महज धार्मिक होना नहीं बल्कि दूसरे धर्मों के प्रति असहिष्णुता भी लोगों को करती है विज्ञान से दूर, अध्ययन में हुआ बड़ा खुलासा
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
The societies intolerant to other religion are more likely to reject scientific methodologies and findigs. सामान्य तौर पर माना जाता है कि अधिक धार्मिक लोग वैज्ञानिक विचारधारा को नकारते हैं। अब तक किये गए अधिकतर सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक अध्ययन भी यही बताते हैं, पर एक नए अध्ययन के अनुसार महज धार्मिक होना नहीं बल्कि दूसरे धर्मों के प्रति असहिष्णुता लोगों को विज्ञान से दूर करती है। इस अध्ययन को अमेरिका के स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक यू डिंग के नेतृत्व में कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किया गया है और प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज के नेक्सस नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
इस अध्ययन के लिए माना गया है कि जहां भी धार्मिक विविधता कम है, वह समाज धार्मिक तौर पर असहिष्णु है। कोविड-19 के दौर में वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक विचारधारा का समर्थन और विरोध बिलकुल स्पष्ट हो गया था। जहाँ भी वैज्ञानिक विचारधारा में अधिकतर लोगों का भरोसा था, वहां इससे बचाव के तरीकों – सामाजिक दूरी, बार-बार हाथ धोना, भीड़ नहीं करना – को आसानी से अपनाया गया, और इसके बाद टीकाकरण कार्यक्रम में भी लोगों ने पूरी भागीदारी निभाई।
इसके विपरीत विज्ञान पर भरोसा नहीं करने वाले समाज ने इसे तमाशा बताया और हरेक स्तर पर वैज्ञानिकों द्वारा बताये गए दिशा—निर्देशों की अवहेलना करते रहे। अमेरिका में काउंटी के स्तर पर अध्ययन से स्पष्ट है कि जिन काउंटी में धार्मिक विविधता अधिक है, वहां कोविड-19 के दौर में सामाजिक दूरी का पूरी तरह से पालन किया गया और फिर टीकाकरण में भी अपेक्षाकृत बड़ी आबादी ने अपनी भागीदारी निभाई।
जिन देशों में धार्मिक विविधता अधिक है, उन देशों के विद्यालयों के छात्रों को प्रोग्राम फॉर इन्टरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट द्वारा आयोजित आकलन में विज्ञान और गणित विषयों में अधिक अंक मिले। वर्ल्ड वैल्यूज सर्वे में अधिक धार्मिक विविधता वाले देशों के प्रतिभागियों ने धर्म से अधिक विज्ञान को सत्य के करीब बताया। इस अध्ययन में किये गए सीधे सर्वेक्षण में अमेरिका के क्रिश्चियन, भारत के हिन्दू और पाकिस्तान के मुस्लिम प्रतिभागियों में से जिन्होंने अपने आप को धार्मिक तौर पर असहिष्णु बताया, उनमें से अधिकतर ने धर्म के सामने विज्ञान को नकार दिया।
वर्ष 2017 में इंटेलिजेंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन का निष्कर्ष था कि कट्टर धार्मिक देशों के छात्र गणित और विज्ञान जैसे विषयों में धार्मिक तौर पर उदारवादी देशों की तुलना में कमजोर होते हैं। इस अध्ययन को अमेरिका के लीड्स बेच्केट यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिसौरी के वैज्ञानिकों ने संयुक्त तौर पर किया था। इसमें सुझाव भी दिया गया था कि यदि सरकारें चाहती हैं कि उनके देश के बच्चे विज्ञान में आगे बढे तो जरूरी है कि स्कूलों से और शिक्षा की नीतियों से धर्म और आस्था को बिलकुल अलग कर दें।
नेक्सस नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि कुछ धर्मगुरु विज्ञान के क्षेत्र में भी अग्रणी रहे हैं, पर उनकी संख्या बहुत कम है और इसमें केवल वही धर्मगुरु हैं, जो उदारवादी रहे हैं और अपने आसपास के लोगों से मिली शिक्षा को आत्मसात करते रहे हैं। विज्ञान में भरोसा करने वाले धर्मगुरुओं में दूसरे धर्मों से भी कुछ सीखने की ललक थी। दूसरी तरफ, धार्मिक असहिष्णुता से लोगों में हरेक ज्ञान अपने ही धर्म में होने का अहसास आ जाता है और फिर वे विज्ञान को भी धर्म से गौण समझते हैं।
सन्दर्भ:
Yu Ding, Gita Venkataramani Johar & Michael W Morris. When the one true faith trumps all: Low religious diversity, religious intolerance, and science denial. PNAS Nexus, Vol 3, Issue 4 (Apr 2024) – https://doi.org/10.1093/pnasnexus/pgae144
Stoet, G and Geary, D (2017) Students in countries with higher levels of religiosity perform lower in science and mathematics. Intelligence, 62. pp. 71-78. ISSN 0160-2896 DOI: https://doi.org/10.1016/j.intell.2017.03.001