पूंजीपतियों के पक्ष में हांका लगाने वाला है प्रधानमंत्री मोदी का संसद में दिया गया भाषण
PM मोदी को लगता है कि विपक्ष संसद का सत्र चलने नहीं देता तो फिर एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय बैठक में पर्यावरण मंत्री ऑनलाइन तो जुड़ सकते थे
आज संसद में दिये गये प्रधानमंत्री मोदी के भाषण पर सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक आंदोलन से जुड़े चतुरानन ओझा की टिप्पणी
लोहे का स्वाद लुहार से मत पूछो
उस घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है।
" धूमिल" की इस कविता को आज प्रधानमंत्री के सदन में बजट सत्र के अभिभाषण के संदर्भ में विशेष रूप से याद किया जा सकता है।
आज प्रधानमंत्री का भाषण संविधान और व्यक्ति के नागरिक अधिकारों का माखौल उड़ाने वाला था। उसमें कारपोरेट के चतुर वकील की तरह उन्होंने बात रखी और अपने पूर्ववर्ती सरकारों के देशी - विदेशी पूंजीपतियों की विरासत को भी रेखांकित कर दिया। अपनी असफलताओं को ही यदि कोई चीख चीख का सफलता बताने लगे तो सिर्फ हंसा ही जा सकता है।
आज जब सरकार की नोटबंदी, जीएसटी और दुनिया में सबसे कड़ा लाख टाउन जैसे नियमों को लोग आजमा चुके हैं, अब कृषि कानून 2020, शिक्षा नीति 2020 और नई श्रम नीति को आजमाने के लिए तैयार नहीं हो सकते हैं। हम सभी जानते हैं कि आजमाए हुए को आजमाना होशियारी नहीं मानी जाती।
जिस बड़बोले डॉक्टर द्वारा ऑपरेशन कराने वाला कोई व्यक्ति जिंदा न बचा हो उससे कौन अपने दिल का ऑपरेशन कराना चाहेगा। उन्होंने अपने भाषण में जनता के लिए जितनी योजनाएं गिनाई हैं उनका वास्तविक धरातल पर अभी तक कोई फायदा नहीं दिखाई दिया है। कृषि बीमा का सर्वाधिक फायदा सिर्फ बीमा कंपनी को हुआ है किसानों को बहुत कम या नहीं के बराबर।
"किसान रेल" और "किसान उड़ान" का लाभ छोटे किसानों को मिल रहा है वाली बात ने तो हवाई चप्पल वाले को हवाई जहाज में चलने वाली घोषणा की याद दिला दिया।
आज के अमीरी और गरीबी की खाई के बढ़ते आंकड़े लोगों के सामने जाहिर हैं। हताशा और निराशा में सपरिवार आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ी है, इसके आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं । मोदी का कार्यकाल शुरू होने के साथ ही भारत सभी क्षेत्रों में दुनिया में निरंतर निचले पायदान पर पहुंचता गया है। ऐसे में थोड़े से गिद्ध और सियारों का जश्न देश भर में चल रहा है।
उन्होंने पूरे भाषण में यह नहीं बताया कि अनाज को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर क्यों लाया गया। यह भी नहीं बताया कि कृषि कानून 2020 के तहत डलहौजी की हड़प नीति जैसी नीति से गरीब और छोटे किसानों का हित कैसे होगा और उनको रोजगार कहां मिलेगा?
आंकड़े बताते हैं कि कृषि और उद्योग दोनों क्षेत्र भारी मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। आज जहां अनाज के मौजूदा उत्पादन को लागत मूल्य से कम पर बेच कर किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, वहीं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किसानों से एक खेत से तीन तीन फसल उगाने की अपील करना कितना व्यवहारिक है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य और मंडी व्यवस्था को खत्म कर जिस गलाकाटू प्रतियोगिता में राक्षसी अट्टहास करते हुए उन्हें शामिल किया जा रहा है , उनकी क्या गति होने वाली है।
उनके पूरे भाषण में कृषि मजदूरों और किसानी छोड़कर शहरों में गए औद्योगिक मजदूरों और शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सेवा क्षेत्र में काम कर रहे मानदेय और अस्थाई लोगों के वेतन एवं सामाजिक सुरक्षा की, इस पर तो एक बात ही नहीं कही गई है।
उनके घोषणाओं की भयानक असफलताओं की असलियत को जानने के लिए जरूरी है कि उस जमीन पर उतर कर उसे देखा जाए जहां उसे लागू किया गया है।
सबके लिए समान, पूरी तरह मुक्त एवं पड़ोसी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था को लागू करने की जगह 90% छात्रों को शिक्षा की मुख्यधारा से बाहर करने वाली और कौशल विकास की नाम पर खानदानी पेशों में ठेल देने वाली नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का भी कदापि समर्थन नहीं किया जा सकता।
कितनी अजीब बात है की मोदी जी को अन्नदाता को ऊर्जा प्लांट लगाकर ऊर्जा दाता बनाने और व्यापारी बनाकर देशभर भटकाने में शर्म नहीं आती किंतु एक जागरूक नागरिक को विभिन्न न्याय पूर्ण आंदोलनों में शामिल देखकर पीड़ा होने लगती है। अपने सहोदर पार्टियों से लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के इस मुद्दे पर सदन में समर्थन मांगते भी नजर आते हैं। पूंजीपतियों के पक्ष में हांका लगाने वाला है प्रधानमंत्री का अभिभाषण !
[ चतुरानंद ओझा उत्तर प्रदेश में समान शिक्षा आंदोलन से जुड़े हैं ]