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विमर्श

ट्रम्प बनाम मोदी : किसका झूठ सबसे मजबूत ?

Janjwar Desk
1 July 2025 4:46 PM IST
ट्रम्प बनाम मोदी : किसका झूठ सबसे मजबूत ?
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file photo

यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि भारत पाकिस्तान के बीच युद्धविराम किसने करवाया, किन शर्तों पर हुआ। मोदी-ट्रम्प फ़ोन कॉल के बारे में जारी भारतीय बयान इस बात को तो स्वीकार करता है कि युद्धविराम से 24 घंटे पहले अमरीका के उपराष्ट्रपति वैन्स ने प्रधानमंत्री मोदी को फ़ोन किया था, युद्ध के बारे में बातचीत की थी...

राजनीतिक विश्लेषक योगेन्द्र यादव की टिप्पणी

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बात पर भरोसा करना मुश्किल है। सच से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा है। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प ने 30,573 बार झूठ बोला था, यानी प्रतिदिन 21 झूठ। उन्हें जानने वाले लोग कहते हैं की उनका सारा जीवन असत्य के प्रयोग करते हुए बीता है। अपने माँ-बाप की पैदाइश से लेकर अपने बिज़नेस और महिलाओं से संबंध से लेकर राजनीति — कोई ऐसा विषय नहीं जिसपर ट्रम्प का झूठ पकड़ा न जा चुका हो। झूठ पकड़े जाने से उन पर उतना ही असर होता है जितना चिकने घड़े पर पानी का। इसलिए जब डोनाल्ड ट्रम्प यह दावा करते हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान में युद्ध को एटम बम्ब वाली खतरनाक दिशा में जाने से रोक दिया तो उसे उतनी गंभीरता स भी नहीं लिया जा सकता जैसे किसी भी राष्ट्राध्यक्ष के बयान को लिया जाना चाहिए।

उधर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कोई सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं हैं। वैसे उनके झूठ की कभी गिनती नहीं हुई है (हमारे किस अखबार की मजाल!) लेकिन अगर होती भी तो ट्रम्प से कम ही निकलती। ट्रम्प ने तो मानो सच न बोलने की कसम खा रखी है। मोदी जी ने ऐसी कोई प्रतिज्ञा नहीं की है। वे इस मामले में परिस्थिति सापेक्ष हैं — न सच से दोस्ती न ही सच से बैर। जहाँ सच से काम चल गया वहाँ सच, लेकिन जरूरत पड़े तो असत्य से भी परहेज नहीं है उन्हें। चाहे हर भारतीय के अकाउंट में 15 लाख डालने का वादा हो या फिर किसान की आय दुगनी करने का। नोटबंदी से देश को हुए फायदे का दावा हो या कोविड के दौरान हुई मौतों की संख्या का। या फिर लद्दाख में “कोई नहीं घुसा है” जैसे बयान हों। इस इतिहास के चलते उनके किसी बयान को भी स्वयंसिद्ध नहीं माना जा सकता।

इसलिए भारत-पाक युद्धविराम कैसे हुआ, किसने करवाया और किस शर्त पर इस मसले पर किसी एक नेता के बयान को आंख मूंदकर मान लेने की बजाय तथ्यों की जांच करना जरूरी होगा। पिछले हफ्ते इस मुद्दे पर एक बड़ा मोड़ आया, जब जी-7 की कनाडा में हुई बैठक से ट्रम्प को जल्दी निकलना पड़ा और दोनों की मुलाक़ात नहीं हो पायी तब कनाडा से ही प्रधानमंत्री मोदी और अमरीका से राष्ट्रपति ट्रम्प के बीच 17 जून को कोई 35 मिनट तक टेलीफोन कॉल हुई। इस वार्ता में बाद भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ़ से बातचीत का ब्यौरा देते हुए एक बयान आया। इस बयान में पहली बार भारत सरकार ने ट्रम्प द्वारा भारत-पाकिस्तान में मध्यस्थता करवाने के दावे का खंडन किया।

इस बयान के अनुसार “प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति ट्रंप को साफ़ तौर पर बताया कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान किसी भी स्तर पर भारत-अमेरिका व्यापार समझौते या भारत और पाकिस्तान के बीच अमेरिका द्वारा मध्यस्थता के किसी प्रस्ताव पर कोई चर्चा नहीं हुई। सैन्य कार्रवाई बंद करने की चर्चा भारत और पाकिस्तान के बीच दोनों सशस्त्र बलों के बीच मौजूदा संचार चैनलों के ज़रिए सीधे हुई और इसकी शुरुआत पाकिस्तान के अनुरोध पर हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने दृढ़ता से कहा कि भारत मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता और कभी नहीं करेगा। इस मामले पर भारत में पूरी तरह से राजनीतिक सहमति है।”

तो क्या राष्ट्रपति ट्रम्प ने प्रधानमंत्री मोदी की इस बात को मान लिया? भारत सरकार का बयान इस पर चुप है। अमरीकी पक्ष से इस टेलीफोन कॉल के बारे में कोई बयान जारी नहीं हुआ। भारतीय बयान सिर्फ़ इतना कहता है कि ट्रम्प ने मोदी की बात को ध्यान से सुना। ध्यान से सुनने का क्या असर हुआ इसके बारे में हम सिर्फ़ इतना जानते हैं कि इस बातचीत के कुछ ही घंटे बाद ट्रम्प में यह दावा तेरहवीं बार दोहराया कि भारत और पाकिस्तान का युद्ध उन्होंने रुकवाया था। वार्ता के अगले दिन ट्रम्प ने पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष मुनीर को लंच पर बुलाया, जहाँ मुनीर ने ट्रम्प के इस दावे की पुष्टि की और उन्हें युद्धविराम के लिए धन्यवाद दिया। मतलब ढाक के तीन पात।

फिर भी भारत सरकार का बयान महत्वहीन नहीं है। मोदी जी ने ट्रम्प को क्या कहा, उन्होंने क्या सुना इसे छोड़कर इस बयान में एक अच्छी बात है। भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में भारत पाक संबंध में अमरीका की मध्यस्थता भारत में किसी पक्ष को भी नहीं चाहिए। पिछले छह दशक से भारत की तमाम सरकारों में इस बात पर सहमति रही है। यानी कि इतना तो आश्वस्त हो सकते हैं कि इस प्रकरण में जो भी हुआ, भारत आगे से अपनी विदेश नीति के इस संकल्प पर कायम रहेगा।

लेकिन यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि भारत पाकिस्तान के बीच युद्धविराम किसने करवाया, किन शर्तों पर हुआ। मोदी-ट्रम्प फ़ोन कॉल के बारे में जारी भारतीय बयान इस बात को तो स्वीकार करता है कि युद्धविराम से 24 घंटे पहले अमरीका के उपराष्ट्रपति वैन्स ने प्रधानमंत्री मोदी को फ़ोन किया था, युद्ध के बारे में बातचीत की थी। मोदी जी ने फ़ोन पर यह तो कहा कि उस दौरान कहीं व्यापार की बात नहीं हुई, लेकिन यह नहीं बताया कि और क्या कुछ बात हुई। बयान इसकी सफ़ाई नहीं देता कि अगर युद्धविराम की बातचीत सिर्फ़ भारत और पाकिस्तान के बीच हुई तो युद्धविराम की घोषणा भारत या पाकिस्तान के विदेश मंत्री की बजाय सबसे पहले अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कैसे कर दी?

मोदी जी ने यह बताया कि युद्धविराम की पहल पाकिस्तान की तरफ़ से हुई। यह बात सही लगती है चूंकि तीसरे दिन की सैन्य कार्यवाही में पाकिस्तान की वायु सेना को भारी नुक़सान की ख़बर है। लेकिन मोदी जी ने यह साफ़ नहीं किया कि क्या पाकिस्तान का अनुरोध अमरीका के ज़रिए आया था? मतलब क्या बातचीत की शुरुआत अमरीका ने करवाई थी? यह बयान प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र ने नाम संदेश में किए उस बड़े दावे पर भी चुप्पी साध जाता है कि युद्धविराम तभी हुआ जब पाकिस्तान की तरफ़ से वादा किया गया कि “उसकी ओर से आगे कोई आतंकी गतिविधि और सैन्य दुस्साहस नहीं दिखाया जाएगा।” देश को आज तक इन सवालों के उत्तर का इंतज़ार है: किसने यह वादा किया? किसको किया? इसे लागू कैसे करवाया जाएगा?

ले देकर अभी भी दाल में कुछ काला नजर आता है। हो न हो, सभी तरफ़ से कुछ न कुछ झूठ बोला जा रहा है। कहना मुश्किल है किसका झूठ सबसे मजबूत। पूरे सच के लिए हमें इतिहासकारों पर निर्भर करना पड़ेगा।

(योगेंद्र यादव के इस लेख को नवोदय टाइम्स में भी पढ़ा जा सकता है।)

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