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विमर्श

Nitish Kumar Biography: इंजीनियर से बिहार की राजनीति के चाणक्य बने नीतीश कुमार की एक ऐसी कहानी, जिसने इन्हें बनाया महिलाओं का चहेता

Janjwar Desk
30 March 2022 5:48 PM IST
Nitish Kumar Biography: इंजीनियर से बिहार की राजनीति के चाणक्य बने नीतीश कुमार की एक ऐसी कहानी, जिसने इन्हें बनाया महिलाओं का चहेता
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Nitish Kumar Biography: इंजीनियर से बिहार की राजनीति के चाणक्य बने नीतीश कुमार की एक ऐसी कहानी, जिसने इन्हें बनाया महिलाओं का चहेता

Nitish Kumar Biography in hindi: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जुड़ी एक ऐसी कहानी जिसने इनके जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया। यहीं तक नहीं महिलाओं के नजर में छा गए। जिसका लाभ आज भी उन्हें महिलाओं के वोट बैंक के रूप में आज भी मिल रहा है।

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

Nitish Kumar Biography in hindi: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जुड़ी एक ऐसी कहानी जिसने इनके जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया। यहीं तक नहीं महिलाओं के नजर में छा गए। जिसका लाभ आज भी उन्हें महिलाओं के वोट बैंक के रूप में आज भी मिल रहा है।

बिहार की राजनीति के चाणक्य यू हीं नहीं कहे जाते हैं ,नीतीश कुमार। राज्य के दो प्रमुख दलों के बाद सदन में सदस्य संख्या के मामले में मौजूदा समय में तीसरा स्थान है। इसके बाद भी सत्ता की कमान कम सदस्य होने के बावजूद पिछले सत्रह साल से नीतीश कुमार के हाथ में है। एक इंजीनियर से राज्य की सत्ता के शिखर तक का सफर तय करनेवाले नीतीश कुमार के साथ राजनीतिक सफलता के ढेरो किस्से जुड़े हुए हैं।

यहां बात कर रहे हैं 14 नवंबर 2016 की। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी के छह माह पूर्ण होने पर पटना में एक लोक संवाद कार्यक्रम रखा था। जिसमें पत्रकार,साहित्यकार,चिकित्सक समेत समाज के विभिन्न हिस्सों से आए लोगों ने हिस्सा लिया। तकरीबन एक घंटे के संबोधन में विस्तार से शराबबंदी को लेकर अपनी मंशा जाहिर की। उन्होंने पटना में अपने छात्र जीवन के दौरान के कई संदर्भों को सुनाते हुए पूर्ण शराबबंदी की आवश्यकता जताई। इन्हीं संदर्भों में एक बात उन्होेंने बताई कि मैं पटना के जिस मोहल्ले में रहता था। उसी में म्यूनिशिपल्टी के कर्मचारियों का परिवार भी रहता था। बकौल मुख्यमंत्री, मैने देखा कि हर माह के अंतिम सप्ताह में इन कई परिवारों में झगड़े की आवाज सुनाई देती है। हमने जब इसकी तहकीकात किया तो पाया कि ये आदतन शराबी लोग हैं। जिनकी कमाई माह का अंत आने के पहले ही खत्म हो जाती है। ऐसे में परिवार के सदस्यों के साथ शराब खरीदने के लिए झगड़ते रहते हैं। जिसका सर्वाधिक दंश महिलाएं झेलती हैं। ऐसे में हमने तय किया कि भविष्य में कभी भी अवसर मिला तो पूर्ण शराबबंदी करूंगा। अपने इसी संकल्प को नीतीश कुमार ने पूरा किया। जिसका नतीजा रहा कि सर्वाधिक पीड़ित महिलाओं के बड़े हिस्से को प्रभावित किया। जिसका वोट के रूप में लाभ मिलते रहा है।

अब वही नीतीश कुमार विभिन्न संदर्भों को लेकर चर्चा में बने रह रहे हैैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ पटना जिले के बख्तियारपुर में 27 मार्च दिन रविवार को एक अप्रिय वारदात हुई। बख्तियारपुर में मुख्यमंत्री का घर है और यहां उनकी जन्मस्थली भी है। पिछले कुछ दिनों से वे लगातार इस क्षेत्र में भ्रमण पर निकल रहे थे। शाम को स्वतंत्रता सेनानी शीलभद्र याजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने पहुंचे। इसी दौरान एक युवक सुरक्षा घेरा को तोड़ते हुए अचानक मुख्यमंत्री के करीब तक पहुंच गया। युवक के मंसुबे को सुरक्षा अधिकारी समझ पाते उसके पहले ही उसने मुख्यमंत्री पर पीछे से वार कर दिया। हालांकि वह निहत्था था, बावजूद उसका हावभाव मुख्यमंत्री को नुकसान पहुंचाने का दिख रहा था।

सुरक्षा कर्मियों ने जब युवक को दबोचा, तो सीएम खुद पर हमला करने आए शख्स को बचाने की कोशिश करते नजर आए। मुख्यमंत्री सुरक्षा कर्मियों को समझाते नजर आए, ताकि वे युवक के साथ उग्र व्यवहार नहीं करें।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमले की यह कोई पहली घटना नहीं है। इसके पूर्व नवंबर 2020 में विधान सभा चुनाव के दौरान मधुबनी के हरलाखी में रैली को संबोधित करने के दौरान हुई थी। नौकरियों की उनके द्वारा बात करने पर भीड़ में से किसी युवक ने उनपर प्याज फेंका। लेकिन जब हमलावर को सुरक्षाकर्मियों ने पकड़ लिया,तो नीतीश कुमार ने कहा,उसे जाने दो,उस पर ध्यान मत दो।

नीतीश कुमार पर हमले की इन कहानियों के साथ ही इनके चर्चा में बने रहने के और भी कारण गिनाये जा रहे हैं। फरवरी माह में उनके राष्टपति बनने के कयासों को लेकर चर्चा चलती रही। जिस पर आरजेडी समेत अन्य कई विपक्षी दलों ने भी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह राज्य के लिए सौभाग्य की बात होगी,तो किसी ने कहा कि इसी बहाने भाजपा की प्रदेश राजनीति से नीतीश कुमार को बेदखल करने की कोशिश है। इसके बाद मार्च आने पर सदन की कार्रवाई के दौरान विधान सभा अध्यक्ष के कार्य प्रणाली पर नीतीश कुमार के सवाल उठाते हुए तल्ख टिप्पणी करने को लेकर चर्चा में रहे। दोनों लोगों के बीच संवाद ने ऐसी कड़वाहट पैदा कि,दूसरे दिन विधान सभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा सदन में आने के बाद भी अपनी कुर्सी पर बैठकर कार्यवाही का संचालन करने के बजाए अपने कक्ष में ही बैठे रह गए। इस बीच पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद राज्य में भाजपा के चले आॅपरेशन अभियान का नतीजा रहा कि वीआईपी के मुखिया मुकेश सहनी के सभी विधायक दल से नाता तोड़कर भाजपा में चले गए। इसके बाद से हम के मुखिया जीतन राम मांझी भी सकते में है। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खामोशी का चादर ओढ़े रखा।

पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मणिलाल कहते हैं कि नीतीश कुमार राजनीतिक मौसम के लिहाज से फैसला लेने में पीछे नहीं रहे। पहली बार वे कुछ फंसे से नजर आ रहे हैै। सत्ता समीकरण के लिहाज से भाजपा मजबूरी में राज्य की कमान नीतीश कुमार को दे रखी है। उधर मुख्यमंत्री भी लगातार छटपटाहट महसूस कर रहे हैं। इस दौर में मुख्यमंत्री समाज सुधार का अपना अभियान छेड़कर चर्चा में बने रहने के लिए अलग रास्ता तलाश कर ली है। ऐसे में उन पर हमले की घटनाओं को युवाओं के आक्रोश के रूप में देखा जा सकता है।

इंकलाबी नौजवान सभा के पूर्व राष्टीय अध्यक्ष व भाकपा माले विधायक अमरजीत कुशवाहा का कहना है कि बिहार अभूतपुर्ण संकट से जूझ रहा है। बेरोजगारी के चलते नौजवानों में हताशा व आक्रोश बना हुआ है। बढ़ते अपराध के चलते लोग अपने असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। मुख्यमंत्री पर हाल में हमले की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसे कारनामों को अंजाम देनेवालों की निंदा होनी चाहिए। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि ऐसे हालात आखिर पैदा क्यों हो रहे हैं। इसे युवाआंे के आक्रोश के रूप में देखा जा सकता है।

एएन सिन्हा इंस्टीटयूट आॅफ सोशल स्टडीज पटना के असिस्टेंट प्रोफेसर विद्यार्थी विकास कहते हैं कि बिहार की खराब कानून व्यवस्था व बेरोजगारी को लेकर युवाओं में आक्रोश है। जिसके नतीजे के रूप में कुछ घटनाएं परिलक्षीत हो रही है। बिहार में पुलिस प्रोस्टिटयूशन सेल प्रभावी नहीं है। जिसका काम मुकदमों में आरोपियों को सजा दिलाने के लिए प्रयास करना है। पुलिस व न्यायीक सेक्टर के बीच आपसी समन्वय के अभाव के चलते मुकदमों की समुचीत पैरवी नहीं हो पाती है। पुलिस अधिकारी भी कहते हैं कि न्यायालयों से वारंट जारी कराने की कोशिश में आमतौर पर निराशा हाथ लगती हैै। लिहाजा पाक्सो एक्ट तक के मामलों में त्वरित कार्रवाई नहीं हो पाती है। ऐसे में अपराधियों पर तेजी कार्रवाई न होने से कानून का भय नहीं पैदा हो पाता है। दूसरी तरफ बेरोजगारी बड़ा सवाल है। रोजगार न मिलना व चयन प्रक्रिया को लंबे समय तक टालने के चलते भी युवाओं में आक्रोश है। साथ ही शिक्षा व्यवस्था की खामियां भी दूरगामी प्रभाव डाल रही है। इन सबके नतीजों को आक्रोश के रूप में सरकार व उनके मुखिया को झेलना ही पड़ेगा।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इन सवालों पर फेल होने के कारण ये पहली बार भले ही फंसे हुए नजर आ रहे हैं,पर उनके समकक्ष के नेताओं में देखें तो उनके साथ उपलब्धियों की लंबी लिस्ट है। बिहार के पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले नीतीश कुमार का जन्म साल 1951 में हुआ था। नीतीश के राजनीतिक करियर की शुरूआत साल 1977 में हुई थी। इस साल नीतीश ने जनता पार्टी के टिकट पर पहला विधानसभा चुनाव लड़े। साल 1985 को नीतीश बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए। साल 1987 में नीतीश कुमार बिहार के युवा लोकदल के अध्यक्ष बन गए। 1989 को नीतीश कुमार को जनता दल (बिहार) का महासचिव बना दिया गया। इस साल नीतीश 9वीं लोकसभा के लिए चुने गए। इसके बाद साल 1990 में नीतीश अप्रैल से नवंबर तक कृषि एवं सहकारी विभाग के केंद्रीय राज्य मंत्री रहे। साल 1991 में दसवीं लोकसभा का चुनाव हुए नीतीश एक बार फिर से संसद में पहुंचे। करीब दो साल बाद 1993 को नीतीश को कृषि समित का चेयरमैन बनाया गया। साल 1996 में नीतीश कुमार 11वीं लोकसभा के लिए चुने गए। नीतीश साल 1996-98 तक रक्षा समिति के सदस्य भी रहे। साल 1998 ने नीतीश फिर से 12वीं लोकसभा के लिए चुने गए। 1998-99 तक नीतीश कुमार केंद्रीय रेलवे मंत्री भी रहे। एक बार फिर 1999 में नीतीश कुमार 13वीं लोकसभा के लिए चुने गए। इस साल नीतीश कुमार केंद्रीय कृषि मंत्री भी रहे। साल 2000 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। उनका कार्यकाल 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक चला। साल 2000 में नीतीश एक बार फिर से केंद्रीय कृषि मंत्री बने। साल 2001 से 2004 तक नीतीश केंद्रीय रेलमंत्री रहे। साल 2002 के गुजरात दंगे भी नीतीश कुमार के कार्यकाल के दौरान हुए थे। साल 2004 में नीतीश 14वीं लोकसभा के लिए चुने गए। साल 2005 में नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने। बतौर 31वें मुख्यमंत्री नीतीश का ये कार्यकाल 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक चला। 26 नवंबर 2010 को नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने। मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने एनडीए से काफी पुराना नाता तोड़ लिया था। इनकी यह कोशिश अपनी सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने की थी। इसमें वे काफी हद तक सफल हुए। लेकिन बदली परिस्थितियों में अब भाजपा के साथ नाता जोड़कर सरकार चला रहे हैं। हालांकि यह रिश्ता कितने दिन तक चल पाएंगे इसको लेकर अनिश्चितता बना हुआ है।

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