थान के अभाव में झूठी और भ्रामक खबरें प्रचारित होती हैं, समाज का राजनीतिक तौर पर ध्रुवीकरण हो जाता है और लोगों का मीडिया से भरोसा ख़त्म होने लगता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका में अधिकतर समाचार पत्र जिनकी प्रिंट प्रतियां लोगों तक पहुँचती थी, अब बंद होने लगे हैं पर इसी बीच 64 नई डिजिटल समाचार साइट्स आ गयी हैं। ऐसी सभी साइट्स शहरों तक ही सीमित हैं और जाहिर है स्थानीय, ग्रामीण और वंचित समाज की खबरें इनसे गायब रहती हैं। अधिकतर प्रिंट संस्करण में बिकने वाले समाचारपत्र आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। कुछ बंद हो गए हैं और जो चल रहे हैं उनमें भी कर्मचारियों की छंटनी की जा रही है, उनके वेतन और सुविधाओं में कटौती की जा रही है और अब कम प्रतियां प्रकाशित की जा रही हैं।
कम प्रतियां केवल उच्च वर्ग तक ही पहुँच पाती हैं। अमेरिका के सबसे बड़े 100 समाचारपत्रों में से 40 ऐसे हैं जिनका प्रकाशन सप्ताह में 6 दिन या इससे भी कम किया जाता है और 11 समाचार पत्रों की प्रतियां तो सप्ताह में 2 दिन ही प्रकाशित की जाती हैं। कुछ समाचार पत्र तो अब केवल न्यूज़लैटर की तरह ही प्रकाशित किये जा रहे हैं। व्यापक प्रसार संख्या वाले पर आर्थिक तंगी से जूझने वाले मीडिया संस्थान तेजी से बिकते जा रहे हैं और इन्हें खरीदने वाले एक या दो व्यापारिक संस्थान ही हैं – इसके कारण अब मीडिया पर कुछ व्यापारिक संस्थानों का ही कब्ज़ा होता जा रहा है।
15 जून 2022 को यूनाइटेड किंगडम के संसद में यूनिवर्सिटी ऑफ़ लन्दन के डिपार्टमेंट ऑफ़ जर्नलिज्म की तरफ से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी है। जिसके अनुसार यूनाइटेड किंगडम में भी न्यूज़ डेजर्ट का दायरा बढ़ता जा रहा है और अब जनता समाचारपत्रों के अभाव में फेसबुक की खबरों पर भरोसा करने लगी है। मजबूत प्रजातंत्र के लिए तथ्यात्मक और निष्पक्ष समाचार जरूरी हैं, पर इनका अभाव हो चला है और दुनिया से प्रजातंत्र भी ख़त्म हो रहा है।