हमारे देश का भूख से बिलबिलाता आदमी भी अडानी और अम्बानी की अंधाधुंध बढ़ती संपदा पर बजाता है ताली
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देश में बढ़ती आर्थिक असमानता पर महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Modi government is making richer to rich and poorer to poor – a unique development where country's wealth and number of poor both are increasing. बीजेपी कार्यकारिणी बैठक के बाद 16 जनवरी को शाम में प्रेस कांफ्रेंस करते हुए रविशंकर प्रसाद ने बड़ी देर तक बताया कि सबसे अंतिम आदमी का उद्धार ही माननीय प्रधानमंत्री जी का सपना है और यह सपना उनके हरेक कार्य और योजना में दिखता है। दूसरी तरफ ठीक इसी दिन सुबह ऑक्सफेम इंडिया ने दावोस में एक रिपोर्ट रिलीज़ की थी, जिसका शीर्षक है – सर्वाइवल ऑफ़ द रिचेस्ट: द इंडिया स्टोरी।
इसके अनुसार आर्थिक सन्दर्भ में देश में सबसे ऊपर की 5 प्रतिशत आबादी के पास देश की 60 प्रतिशत सम्पदा है, जबकि सबसे नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के पास सम्मिलित तौर पर महज 3 प्रतिशत सम्पदा है। वर्ष 2012 से 2021 के बीच देश की संपदा में जितनी बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी, उसमें से 40 प्रतिशत से अधिक सबसे अमीर 1 प्रतिशत आबादी के हिस्से में आया, जबकि सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी को इसका 3 प्रतिशत हिस्सा ही मिला।
हमारे देश में वर्ष 2020 में कुल 102 अरबपति थे, पर वर्ष 2022 में इनकी संख्या बढ़कर 166 तक पहुँच गयी। देश के सबसे अमीर 100 लोगों के पास सम्मिलित तौर पर 54.12 लाख करोड़ रुपये की संपदा है, यह राशि हमारे देश के वार्षिक केन्द्रीय बजट से डेढ़ गुना ज्यादा है। दूसरी तरफ देश में भूखे, बेरोजगार और महंगाई की मार झेलती आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 2018 में देश में 19 करोड़ भूखे लोग थे, जिनकी संख्या वर्ष 2022 तक 35 करोड़ तक पहुँच गयी। केंद्र सरकार के आंकड़ों में भी देश में भुखमरी बढ़ती जा रही है। पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया था कि देश में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की कुल मौतों में से 65 प्रतिशत का कारण भूख और कुपोषण है।
देश के सबसे अमीर 10 लोगों की कुल संपदा वर्ष 2020 में 27.52 लाख करोड़ रुपये के समतुल्य थी, पर वर्ष 2021 में इस संपदा में 32.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी। यह ऐसा दौर था जब देश के आबादी कोविड 19 के दौर में भूख और बेरोजगारी झेल रही थी। वर्ष 2020 से नवम्बर 2022 के बीच देश के अरबपतियों की कुल सम्पदा में 121 गुना बृद्धि दर्ज की गयी, यानि हरेक दिन इस संपत्ति में लगभग 3608 करोड़ रुपये बढ़ाते गए। इसी दौर में देश में गरीबों की संख्या सर्वाधिक, 22.89 करोड़ थी। देश की सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल संपदा में से 80 प्रतिशत संपदा है, जबकि सबसे अमीर 30 प्रतिशत आबादी के पास 90 प्रतिशत सम्पदा है।
वर्ष 2019 में सरकार ने अमीरों को एक तोहफा दिया था – कॉर्पोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया था, और नई कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए टैक्स 15 प्रतिशत कर दिया था। इससे केंद्र सरकार को 1.84 लाख करोड़ का घाटा उठाना पड़ा, पर सरकार ने रोजमर्रा काम आने वाली अनेक आवश्यक उत्पादों पर जीएसटी बढ़ाकर और पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाकर इसकी भरपाई की। केंद्र सरकार के इन निर्णयों से सबसे अधिक प्रभावित गरीब और मध्यम वर्ग ही हुआ।
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति के कारण महंगाई का असर शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की तुलना में आमदनी 50 प्रतिशत से भी कम है। इसी तरह अनुसूचित जाति के लोगों की आमदनी सवर्णों की तुलना में 55 प्रतिशत भी नहीं है। पुरुषों के एक रुपये की आमदनी की तुलना में महिलाओं को महज 63 पैसे ही मिलते हैं।
देश में करों का सबसे अधिक बोझ सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी पर है – जिनके पास देश की कुल संपदा में से 3 प्रतिशत ही है। यह आबादी देश के खजाने में जाने वाले कुल अप्रत्यक्ष कर में से 64.3 प्रतिशत जमा करती है, जबकि कुल जीएसटी में इसका योगदान दो-तिहाई का है। जीएसटी में सर्वाधिक अमीर 10 प्रतिशत आबादी का योगदान महज 2 से 3 प्रतिशत तक ही है।
रिपोर्ट के अनुसार खाड़ी देश के सर्वाधिक अमीर 10 लोगों पर 5 प्रतिशत का टैक्स लगा दिया जाए तब इससे इतना धन एकत्रित किया जा सकता है, जिससे देश के सभी बच्चों को शिक्षा दी जा सकती है। अकेले गौतम अडानी पर ऐसा टैक्स लगाया जाए, तब भी वर्ष 2017 से 2021 की कमाई से इतना टैक्स जमा किया जा सकता था, जिससे लगभग 50 लाख शिक्षकों को हरेक वर्ष वेतन दिया जा सकता है। यदि देश के सभी अरबपतियों की कुल संपदा पर एक बार 2 प्रतिशत का टैक्स लगाया जाए, तब लगभग 40423 करोड़ रुपये जमा होंगे – इससे सभी कुपोषित आबादी का पोषण अगले तीन वर्षों के लिए किया जा सकता है।
ऑक्सफेम से पहले भी तमाम रिपोर्ट देश में फ़ैली भयानक आर्थिक असमानता से हमें मिलाती है, पर देश और मीडिया की मानसिकता इस कदर गुलाम हो चुकी है कि यहाँ भूख से तड़पता आदमी भी अडानी और अम्बानी की अंधाधुंध बढ़ती संपदा पर ताली बजाता है। मोदी सरकार जिस अंतिम आदमी के विकास की बात करती है उसका नाम गौतम अडानी है।