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विमर्श

भारत के वो कौन लोग हैं जो इजराइल के कत्लेआमों पर बजाते हैं तालियां

Janjwar Desk
16 May 2021 12:58 PM IST
भारत के वो कौन लोग हैं जो इजराइल के कत्लेआमों पर बजाते हैं तालियां
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कोरोना महामारी में जहां देश में हिन्दू और मुसलमानों के बीच राजनीतिक तौर पर पैदा की गई सांप्रदायिक नफरत की आग ठंडी होती दिखाई दे रही थी, उसे इस्राइल-फिलिस्तीन विवाद की आड़ में फिर से हवा देने की कोशिश की जा रही है....

हुसैन ताबिश की टिप्पणी

जनज्वार। पूरा विश्व इस समय जहां कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है, वहीं मध्य पूर्व में इस वक्त इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच बेहद तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। इस्राइली सेना और फिलिस्तीन के चरमपंथी समूह हमास के बीच जारी जंग में अब तक पांच दर्जन से अधिक निर्दोष नागरिकों की जाने जा चुकी हैं, जिनमें कई महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।

गजा पट्टी के रिहायशी इलाकों में की गई इजरायल की बमबारी में 1000 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिक घायल हुए हैं। दोनों देशों के बीच लड़ाई और गंभीर होने की आशंका है। इस तनावपूर्ण स्थिति का असर पूरे अरब जगत के साथ विश्व समूदाय पर पड़ना स्वाभाविक है। तुर्की के राष्ट्रपति तैयय्प रज्जब एर्दोगान और मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. महातिर मोहम्मद मुस्लिम देशों से एकजुट होकर इस समय फिलिस्तीन के साथ खड़े होने की अपील कर रहे हैं।

दूसरी ओर अमेरिका, ब्रिटेन और कुछ अन्य यूरोपीय देश इस्राइल के समर्थन में खड़े हैं। हालांकि दोनों देशों के बीच जारी हिंसा और तनाव के बाद दुनिया के सुपर पाॅवर देशों ने इस्राइली सेना के निर्दोष नागरिकों पर की जा रही कार्रवाई की आलोचना कर इस्राइल को आत्मसंयम बरतने की नसीहतें दे रहे हैं।

भारत का अरब देशों के साथ जहां व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध हैं, वहीं इस्राइल भी व्यापारिक और रणनीतिक साझीदार देश है। भारत की स्थिति इस समय किसी एक गुट के साथ स्पष्ट समर्थन या विरोध जताने की बिल्कुल नहीं है। भारत का हित दोनों देशों के साथ बराबर जुड़ा हुआ है। शायद यही वजह है कि सरकार ने आधिकारिक तौर पर अभी इस मसले पर अपना पक्ष जाहिर नहीं किया है।

भारत दोनों देशों से शांति की अपील कर रहा है। इसके बावजूद भारत के नागरिक इजरायल और फिलिस्तीन मुद्दे को लेकर आपस में साफ तौर पर बंटे हुए दिख रहे हैं। नागरिकों का एक खेमा फिलिस्तीन के साथ खड़ा है, जबकि दूसरा वर्ग साफ तौर पर इस्राइली कार्रवाई का न सिर्फ समर्थन कर रहा है बल्कि इस्राइल की आलोचना करने वालों को सीधे तौर पर आतंकवादी देश की हिमायत करने और उसे आतंकवादी होने का प्रमाणपत्र बांट रहा है।

दोनों देशों की बीच जारी ताजा हिंसा के बाद भारत में सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पहले 'आई स्टैंड विद फिलिस्तीन' हैशटैग ट्रेंड कराया गया जिसके जवाब में 'आई स्टैंड विद इस्राइल' हैशटैग भी ट्रेंड करने लगा। हालांकि यहां बात सिर्फ हैशटैग ट्रेंड कराने या समर्थन और विरोध का नहीं है। इस हैशटैग के साथ ही सोशल मीडिया पर एक खास समुदाय और धर्म को टार्गेट कर उसे चिढ़ाने वाले घृणास्पद पोस्ट्स की बाढ़ आ गई।

भारत को इस्राइल से सीख लेने की नसीहतें दी जा रही हैं। एक पूरी कौम को आतंकी बताकर उनकी मौतों पर जश्न मनाया जा रहा है। इस तरह इस्राइल-फिलिस्तीन विवाद के बहाने भारत में फिलिस्तीन के प्रति समर्थन जताने वाले वर्ग को ट्राॅल किया जा रहा है। वह भी ऐसे समय जब भारत में अभी प्रतिदिन कोरोना से सरकारी आंकड़ों के अनुसार 4 हजार लोगों की मौत हो रही है और चार लाख लोग रोजाना कोरोना पाॅजिटिव हो रहे हैं, जबकि वास्तविक आकंड़े इससे कई गुना ज्यादा हैं।


लोग इलाज और सुविधाओं के अभाव में अस्पतालों में दम तोड़ रहे हैं। निजी अस्पतालों में लूट मची है। सरकारी अस्पतालों में बेड नहीं है। ऑक्सीजन सिलेंडर हीरे और जवाहरात से भी मूल्यवान बने हुए हैं। लाशों का अंतिम संस्कार तक नहीं हो पा रहा है। परिजन अपनों का शव लेने से इंकार कर रहे हैं। लावारिश मुर्दों को गंगा में बहाया जा रहा है।

लॉकडाउन से लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं। युवा बेरोजगार हैं। मजदूरों के पास काम नहीं है। व्यापारी तबाह हो रहे हैं। महंगाई चरम पर है। देश की अर्थव्यवस्था रसातल में पहुंच गई है। नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित किए जा रहे हैं। देश के संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। ऐसे समय में सरकार सीन से पूरी तरह गायब है। वह अपनी जवाबदेही से भाग रही है।

हमारे देश का पूरा सिस्टम रामभरोसे चल रहा है, लेकिन जनता सरकार से सवाल तक नहीं पूछ रही है, जो सवाल कर रहे हैं उन्हें जेल में बंद किया जा रहा है। आखिर इस संकट की घड़ी में कौन हैं वह लोग जो सरकारों से नागरिक सुविधाओं की मांग करने के बजाय देश में धर्म और घृणा का कारोबार करने में लगे हैं? दो समुदायों के बीच फासले पैदा कर रहे हैं? एक समुदाय को खलनायक की तौर पर पेश करने में जी-जान से जुटे हैं। सामने खुद की मौत दस्तक दे रही है, लेकिन इससे बेफिक्र होकर वह एक समुदाय विशेष की मृत्यु और बर्बादी की कामना कर रहे हैं।

मुश्किल नहीं है उन्हें पहचानना

कोरोना महामारी में जहां देश में हिन्दू और मुसलमानों के बीच राजनीतिक तौर पर पैदा की गई सांप्रदायिक नफरत की आग ठंडी होती दिखाई दे रही थी, उसे इस्राइल-फिलिस्तीन विवाद की आड़ में फिर से हवा देने की कोशिश की जा रही है।

इस्राइल के हमले पर खुश होने वाले वही लोग हैं, जो कश्मीर मे धारा-370 के समाप्ति के बाद लगे अनिश्चितकालीन कर्फ्यू पर कभी खुश हो रहे थे तो कभी एनआरसी-सीएए कानूनों के विरोध में प्रदर्शन करने वाले लोगों की मौत पर जश्न मना रहे थे। इन्हें डिटेंशन केंद्रों में बंद मुसलमानों की दुर्दशा और उनकी माॅब लिंचिंग पर भी कोई अफसोस नहीं होता है। इस्लाम और मुसलमान इनकी नजर में एक वैश्विक समस्या और शांति के मार्ग में एक बड़ी बाधा है।

हालांकि इन्हें सिर्फ इस्लाम और मुसलमान विरोधी मान लेना भी उचित नहीं है। इन्हें लोकतंत्र, मानवाधिकार, अभिव्यक्ति एवं धार्मिक स्वतंत्रता और समानता जैसे मूल्यों में भी भरोसा नहीं है। हां, इन्हें सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर भी आपत्ति है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं की आजादी की ये भरपूर चिंता करते हैं। कश्मीर से इन्हें जितना प्यार है कश्मीरियों से ये उतना ही नफरत करते हैं।

अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, मोजांबिक और नाइजीरिया में कथित इस्लामिक आतंकवादियों के हाथों मारे जाने वाले मुसलमानों की मौत पर इन्हें उतनी खुशी नहीं मिलती है जितनी इस्राइल की कार्रवाई में मारे गए फिलिस्तीनियों की मौत पर मिलती है। यह साफ है कि जहां कहीं भी मुसलमानों की मौत होती है, इन्हें सुकून मिलता है।

आपके मन में ये सवाल पैदा हो सकता है कि ये कौन लोग हैं, कहां रहते हैं और कहां से आते हैं? तो जवाब भी सुन लीजिए। ये हमारे आसपास ही रहते हैं। हमीं लोगों में से हैं। हो सकता है हमारे परिवार का कोई सदस्य हो। जो दिखता इंसानों जैसा है, लेकिन दिमाग से वह जॉम्बी बन चुका है। अपने जैसे इंसानों की मौत पर उसे दुख नहीं बल्कि आनंद मिलता है। हम यह भी दावा नहीं करते कि ऐसे लोग किसी खास जाति, मजहब या क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं। वह हममें से कोई भी हो सकता है।

आईआईटी मुंबई के पूर्व प्रोफेसर और मानवाधिकार कर्मी डाॅ. राम पुनियानी कहते हैं, 'दरअसल सोशल मीडिया पर इस्लाम और मुसलमानों के विरूद्ध इस तरह के घृणास्पद अभियान चलाना दक्षिणपंथी संगठनों और समूहों से जुड़े लोगों की कुंठा को प्रदर्शित करता है। ऐसे लोगों की नजर में शुरू से ही इस्राइल एक रोल मॉडल देश रहा है, जो इस्लाम के अनुयायियों का दमन करता है। उनके साथ हिंसा करता है। उनके मानवाधिकारों को कुचलता है। वह भारत में भी ऐसी कार्रवाई चाहते हैं और इसलिए उनका समर्थन करते हैं। उन्हें लगता है कि जो काम हमारी सरकार नहीं कर पाती है वह इस्राइल कर रहा है। इसलिए उन्हें इस बात से खुशी मिलती है और वह आज इस्राइल के साथ खड़े हैं।'

अरब देश और मुसलमान इस्राइल को कभी स्वीकार नहीं कर पाए हैं और इस विवाद की जड़ें काफी गहरी हैं। इस समस्या का समाधान किसी सैन्य कार्रवाई या नरसंहार से नहीं किया जा सकता है। जब तक पश्चिमी ताकतें अपने लोभ-लालच का त्याग कर दोनों देशों के मध्य शांति बहाली का ईमानदार प्रयास नहीं करेंगे मध्य पूर्व में अशांति का माहौल बना रहेगा।

होता नहीं कराया जाता है सोशल मीडिया ट्रेंड

भारत में कोविड संक्रमण के इस भीषण संकट में जहां एक-एक जिंदगी बचाने के लिए लोग संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे समय सोशल मीडिया पर साम्प्रदायिक घृणा का प्रचार हम भारतीय के संवेदनहीनता को प्रदर्शित करता है जो भारतीय जनमानस के मूल चरित्र के बिल्कुल विपरीत है। क्या यह एक समूदाय विशेष के खिलाफ चलाया जाने वाला किसी सुनियोजित अभियान का हिस्सा है या फिर देश के नागरिकों का कोविड संक्रमण से ध्यान भटकाने की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा, इसकी पड़ताल जरूरी है।


महात्मा गांधी सेंट्रल यूनिवर्सिटी, मोतिहारी में जन संचार के प्राध्यापक और सोशल मीडिया के अध्येयता डाॅ. साकेत रमण कहते हैं, 'सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड होता नहीं है, बल्कि कराया जाता है। किसी निहित एजेंडे के तहत एक मजबूत लाॅबी इसके पीछे काम करती है। बड़ी-बड़ी कंपनियों और एजेंसियों के द्वारा इस काम को अंजाम दिया जाता है।'

डाॅ. साकेत कहते हैं, 'इस काम के पीछे कोई सरकार, थिंकटैंक समूह या विदेशी ताकतें भी हो सकती हैं जिन्हें किसी देश या समुदाय के समर्थन और विरोध में पब्लिक ओपिनियन बनाने में कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ होता हुआ दिख रहा हो।'

भारत में हालिया हैशटैग ट्रेंड 'आई स्टैंड विद इस्राइल' और 'आई स्टैंड विद फिलिस्तीन' पर साकेत कहते हैं, संभव है देश में इस समय कोरोना संक्रमण को लेकर उपजे स्वास्थ्य संकट और उसमें सरकार की असफलता के बाद लोक विमर्श को बदलने के लिए भी ऐसा किया जा सकता है।

वह आगे कहते हैं, 'आप ऐसे हैशटैग ट्रेंड के डेमोग्राफी का अध्ययन करने पर पाएंगे कि किसी एक देश से ट्रेंड नहीं किए जाते हैं बल्कि यह वैश्विक प्रकृति का होता है। 'आई स्टैंड विद इस्राइल' और 'आई स्टैंड विद फिलिस्तीन' हैशटैग दुनिया के कई देशों के यूजर आईडी से ट्रेंड किए गए हैं। कई सीधे-साधे सोशल मीडिया यूजर इसे समझ भी नहीं पाते हैं और वह इसे अपनी टाइमलाइन पर शेयर की इसकी रीच बढ़ा रहे होते हैं।'

भारत में इस्राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को लेकर हुए हालिया हैशटैग ट्रेंड पर जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में सेंटर फाॅर वेस्ट एशियन स्टडीज के प्रोफेसर एके पाशा कहते हैं, 'भारत आरंभ से ही फिलिस्तीन-इस्राइल विवाद में फिलिस्तीन के हितों के साथ खड़ा रहा है। सरकारें बदलने से उनकी प्राथमिकताएं थोड़ी बहुत-बदल जाती है लेकिन भारत के लिए फिलिस्तीन या अरब देशों को दरकिनार कर इस्राइल के समर्थन में खड़े होना न तो देशहित में है और न ही यह हमारी विदेश नीति के अनुकूल है।'

हैशटैग ट्रेंड पर वह कहते हैं, भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। जो लोग अभी इस्राइल का समर्थन और फिलिस्तीन का विरोध कर रहे हैं वही लोग कुछ दिनों पहले अरब देशों से आक्सीजन सिलेंडर और अन्य चिकित्सीय सहायता आने पर उनका गुणगान कर रहे थे। दरअसल ये वह लोग हैं जिन्हें भारत, उसकी विदेश नीति और इस्राइल-फिलिस्तीन जैसे विवादों की कोई समझ नहीं होती है।

'ये किसी भेड़चाल की तरह किसी खास दिशा में हांक दिए जाने वाले लोग हैं। आप इन्हें जो नाम देना चाहें वह दे सकते हैं। ऐसे हैशटैग ट्रेंड से न तो किसी देश की विदेश नीति तय होती है और न ही अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिलता है। हां, मित्र राष्ट्रों और विश्व समुदाय में देश की छवि को जरूर चोट पहुंचती है।'

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