भारत की आबादी अमेरिका से 4.5 गुना ज्यादा लेकिन उतना नुकसान नहीं, क्योंकि हमारे डॉक्टर-नर्स कर रहे देवतुल्य सेवा
कोरोनाकाल में सेवा करतीं भारतीय नर्स (तस्वीर)
डॉ. वेदप्रताप वैदिक का विश्लेषण
जनज्वार। एक-दो प्रांतों को छोड़कर भारत के लगभग हर प्रांत से खबर आ रही है कि कोरोना का प्रकोप वहाँ घट रहा है। अब देश के सैकड़ों अस्पतालों और चिकित्सा-केंद्रों में पलंग खाली पड़े हुए हैं। लगभग हर अस्पताल में आक्सीजन पर्याप्त मात्रा में है। विदेशों से आये ऑक्सीजन-कंसन्ट्रेटरों के डिब्बे बंद पड़े हैं। दवाइयों और इंजेक्शनों की कालाबाजारी की खबरें भी अब कम हो गई हैं। लेकिन कोरोना के टीके कम पड़ रहे हैं। कई राज्यों ने 18 साल से बड़े लोगों को टीका लगाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया है। देश में लगभग 20 करोड़ लोगों को पहला टीका लग चुका है, लेकिन ये कौन लोग हैं ?
इनमें ज्यादातर शहरी, सुशिक्षित, संपन्न और मध्यम वर्ग के लोग हैं। अभी भी ग्रामीण, गरीब, पिछड़े, अशिक्षित लोग टीके के इंतजार में हैं। भारत में 3 लाख से ज्यादा लोग अपने प्राण गंवा चुके हैं। यह तो सरकारी आंकड़ा है। पिछले 12 दिन में 50 हजार लोग महाप्रयाण कर गये। इतने लोग तो आजाद भारत में किसी महामारी से पहले कभी नहीं मरे। किसी युद्ध में भी नहीं मरे। मौत के इस आंकड़े ने हर भारतीय के दिल में यमदूतों का डर बैठा दिया। जो लोग सुबह 5 बजे गुड़गांव में मेरे घर के सामने सड़क पर घूमने निकलते थे, वे भी आजकल दिखाई नहीं पड़ते। सब लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं। आजकल घरों में भी अकेलेपन, सूनेपन और उदासी का माहौल है, ऐसा तो मैंने अपनी जेल-यात्राओं में भी नहीं देखा।
अब 50-60 साल बाद लगता है कि कोरोना काल में रहने की बजाय जेलों में रहना कितना सुखद था। लेकिन जब हम दुनिया के दूसरे देशों को देखते हैं तो मन को थोड़ा मरहम लगता है। भारत में अब तक 3 लाख लोग मरे हैं जबकि अमेरिका में 6 लाख और ब्राजील में 4.5 लाख लोग। जनसंख्या के हिसाब से अमेरिका के मुकाबले भारत 4.5 गुना बड़ा है और ब्राजील से 7 गुना बड़ा। अमेरिका में चिकित्सा-सुविधाएं और साफ-सफाई भी भारत से कई गुना ज्यादा है। इसके बावजूद भारत का ज्यादा नुकसान क्यों नहीं हुआ ? क्योंकि हमारे डॉक्टर और नर्स देवतुल्य सेवा कर रहे हैं। इसके अलावा हमारे भोजन के मसाले, घरेलू नुस्खे, प्राणायाम और आयुर्वेदिक दवाइयां चुपचाप अपना काम कर रही हैं।
न विश्व स्वास्थ्य संगठन उन पर मोहर लगा रहा है, न हमारे डाॅक्टर उनके बारे में अपना मुँह खोल रहे हैं और न ही उनकी कालाबाजारी हो रही है। वे सर्वसुलभ हैं। उनके नाम पर निजी अस्पतालों में लाखों रूपये की लूटपाट का सवाल ही नहीं उठता। भारत के लोग यदि अफ्रीका और एशिया के लगभग 100 देशों पर नज़र डालें तो उन्हें मालूम पड़ेगा कि वे कितने भाग्यशाली हैं।
सूडान, इथियोपिया, नाइजीरिया जैसे देशों में कई ऐसे हैं, जिनमें एक प्रतिशत लोगों को भी टीका नहीं लगा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और अफगानिस्तान में भी बहुत कम लोगों को टीका लग सका है। कोरोना की इस लड़ाई में सरकारों ने शुरु में लापरवाही जरुर की थी, लेकिन अब भाजपा और गैर-भाजपा सरकारें जैसी मुस्तैदी दिखा रही हैं, यदि तीसरी लहर आ गई तो वे उसका मुकाबला जमकर कर सकेंगी।