Varun Gandhi के कांग्रेस में जाने के वो 10 कारण जिससे कोई नहीं कर सकता इनकार
(भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से मेनका गांधी और वरुण गांधी को किया गया है बाहर)
Varun Gandhi जनज्वार। हाल में ही किसानों के समर्थन में खडी मेनका गांधी – वरुण गांधी (Menaka Gandhi -Varun Gandhi), अर्थात मां-बेटा की जोड़ी को बीजेपी ने कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखाया है, और दूसरे तरफ अजय मिश्रा – आशीष मिश्रा के अपराधी जोड़ी के समर्थन में खुलेआम खड़ी है। ऐसे तो बीजेपी (BJP) के साथ ही सरकार का चाल, चरित्र और चेहरा लगातार उजागर होता है, पर लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) के नरसंहार काण्ड के बाद से तो यह पूरी तरह से दुनिया के सामने आ गया है। बीजेपी का मौलिक स्वभाव अपराधियों को बचाना और जनता के साथ ही हरेक उस आवाज का दमन है जो उसके विरुद्ध उठती हैं।
जाहिर है, बीजेपी से जुड़े अधिकतर लोगों का जमीर मर चुका है, और जमीर के साथ ही सही और गलत का फर्क भी। ऐसे में जिनका भी मस्तिष्क अभी तक बीजेपी की राय से अलग विश्लेषण करने में सक्षम है, वह बीजेपी का सबसे बड़ा दुश्मन है। पर कुछ दुश्मन ऐसे भी होते हैं, जिन्हें आप पार्टी से आसानी से निकाल नहीं पाते – ऐसे लोगों के पर क़तर दिए जाते हैं।
वरुण गांधी (Varun Gandhi) और मेनका गांधी (Menaka Gandhi) को पार्टी कार्यकारिणी से बाहर कर बीजेपी ने पर कतरने का स्पष्ट सन्देश दे दिया है। इसके बाद से ही सोशल मीडिया (Social Media) और मेनस्ट्रीम मीडिया के हलकों में चर्चा का बाजार गर्म है कि क्या वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं? हालां कि, वरुण गांधी की तरफ से इसका कोई स्पष्ट सन्देश नहीं आया है, फिर भी कुछ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कारण हैं, जिनके कारण इन अटकलों को बल मिल रहा है।
1. वरुण गांधी भी लखीमपुर खीरी नरसंहार के बाद से किसानों को रौंदने और आशीष मिश्रा की गिरफ्तारी के सन्दर्भ में आवाज बुलंद कर रहे हैं, सोशल मीडिया के माध्यम से इस मामले को दबाने नहीं दे रहे हैं और नरसंहार से सम्बंधित लगातार नए वीडियो पोस्ट कर रहे हैं।
2. वरुण गांधी भी आम जनता और किसानों के साथ गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग कर रहे हैं। दूसरी तरफ, बीजेपी तो इसे कोई घटना मानने को ही तैयार नहीं है – पार्टी के अनुसार तो किसान अराजक है, उग्रवादी हैं, हिंसक है – जाहिर है मंत्री के इस्तीफे या बेटे की गिरफ्तारी बीजेपी का कोई मुद्दा नहीं है। वरुण गांधी ने आदित्यनाथ का इस सन्दर्भ में विरोध करते हुए एक पत्र भी लिखा था।
3. वरुण गांधी किसानों और खेती के मुद्दे पर शुरू से ही सजग रहे हैं, जाहिर है उनके विचार किसानों के मुद्दे पर पूरी पार्टी और प्रधानमंत्री से अलग हैं। उन्होंने पिछले 4-5 वर्षों के दौरान देश के प्रतिष्ठित समाचारपत्रों में कृषि व्यवस्था और किसानों के हालात पर बड़े विद्वत्तापूर्ण लेख भी लिखे हैं।
4. उन्होंने कृषि कानूनों (Farm Laws) का मुखर विरोध तो नहीं किया था, पर इसके प्रचार-प्रसार के लिए पार्टी निर्देशों कभी आगे भी नहीं आये।
5. सरकार किसानों के आन्दोलन को किसी भी तरह उग्र बनाना चाहती है, और बातचीत के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। लखीमपुर खीरी नरसंहार के बाद वरुण गांधी ने अनेक बार कहा है कि कृषि कानूनों के सन्दर्भ में किसानों कके विरोध को सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए और किसान संगठनों से बातचीत लगातार जारी रखनी चाहिए।
6. वरुण गांधी ने पार्टी के तमाम नेताओं की राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी (Priyanaka Gandhi) पर भद्दी टिप्पणियों और चरित्र हनन के बाद भी कभी इनके बारे में अपशब्द नहीं कहा है। जब भी राहुल और वरुण गांधी की मुलाकात होती है, वातावरण बड़ा सौहार्द्य जैसा रहता है।
7. वरुण गांधी को कहीं न कहीं अपनी मां मेनका गांधी का बीजेपी में तिरस्कार भी नजर आता होगा। मेनका गांधी से मंत्री पद छीन लिया गया और अब तो राष्ट्रीय कार्यकारिणी से भी बाहर कर दिया गया।
8. वक्तव्यों, लेखों और सोशल मीडिया पोस्ट द्वारा यदि विश्लेषण करें तो निश्चित तौर पर वरुण गांधी जनता से जुड़े अनेक मुद्दों के अच्छे खासे जानकार लगते हैं। कम से कम ऐसे लोगों की बीजेपी को जरूरत नहीं है।
9. बीजेपी में तो वही चल सकता है जो चाटुकारिता में निपुण होने के साथ ही तर्कहीन और बुद्धिहीन हो, कम से कम वरुण गांधी ऐसे नजर नहीं आते।
10. उनके पास दो ही विकल्प हैं – बीजेपी में रहकर लगातार अपमान और उपेक्षा सहना या फिर इससे बाहर आकर कांग्रेस या किसी दूसरे दल के साथ नई शुरुआत करना।