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विमर्श

नैतिकता का पाखंड करने वाली मोदी सरकार ने भारत को दिलाया 'सबसे भ्रष्ट देश' का दर्जा

Janjwar Desk
1 Dec 2020 11:38 AM GMT
नैतिकता का पाखंड करने वाली मोदी सरकार ने भारत को दिलाया सबसे भ्रष्ट देश का दर्जा
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खुद को देश का 'चौकीदार' बताते हुए हुए नरेंद्र मोदी ने प्रधान मंत्री बनने के बाद 'ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा' का नारा लगाया था लेकिन भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के उनके सभी वादे खोखले साबित हुए......

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में सत्तर साल की कांग्रेसी सरकारों को भ्रष्ट और अकर्मण्य बताकर कोसते रहते हैं और खुद को धर्मराज युधिष्ठिर की तरह महान नैतिक और सिद्धान्तवादी नेता के रूप में पेश करते रहते हैं। उनके गुलाम की भूमिका निभा रहे भक्त गण भी दलील देते रहते हैं कि मोदी जी के बाल बच्चे नहीं हैं तो वे किसके लिए भ्रष्टाचार का सहारा लेंगे। लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि मोदी राज में भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार में तब्दील हो चुका है। ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल ने भारत को एशिया का सबसे भ्रष्ट देश का दर्जा दिया है तो दूसरी तरफ कई सर्वेक्षणों में इस बात की पुष्टि की गई है कि मोदी राज में भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ता गया है।

खुद को देश का 'चौकीदार' बताते हुए हुए नरेंद्र मोदी ने प्रधान मंत्री बनने के बाद 'ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा' का नारा लगाया था लेकिन भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के उनके सभी वादे खोखले साबित हुए। भ्रष्टाचार मोदी के कार्यकाल के दौरान बढ़ता गया है और देश के अधिकांश लोग यह भी मानते हैं कि मोदी भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए गंभीर नहीं हैं।

सरकारी दफ्तरों में काम करवाने के लिए रिश्वत देने में भारत के लोग एशिया में सबसे आगे हैं। यहां लोगों को किसी न किसी रूप में घूस देनी ही पड़ती है। यह जानकारी भ्रष्टाचार पर काम करने वाले ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की बुधवार को जारी रिपोर्ट में सामने आई है। इसके मुताबिक, एशिया प्रशांत क्षेत्र में रिश्वत के मामले में भारत शीर्ष पर है, जबकि जापान सबसे कम भ्रष्ट है। इस रिपोर्ट के मुताबिक एशिया के अन्य देशों में कंबोडिया दूसरे और इंडोनेशिया तीसरे नंबर पर है। इस रिपोर्ट के मुताबिक एशिया में हर पांच में से एक व्यक्ति ने रिश्वशत दी है।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 39 फीसदी भारतीय मानते हैं कि उन्हों ने अपना काम करवाने के लिए रिश्वित का सहारा लिया। कंबोडिया में ये दर 37 फीसदी और इंडोनेशिया में ये 30 फीसदी है। बता दें कि वर्ष 2019 में भ्रष्टादचार के मामले में भारत दुनिया के 198 देशों में 80वीं पायदान पर था। इस संस्‍था ने उसको 100 में से 41 नंबर दिए थे। वहीं, चीन 80वें, म्यांनमार 130वें, पाकिस्तासन 120वें, नेपाल 113वें, भूटान 25वें, बांग्ला देश 146वें और श्रीलंका 93वें नंबर पर रहा।

रिपोर्ट के मुताबिक, देश के ज्यारदातर लोगों का मानना है कि पुलिस और स्था नीय अफसर रिश्‍वत लेने के मामले में सबसे आगे हैं। ये करीब 46 फीसदी है। इसके बाद देश के सांसद आते हैं जिनके बारे में 42 फीसदी लोगों ने ऐसी राय रखी है। वहीं, 41 प्रतिशत लोग मानते हैं कि रिश्वजतखोरी के मामले में सरकारी कर्मचारी और कोर्ट में बैठे 20 फीसदी जज भ्रष्ट हैं।

एशिया के सबसे ईमानदार देशों की बात करें तो इसमें मालदीव और जापान संयुक्त रूप से पहले नंबर पर हैं। यहां पर महज 2 फीसदी लोगों ने ही माना कि उन्हें कभी किसी काम के लिए रिश्व त देनी पड़ी। इसके बाद दक्षिण कोरिया का नंबर आता है, जहां पर करीब 10 फीसदी लोगों का मानना है कि उन्हें काम निकलवाने के लिए घूस देनी पड़ी है। हांगकांग और ऑस्ट्रेलिया में घूसखोरी के मामले कम हैं।

देश में व्यामप्ते भ्रष्टााचार को अलग-अलग कैटेगिरी में रखा गया है। जैसे 89 फीसदी भारतीय लोगों के लिए सरकारी भ्रष्टामचार सबसे बड़ी समस्याक है। इसके बाद 39 फीसदी रिश्व तखोरी को बड़ी समस्याए मानते हैं, जबकि 46 फीसदी किसी भी चीज के लिए सिफारिश किए जाने को समस्याम मानते हैं। वहीं, 18 फीसदी भारतीय ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि वोट के लिए नोट एक बड़ी समस्याए है। 11 फीसदी ने माना कि काम निकलवाने के लिए होने वाला शारीरिक शोषण एक बड़ी समस्या है।

63% भारतीयों ने माना कि सामान्य व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण अंतर ला सकता है। 55% भारतीयों ने कहा कि वे भ्रष्टाचार का सबूत देने के लिए दिन भर कोर्ट में खड़े रह सकते हैं। इससे पहले 13 राज्यों में सीएमसी की तरफ से किए गए अध्ययन में बताया गया था कि मोदी राज में भ्रष्टाचार बढ़ता गया है।

जबकि पूरे भारत में 38% परिवारों को लगता है कि भ्रष्टाचार का स्तर बढ़ गया है, 37% परिवारों को लगता है कि सार्वजनिक सेवाओं में भ्रष्टाचार का स्तर पहले की तरह ही बना हुआ है। अध्ययन में दावा किया गया कि कम से कम 27% परिवारों ने 11 सार्वजनिक सेवाओं में से किसी एक का लाभ उठाते हुए कम से कम एक बार भ्रष्टाचार का अनुभव किया था। सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता पर संदेह करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है।

महाराष्ट्र उन राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है जहां लोग भ्रष्टाचार को कम करने के लिए मोदी सरकार की प्रतिबद्धता पर संदेह करते हैं। मध्य प्रदेश सूची में दूसरे स्थान पर है। गुजरात में - जहाँ भाजपा दो दशकों से अधिक समय से शासन कर रही है - 46% लोगों को लगता है कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है।

गैर-भाजपा शासित राज्यों में, आंध्र प्रदेश के 67% लोग और तमिलनाडु में 52% लोगों को लगता है कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करने या कम करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है।

केंद्र सरकार द्वारा संचालित विभिन्न 'डिजिटल समावेश' योजनाओं की सफलता के बारे में संदेह व्यक्त करते हुए अध्ययन ने दावा किया कि 7% उत्तरदाताओं को आधार कार्ड प्राप्त करने के लिए रिश्वत देनी पड़ी, जबकि 3% को अपना वोटर आईडी कार्ड पाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी।

अध्ययन में 'नकारात्मक धारणा' के निर्माण के लिए लोकायुक्त (लोकपाल) के रिक्त पदों को भरने में मोदी सरकार की असमर्थता और बैंकिंग क्षेत्र में हाल के भ्रष्टाचार को कारण बताया गया है।

अध्ययन में पाया गया कि परिवहन, पुलिस, आवास, भूमि रिकॉर्ड, स्वास्थ्य और अस्पताल सेवाओं को सार्वजनिक सेवाओं का सबसे भ्रष्ट अंग माना जाता है। अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार, महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, बिहार और तेलंगाना जैसे राज्यों में उच्च नागरिक सक्रियता देखी गई है, जबकि आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले नागरिक समाज की गतिविधि कम है।

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