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विमर्श

Prashant Kishor In Congress Meeting : क्या पीके कांग्रेस के खराब प्रोडक्ट को गुजरात में बेच पाएंगे?

Janjwar Desk
16 April 2022 11:54 AM GMT
Prashant Kishor and Congress : वो पांच कारण जिसके चलते कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच नहीं बन पायी बात
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Prashant Kishor and Congress : वो पांच कारण जिसके चलते कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच नहीं बन पायी बात

Prashant Kishor In Congress Meeting : शनिवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के निवास पर हुई बैठक में एक "इंजीनियर" को खासतौर पर बुलाया गया था, उनका नाम प्रशांत किशोर है, उन्हें देश की सियासत में चाणक्य नंबर 2 का दर्ज़ा हासिल है.....

सौमित्र रॉय की त्वरित टिप्पणी

Prashant Kishor In Congress Meeting : सत्तर के दशक में पॉकेट ट्रांज़िस्टर खूब लोकप्रिय था। उन दिनों गावस्कर और कपिल देव भी लोकप्रिय थे। क्रिकेट की कमेंट्री सुनने के लिए ट्रांज़िस्टर से बेहतर और कुछ नहीं था। बस, एक समस्या थी- ऐन मौकों पर खड़-खड़ की आवाज़। इससे बचने के लिए लोगों ने ट्रांज़िस्टर को थपथपाने से लेकर कई जतन किये, पर नाकाम रहे।

कांग्रेस (Congress) का हाल भी कुछ इसी तरह का है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) बोलते तो ठीक हैं, लेकिन फिर खड़-खड़ की आवाज़ आती है और फिर शोर इस कदर बढ़ जाता है कि तंग आकर लोग अपना सेट ही बंद कर देते हैं।

एफएम के इस ज़माने में ट्रांज़िस्टर क्यों? यह सवाल देश की सियासत में कांग्रेस पार्टी को लगातार अप्रासंगिक बनाता जा रहा है। 1885 में जन्मी कांग्रेस पार्टी की खड़-खड़ से परेशान लोग यह पूछने से भी बाज़ नहीं आते कि आखिर पार्टी अपग्रेड कब होगी?

शनिवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के निवास पर हुई बैठक में एक "इंजीनियर" को खासतौर पर बुलाया गया था। उनका नाम प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) है। उन्हें देश की सियासत में चाणक्य नंबर 2 का दर्ज़ा हासिल है। उन्होंने पिछले साल बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के सुर ऐसे साधे कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी चारों खाने चित हो गई।

जिस वक़्त 10 जनपथ पर बैठक चल रही थी, उसी समय तृणमूल ने लोकसभा में दो सीटों का इज़ाफ़ा कर लिया। पीके के नाम से सुपरिचित प्रशांत किशोर ने सोनिया, राहुल और प्रियंका समेत कांग्रेस के कद्दावर नेताओं के सामने प्रस्तुतिकरण दिया कि वे किस तरह से 2024 के आम चुनाव में पार्टी की खड़-खड़ को बंद कर नए जमाने के एफएम में बदलेंगे।

बात भले ही 2024 की हो, लेकिन पीके की पहली चुनौती इस साल गुजरात विधानसभा के चुनावों में अपनी काबिलियत को साबित करने की होगी। राज्य की बीजेपी सरकार, प्रशासनिक मशीनरी और खुद प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली अजेय सी सेना, जिसमें चाणक्य अमित शाह और कद्दावर नेताओं के साथ ही आरएसएस, बीजेपी आईटी सेल का प्रचार साथ चलता हो, पर जीत दर्ज़ कर पाना पीके के लिए आसान नहीं है।

ऐसे समय में जब बीजेपी ने साम्प्रदायिकता के रथ पर सवार होकर यूपी में रोज़गार, कुशासन, बदहाल कोविड प्रबंधन, किसानों और आवारा मवेशियों, गुंडाराज के आतंक सरीखे मुद्दों को जिस प्रकार हवा में उड़ाकर दोबारा जीत हासिल की, उसने तमाम सियासी जानकारों को हैरान ही किया है।

फिर भी पीके यह मानते हैं कि बीजेपी को हराना नामुमकिन भी नहीं है। उनकी बात में थोड़ा वज़न इसलिए भी आता है, क्योंकि आज ही लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की 5 सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के हाथ खाली ही रहे।

कांग्रेस अपनी ज़मीन खुद छोड़ रही है और इसी छोड़ी हुई ज़मीन पर आम आदमी पार्टी कब्ज़ा जमाते हुए दिल्ली और पंजाब के बाद अब गुजरात और हिमाचल में भी झाड़ू फेरने की तैयारी में है। पिछले दिनों गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने जैसे ही कहा कि उन्हें दरकिनार किया जा रहा है तो आप ने उन्हें पाला बदलने का न्योता देने में देरी नहीं की।

गुजरात में कांग्रेस के 3 पूर्व विधायक पाला बदलकर झाड़ू के साथ हो लिए हैं। एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि कहीं हार्दिक पटेल भी अल्पेश ठाकोर की राह न चल पड़ें। पीके के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस आलाकमान के अहंकार को थामने की है, जिस पर निष्क्रियता और पार्टी के अहम मामलों में चापलूसों की सलाह मानने का सीधा आरोप लगाया जाता रहा है।

पंजाब की हार कांग्रेस नेतृत्व की ढिलाई और नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नेताओं को तवज़्ज़ो दिए जाने का नतीजा रहा और समय रहते पार्टी ने अपनी गलतियों को नहीं सुधारा। नतीज़तन, पार्टी की ज़मीन आप ने हड़प ली। पीके की दूसरी चुनौती, कांग्रेस में जान फूंकने की है। पार्टी कैडर को ट्विटर के बजाय मैदान पर उतारने और बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के आगे नतमस्तक होने की जगह मुद्दों की राजनीति करने का हौसला बांधने की है।

पीके को दरअसल, उन तारों को बदलना है, जो खड़-खड़ की आवाज़ से इतना शोर पैदा करते हैं कि लोगों को कुछ सुनाई नहीं देता। इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलों को बढ़ाने-घटाने का काम ट्रांज़िस्टर का है, जिसके तीन टर्मिनल्स होते हैं।

सवाल यह है कि पीके पहले इन तीनों टर्मिनल्स (गांधी परिवार) को दुरुस्त करेंगे या उस बाहरी सर्किट को, जो अब आलाकमान की भी नहीं सुनता। या फिर पीके को पूरी तकनीक ही बदलनी होगी।

इसके लिए समय बहुत कम है, लिहाज़ा पीके को फिलहाल गुजरात में 137 साल पुराने एक खराब प्रोडक्ट को बेचने का ट्रायल करना होगा। अगर, इसमें वह सफ़ल हो गए तो समझा जाएगा कि विपक्ष को अपना "अमित शाह" मिल गया है।

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