Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

डूबते देश में सुशांत आत्महत्या राष्ट्रीय आपदा, रिया ​की गिरफ्तारी राष्ट्रीय उत्सव और कंगना को Y श्रेणी राष्ट्रीय उपहार

Janjwar Desk
11 Sept 2020 9:00 PM IST
डूबते देश में सुशांत आत्महत्या राष्ट्रीय आपदा, रिया ​की गिरफ्तारी राष्ट्रीय उत्सव और कंगना को Y श्रेणी राष्ट्रीय उपहार
x
जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था, और जब भारत में बेरोजगारी चरम पर है और अर्थव्यवस्था रसातल में है तब प्रधानमंत्री मोर को दाना चुगा रहे हैं और मीडिया दिन-रात महीनों से रिया चक्रवर्ती की खबरें लगातार दर्शकों पर थोप रहा है....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

एक डूबते देश में सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या राष्ट्रीय आपदा है, रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी राष्ट्रीय उत्सव और कंगना रानौत की वाई श्रेणी सुरक्षा राष्ट्रीय उपहार है। राष्ट्रीय आपदा में एनडीआरएफ की टीमें बचाव कार्य करती हैं, इस आपदा में एनडीआरऍफ़ के बदले मीडिया है, बिहार सरकार है, केंद्र सरकार है, महाराष्ट्र सरकार है और केंद्र सरकार की सभी जांच एजेंसियां हैं।

इस राष्ट्रीय आपदा ने तो कोविड 19, बेरोजगारी, गिर चुकी अर्थव्यवस्था, बाढ़, पर्यावरण विनाश जैसे आपदाओं को बौना साबित कर दिया है।

कोविड 19, चीन से सीमा विवाद, डूब चुकी अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, सामाजिक समरसता और यहां तक कि लोकतंत्र भी देश में पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है, पर प्रधानमंत्री जी बार बार जपते हैं, सब ठीक है। प्रधानमंत्री जी के लिए पर्यावरण एक पसंदीदा विषय है और इसपर वे संस्कृत के श्लोकों के साथ देश-विदेश में अनेक बार बोल चुके हैं।

भाषणों को सुनने पर ऐसा लगता है मानो पर्यावरण संरक्षण हमारी सरकार की पहली प्राथमिकता है। हम अपनी जहरीली नदियाँ, जानलेवा वायु प्रदूषण, कचरे के जगह जगह फैले पहाड़, सिकुड़ते जंगल और मरते वन्यजीव को भी प्रधानमंत्री और मंत्री भाषणों में संरक्षण की तरह प्रस्तुत करते हैं। पर, बीच-बीच में विभिन्न न्यायालयों के फैसले पर्यावरण विध्वंस की कहानी बयाँ कर देते हैं।

प्रधानमंत्री जी ने हिमालय पर चार-धाम हाईवे प्रोजेक्ट के शुरू में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को आधुनिक श्रवण कुमार बताया था, और तथाकथित आधुनिक श्रवण कुमार ने पिछले वर्ष कहा था कि गरीब देश पर्यावरण की नहीं, बल्कि विकास की बातें करें। इस परियोजना का शुरू से ही सभी पर्यावरणविदों ने विरोध किया था, पर सरकार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया, यहीं नहीं तमाम पर्यावरण कानूनों का खुल्लमखुल्ला बेशर्मी से उल्लंघन किया।

जाहिर है, पर्यावरण मंत्रालय को कहीं कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि उसका पर्यावरण संरक्षण से दूर-दूर तक कोई सरोकार ही नहीं है। कुल 12 मीटर चौड़ा हाईवे पर तेजी से काम किया जाने लगा, विरोध होता रहा, कमेटियां बनती रहीं और रिपोर्ट देती रहीं, हजारों पेड़ काटे गए, चट्टानें काटी गईं, मलबा नदी में डाला जाता रहा, भू-स्खलन की बार बढ़ती रही, पर काम नहीं रुका – आखिर परिवहन मंत्री का ब्रह्म वाक्य है, गरीब देश पर्यावन की नहीं बल्कि विकास की बातें करें।

कुल मिलाकर हिमालय के इतिहास, पारिस्थितिकी तंत्र और भूगोल से अधिक महत्वपूर्ण चार धाम तक का पर्यटन हो गया। पर, सर्वोच्च न्यायालय ने इस परियोजना पर अंकुश लगा दिया है। इसके आदेश के अनुसार चारधाम हाईवे 5।5 मीटर से अधिक चौड़ा नहीं होगा और काटे गए पेड़ों के बदले जल्दी से जल्दी पौधारोपण किया जाए।

सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से हिमालय को थोड़ी राहत तो अवश्य मिलेगी। चार धाम हाईवे परियोजना भी नमामि गंगे की तरह प्रधानमंत्री की चहेती परियोजना है। इसमें भी नितिन गडकरी ने गंगा में सफाई पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि इसमें जहाज चलाने और क्रूज से यात्रा पर पूरा ध्यान केन्द्रित किया था।

केवल पर्यावरण ही नहीं बल्कि चीन सीमा विवाद और कोविड 19 पर भी वास्तविक स्थिति और प्रधानमंत्री के बयान बिलकुल अलग हैं। दोनों की विषयों पर स्थिति नियंत्रण के बाहर है, पर प्रधानमंत्री के अनुसार सब ठीक है। चीन विवाद में जब हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए तब भी प्रधानमंत्री ने बड़े जोरशोर से देश को बता रहे थे कि ना तो कोई घुसपैठ हुई और न ही हमारी सीमा में कोई घुसा। इसके बाद सरकार और मीडिया लगातार चीन को धूल चटाते रहे, नेस्तनाबूत करते रहे और दूसरी तरह चीन आज तक आक्रामक रुख दिखा रहा है।

कोविड 19 पर भी प्रधानमंत्री लगातार आत्मविभोर रहे और इसके रोज नए रिकॉर्ड बनाते रहे। हम काढा पीते रहे और संक्रमण की संख्या के पायदान पर चदते-चदते दूसरे स्थान पर पहुँच गए। फिर भी यकीन मानिए, 14 सितम्बर जब संसद का सत्र शुरू होगा तब प्रधानमंत्री जी और दूसरे मत्रियों के भाषणों में हम इन सब मामलों में दुनिया के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ दौर में होंगे और मीडिया पर बेशर्मी वाली बहस चल रही होगी।

जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था, और जब भारत में बेरोजगारी चरम पर है और अर्थव्यवस्था रसातल में है तब प्रधानमंत्री मोर को दाना चुगा रहे हैं और मीडिया दिन-रात महीनों से रिया चक्रवर्ती की खबरें लगातार दर्शकों पर थोप रहा है। सरकार के लिए यह आपदा में अवसर है।

बिहार चुनाव में सुशांत सिंह राजपूत को न्याय मिलेगा और महाराष्ट्र में सरकारी वाई श्रेणी की सुरक्षा से लैस लगातार अपशब्दों और गालियों की झड़ी उगलने वाली कंगना रानावत एक नया राजनीतिक चेहरा बनकर उभरेंगी। कंगना रानावत जैसी भाषा ही इस दौर की सरकारी शिष्ट भाषा है। केंद्र सरकार की सभी जांच एजेंसियां मुंबई में डेरा डाले बैठी हैं, और जांच कम और मीडिया को रिपोर्ट अधिक दे रही हैं।

देश खुशहाल बन गया है, सुशांत सिह राजपूत की आत्महत्या को छोड़कर कहीं कोई समस्या बची ही नहीं है। वैसे अब तो सुशांत सिंह राजपूत भी नेपथ्य में चले गए हैं, आगे तो रिया चक्रवर्ती पर तमाम मनगढ़ंत आरोप हैं, जो हरेक समाचार चैनल अपनी मर्जी से सुबह से शाम तक लगा रहे हैं। देश की सरकारें मस्त हैं, क्योंकि अब कोई समस्या कहीं नजर नहीं आ रही है और यही स्वघोषित न्यू इंडिया है।

Next Story

विविध