पाकिस्तान और म्यांमार से भी ज्यादा दुखी है मोदी जी का विकसित भारत, वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में लगातार जा रहा पीछे
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Despite tall claims made by our Prime Minister, we are at the near bottom of Happiness Index – even Pakistan and Myanmar is better placed in the Index. ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी का वेलबीइंग रिसर्च सेंटर, संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट सौल्युशंस नेटवर्क और गैलप के सहयोग से हरेक वर्ष वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट प्रकाशित करता है और हाल में ही प्रकाशित इसके 2024 के संस्करण में भारत का स्थान कुल 143 देशों में 126वां है, पिछले वर्ष भी भारत इसी स्थान पर था।
वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स पिछले बारह वर्षों से प्रकाशित किया जा रहा है और भारत लगातार इस सूची में लगातार सबसे पिछले देशों के साथ ही खड़ा रहता है। भारत का पिछड़ना इसलिए भी आश्चर्य का विषय है, क्योंकि यहाँ प्रचंड बहुमत वाली ऐसी सरकार है जो लगातार जनता की हरेक समस्या सुलझाने का दावा करती रही है। सत्ता के अनुसार उसने पानी, बिजली, कुकिंग गैस और इसी तरह की बुनियादी सुविधाएं हरेक घर में पहुंचा दी है, पर इंडेक्स तो यही बताता है कि दुनिया के सबसे दुखी देशों में हम शामिल हैं। इस इंडेक्स में तो हम पाकिस्तान और लगातार अशांत रहे म्यांमार से भी पीछे हैं।
इस इंडेक्स में हमेशा की तरह यूरोप के नोर्डिक देश सबसे आगे हैं। सबसे खुश देशों में लगातार सातवीं बार फिनलैंड प्रथम स्थान पर है, इसके बाद डेनमार्क, आइसलैंड, स्वीडन, इजराइल, नीदरलैंड, नॉर्वे, लक्सेम्बर्ग, स्विट्ज़रलैंड, और ऑस्ट्रेलिया हैं। पहले 10 देशों में केवल ऑस्ट्रेलिया और इजराइल ही नार्डिक देशों में शामिल नहीं हैं। इंडेक्स में सबसे नीचे के स्थान पर अफ़ग़ानिस्तान है, इससे पहले क्रम से लेबनान, लेसोथो, सिएरा लियॉन, कांगो, ज़िम्बाब्वे, मलावी, एस्वतिने और ज़ाम्बिया हैं। भारत के पड़ोसी देशों में सबसे अच्छे स्थान पर चीन है, यह इंडेक्स में 60वें स्थान पर है. नेपाल, पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका और बांग्लादेश इस इंडेक्स में क्रमशः 93, 108, 118, 128 और 129वें स्थान पर हैं।
इस इंडेक्स में पहली बार अमेरिका और जर्मनी जैसे देश शुरुआती 20 देशों की सूची के बाहर हैं, जबकि कुवैत और कोस्टारिका जैसे देश पहली बार शीर्ष 20 देशों में शामिल हैं। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था में शामिल देशों में कनाडा 15वें, यूनाइटेड किंगडम 20वें, अमेरिका 23वें, जर्मनी 24वें, मेक्सिको 25वें, फ्रांस 27वें, ब्राज़ील 44वें, जापान 51वें, दक्षिण कोरिया 52वें और दक्षिण अफ्रीका 83वें स्थान पर है।
कुवैत 13वें स्थान पर, संयुक्त अरब अमीरात 22वें, सऊदी अरब 28वें, हंगरी 56वें, लीबिया 66वें, रूस 72वें, इराक 92वें, ईरान 100वें, फिलिस्तिन 103वें और यूक्रेन 105वें स्थान पर है। स्पष्ट है कि अपने नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित रखने वाले, गृहयुद्ध की विभीषिका झेलते और लम्बे आन्दोलनों के झेलते देश के नागरिक भी हमसे अधिक खुश हैं। वर्ष 2006 से 2010 की तुलना में इस वर्ष जिन देशों की खुशी सबसे कम हो गयी है, उनमें मोदी जी के गारंटी और संकल्प का विकसित भारत भी शुमार है।
हैप्पीनेस इंडेक्स के लिए खुशी का आकलन देशों के प्रति व्यक्ति जीडीपी, स्वास्थ्य, अनुमानित आयु, लागों से बातचीत, सामाजिक तानाबाना, अपने निर्णयों की आजादी, समाज में भ्रष्टाचार जैसे मानदंडों से किया जाता है। हैप्पीनेस इंडेक्स में देशों के क्रम से स्पष्ट है कि जीवंत लोकतंत्र वाले देशों के नागरिक सबसे अधिक खुश हैं, पर हमारे देश में तो लोकतंत्र का जनाजा निकल चुका है।
दरअसल वर्ष 2014 के बाद से देश में लोकतंत्र की परिभाषा ही बदल दी गई है। सत्ताधारी और उनके समर्थक कुछ भी करने को आजाद हैं – वे अफवाह फैला सकते हैं, हिंसा फैला सकते हैं, ह्त्या कर सकते हैं और दंगें भी करा सकते हैं। दूसरी तरफ, सरकारी नीतियों का विरोध करने वाले चुटकियों में देशद्रोही ठहराए जा सकते हैं, जेल में बंद किये जा सकते हैं या फिर मारे जा सकते हैं। मीडिया, संवैधानिक संस्थाएं और अधिकतर न्यायालय सरकार के विरोध की हर आवाज को कुचलने में व्यस्त हैं।
लोकतंत्र की सीढ़ियों पर फिसलने की भारत की आदत पड़ चुकी है, फ्रीडमहाउस के इंडेक्स में भी हमारा देश स्वतंत्र देशों की सूची से बाहर हो चुका है और आंशिक स्वतंत्र देशों के साथ शामिल हो चुका है। भारत दुनिया का अकेला तथाकथित लोकतंत्र है, जहां अपराधी, आतंकवादी, प्रशासन, सरकार, मीडिया और पुलिस का चेहरा एक ही हो गया है। अब किसी के चहरे पर नकाब नहीं है और यह पता करना कठिन है कि इनमें से सबसे दुर्दांत या खतरनाक कौन है।
इस इंडेक्स से इतना तो स्पष्ट है कि हमारे देश के लोग सरकार पर भले ही भरोसा करते हों, पर संतुष्ट नहीं हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह से किसानों की समस्याएं, बेरोजगारी, नौकरी से छंटनी, अभिव्यक्ति की आजादी, अल्पसंख्यकों का दमन, आपसी वैमनस्व और असहिष्णुता जैसी समस्याएं विकराल स्वरूप में उभरीं हैं, उसने पूरे समाज को प्रभावित किया है और समस्याओं से घिरा समाज कभी खुश नहीं रह सकता।
सन्दर्भ: Helliwell, J. F., Layard, R., Sachs, J. D., De Neve, J.-E., Aknin, L. B., & Wang, S. (Eds.). (2024). World Happiness Report 2024. University of Oxford: Wellbeing Research Centre