Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

Sudarshan News : क्या डूबने वाला है सुदर्शन न्यूज का सूरज? 'नौकरी पाने के इच्छुक' लोगों से मांगा करोड़ों का दान

Janjwar Desk
2 May 2022 11:33 AM GMT
Sudarshan News : क्या डूबने वाला है सुदर्शन न्यूज का सूरज? नौकरी पाने के इच्छुक लोगों से मांगा करोड़ों का दान
x

Sudarshan News : क्या डूबने वाला है सुदर्शन न्यूज का सूरज? 'नौकरी पाने के इच्छुक' लोगों से मांगा करोड़ों का दान

Sudarshan News : सुरेश चव्हाणके ने स्वीकार किया कि आरएसएस के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों की राय सुदर्शन टीवी के बारे में अच्छी नहीं है, चव्हाणके अपने पीछे विदेशी साजिश को भी एक प्रमुख कारण मानते हैं....

भोपाल से सौमित्र रॉय की टिप्पणी

Sudarshan News : पत्रकारिता के बारे में कहा जाता है कि यह एक पेशेवर काम है, लेकिन पेशा नहीं है लेकिन अक्सर अनेकों बार यह धारणा गलत साबित होती रहती है। ऐसा फिर हुआ है। अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत भरे कंटेंट (Hate Content Against Minorities) पेश करने वाले सुदर्शन न्यूज चैनल (Sudarshan News Channel) की वेबसाइट में नौकरी पाने के इच्छुक लोगों से देश के अलग-अलग स्थानों पर रिपोर्टिंग के लिए दो करोड़ तक का दान मांगा गया है।

द प्रिंट ने जब सुदर्शन न्यूज के संपादक सुरेश चव्हाणके (Suresh Chavhanke) से इस बारे में पूछा तो उन्होंने इसे 'तकनीकी गलती' बताकर हवा में उड़ा दिया। सवाल यह है कि 2005 में केवल 15 करोड़ की पूंजी के साथ सुदर्शन न्यूज चैनल शुरू करने वाले सुरेश चव्हाणके को अचानक पत्रकारिता की दुकान चलाने की जरूरत क्यों पड़ी, जबकि उनके चैनल को खुद मोदी और यूपी सरकार के साथ ही कू एप और मोहनदास पई के निवेश का भी समर्थन प्राप्त है?

आखिर दुकान क्यों खोलनी पड़ी ?

नफरत फैलाने, उकसाऊ और हिंसक कंटेंट प्रसारित करने जैसे कम से कम 1823 मुकदमों का सामना कर रहे सुरेश चव्हाणके को दिल्ली की रिपोर्टिंग बीट के लिए 50 लाख, गुजरात के लिए 1 करोड़, उत्तरप्रदेश - महाराष्ट्र के लिए 2 करोड़ रुपए का चंदा क्यों मांगना पड़ रहा है? कहीं सुदर्शन न्यूज चैनल का सूरज डूब तो नहीं रहा है ?

चव्हाणके का दावा- विज्ञापनों का है टोटा

चव्हाणके खुद इस सवाल का जवाब हां में देते हैं। वे कहते हैं कि कई प्रभावशाली साजिशकर्ताओं ने उनपर हमला कर विज्ञापनों की आवक रोक दी है। हालांकि, न्यूजलॉन्ड्री की एक रिपोर्ट के मुताबिक कू एप के विज्ञापन सुदर्शन न्यूज में चलते हैं, साथ ही 2020-21 में यूपी सरकार ने चैनल को 2.68 करोड़ के विज्ञापन दिए थे।

कू एप में सुदर्शन न्यूज के विज्ञापन दिखाई देते हैं। कू एप को ट्विटर का देसी संस्करण माना जाता है, जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अलावा केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों और देश के 17 राज्यों की सरकारों ने अपने खाते खोल रखे हैं। इन्फोसिस के पूर्व निदेशक मोहनदास पई ने भी कू एप में 30 करोड़ रुपए का निवेश कर रखा है।

आरएसएस का एक धड़ा सुदर्शन के खिलाफ

सुरेश चव्हाणके ने स्वीकार किया कि आरएसएस के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों की राय सुदर्शन टीवी के बारे में अच्छी नहीं है। चव्हाणके अपने पीछे विदेशी साजिश को भी एक प्रमुख कारण मानते हैं। इन हालात में सुदर्शन टीवी को अपनी आय बढ़ाने के लिए कुछ प्रमोशनल वीडियोज का भी सहारा लेना पड़ रहा है। खुद चव्हाणके ने फेसबुक पर कुछ ऐसे वीडियोज शेयर किए हैं, जिनमें वे आयुर्वेदिक उत्पादों को बेचते दिख रहे हैं। चव्हाणके का कहना है कि वे मल्टीनेशनल कंपनियों के विज्ञापन नहीं लेते, क्योंकि वे खुद भारतीयों से इन उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान करते हैं।

क्या यह सुपारी पत्रकारिता नहीं है ?

हनुमान जयंती पर दिल्ली के जहांगीरपुरी में भड़के दंगों के बाद वहां कवर करने गईं सुदर्शन न्यूज की एक रिपोर्टर ने दंगों का विरोध कर रहीं एक मुस्लिम महिला पर सीधे पत्थरबाजी का आरोप लगा दिया। सुदर्शन न्यूज के लिए बस इतना ही बखेड़ा भड़काऊ कंटेंट जुटाने के लिए काफी होता है।

इसके बाद सुदर्शन न्यूज के संपादक सुरेश चव्हाणके ने ट्वीट किया कि भाईचारे का प्रवचन देने वाली मोहतरमा सुदर्शन न्यूज के सवाल पर औकात दिखाने लगी। ठीक इसी प्रकार का बखेड़ा पिछले महीने दिल्ली में ही हल्दीराम नमकीन की एक दुकान पर सुदर्शन न्यूज की इसी रिपोर्टर ने भी किया था, जिसने नमकीन के पैकेट पर उर्दू/अरबी में जानकारी लिखे होने पर सवाल करते हुए हंगामा किया था, जिसके बाद दुकान संचालकों और सुरक्षाकर्मियों ने पुलिस के आने तक दुकान में ही रिपोर्टर को बंद कर दिया था। इसके बाद भी सुरेश चव्हाणके ने ट्वीट कर विक्टिम कार्ड खेलने की पूरी कोशिश की और देशभर में अगले दो दिन तक इसी मामले पर बहस होती रही।

टीवी पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल

अब सुदर्शन न्यूज पर पैसा देकर रिपोर्टर की नौकरी पाने का एक नया मामला सामने आया है। विश्वसनीयता के घोर संकट से जूझ रही भारतीय मीडिया में हालांकि यह नया भी नहीं है, लेकिन नौकरी के बदले जितनी बड़ी रकम मांगी गई है, वह टीवी पत्रकारिता के इतिहास में एक अभूतपूर्व काला धब्बा है। इसे फ्रेंचाइजी पत्रकारिता कहें या फिर सुपारी पत्रकारिता, मीडिया की विश्वासनीयता को यह और भी कम करेगा।

(जनता की पत्रकारिता करते हुए जनज्वार लगातार निष्पक्ष और निर्भीक रह सका है तो इसका सारा श्रेय जनज्वार के पाठकों और दर्शकों को ही जाता है। हम उन मुद्दों की पड़ताल करते हैं जिनसे मुख्यधारा का मीडिया अक्सर मुँह चुराता दिखाई देता है। हम उन कहानियों को पाठक के सामने ले कर आते हैं जिन्हें खोजने और प्रस्तुत करने में समय लगाना पड़ता है, संसाधन जुटाने पड़ते हैं और साहस दिखाना पड़ता है क्योंकि तथ्यों से अपने पाठकों और व्यापक समाज को रू-ब-रू कराने के लिए हम कटिबद्ध हैं।

हमारे द्वारा उद्घाटित रिपोर्ट्स और कहानियाँ अक्सर बदलाव का सबब बनती रही है। साथ ही सरकार और सरकारी अधिकारियों को मजबूर करती रही हैं कि वे नागरिकों को उन सभी चीजों और सेवाओं को मुहैया करवाएं जिनकी उन्हें दरकार है।

लाजिमी है कि इस तरह की जन-पत्रकारिता को जारी रखने के लिए हमें लगातार आपके मूल्यवान समर्थन और सहयोग की आवश्यकता है। सहयोग राशि के रूप में आपके द्वारा बढ़ाया गया हर हाथ जनज्वार को अधिक साहस और वित्तीय सामर्थ्य देगा जिसका सीधा परिणाम यह होगा कि आपकी और आपके आस-पास रहने वाले लोगों की ज़िंदगी को प्रभावित करने वाली हर ख़बर और रिपोर्ट को सामने लाने में जनज्वार कभी पीछे नहीं रहेगा, इसलिए आगे आयें और जनज्वार को आर्थिक सहयोग दें)

Next Story

विविध