Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

क्या प्राप्त करके लौटे हैं विवेकानंद स्मारक से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ?

Janjwar Desk
2 Jun 2024 10:31 AM IST
क्या प्राप्त करके लौटे हैं विवेकानंद स्मारक से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ?
x
इसे किसी उच्च-स्तरीय आध्यात्मिक साधना का परिणाम माना जा सकता है कि एक ऐसे समय जब बची हुई 57 सीटों पर मतदान के ज़रिए सरकार का भविष्य तय हो रहा था, प्रधानमंत्री बिना विचलित हुए इतने लंबे समय के लिए ध्यान में बैठे रहे होंगे! उन्हें इस दौरान न तो मतदाताओं के रुझान और न ही मतदान के प्रतिशत को जानने में कोई रुचि रही होगी। उनका पूरा ध्यान विवेकानंद की मूर्ति और स्मारक के पूजा हॉल के एकांतवास में किसी दिव्य अनुभूति से साक्षात्कार पर ही केंद्रित रहा होगा...

वरिष्ठ संपादक श्रवण गर्ग की टिप्पणी

Loksabha Election 2024 Result : एक लंबी चुनाव-प्रचार-यात्रा के बाद प्रधानमंत्री के लिये कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद स्मारक पर ध्यान लगाना ज़रूरी हो गया था। अपने इस एकांतवास के दौरान मोदी जो फ़ैसले लिए होंगे उनका पता चार जून के बाद ही चल पाएगा। चार जून के कुछ संकेत तो एक जून के एग्जिट पोल्स में ही देश ने पढ़ लिये हैं। मतदाताओं को अब ज़्यादा साँसें रोककर नतीजों की प्रतीक्षा नहीं करना पड़ेगी।

पिछले पाँच सालों के दौरान मोदीजी का ज़्यादा ध्यान केंद्र में भाजपा की सत्ता को मज़बूत करने और राज्यों में विपक्ष की सत्ताओं को कमज़ोर करने पर केंद्रित रहा था, इसलिए वे उस ध्यान के लिए समय नहीं निकल पाए होंगे जो स्वामी विवेकानंद (जन्म नाम नरेंद्र) ने 1892 में कन्याकुमारी के इसी स्थान पर तीन दिनों के लिए किसी दिव्य अवधारणा की अनुभूति के लिए लगाया था। प्रधानमंत्री से सवाल नहीं किया जा सकता है कि ध्यान में उन्हें किस तरह की अनुभूति हुई। खबरों के मुताबिक़, ध्यान के दौरान प्रधानमंत्री के सुरक्षा इंतज़ामों में कोई दो हज़ार पुलिसकर्मियों की तैनाती स्मारक के आसपास की गई थी।

प्रधानमंत्री जब एक जून को स्मारक स्थित पूजा हॉल में ध्यान मुद्रा में रहे होंगे, उनके स्वयं के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी और स्वामी विवेकानंद के जन्मस्थान कोलकाता सहित देश के 57 चुनाव क्षेत्रों में मतदान प्रारंभ हो चुका था और उनके कन्याकुमारी से वापस लौटने तक लगभग समाप्त होने को था। पिछले चुनाव के आख़िरी चरण में 18 मई के दिन मोदी ने सत्रह घंटों के लिए केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगाया था, पर तब नतीजों की तस्वीर ज़्यादा साफ़ थी।

विपक्ष ने इस बात पर आपत्ति की थी कि अंतिम चरण के मतदान के बीच प्रधानमंत्री इस प्रकार का उपक्रम कर रहे हैं! ‘ध्यान’ का इस्तेमाल अगर राजनीतिक लाभ के लिए किया जाता है तो निर्वाचन आयोग द्वारा उसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना जाए। प्रधानमंत्री के ध्यान योग का कैमरों के ज़रिए प्रचार-प्रसार नहीं किया जाना चाहिए। विपक्षी दलों ने यह भी कहा था कि प्रधानमंत्री अगर चाहते तो अपना ‘ध्यान’ मतदान की समाप्ति के बाद एक जून की शाम से भी लगा सकते थे। देश ने देखा कि विपक्ष की माँग पर निर्वाचन आयोग द्वारा कोई संज्ञान लेने के पहले ही विभिन्न मुद्राओं में प्रधानमंत्री के ध्यान से जुड़ी तस्वीरें और वीडियो दुनिया भर में जारी हो गए।

इस बात का विश्लेषण किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री जब विवेकानंद स्मारक पर ध्यानस्थ रहे होंगे, देश की जनता उन्हें लेकर क्या सोच रही थी? विपक्षी दलों का ध्यान किस तरफ़ था? वाराणसी के मतदाताओं के मन में अपने वीवीआईपी प्रत्याशी को लेकर किस तरह की उथल-पुथल चल रही थी? केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री के ध्यान के मुहूर्तों का निर्धारण सुयोग्य ज्योतिषियों द्वारा काल-गणना के आधार पर किया गया होगा।

विवेकानंद स्मारक पर बिताए गए समय की प्रधानमंत्री के जीवन के बहुमूल्य क्षणों में इसलिए गणना की जानी चाहिए कि गृहमंत्री अमित शाह द्वारा समय-समय पर किए जाने वाले दावों के मुताबिक़ मोदी न तो आराम करते हैं और न छुट्टी लेते हैं। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर रखा है। उनके द्वारा नींद लेने के घंटों के बारे में भी अलग-अलग अनुमान हैं। (प्रधानमंत्री ने अभिनेता अक्षय कुमार को एक साक्षात्कार में बताया था कि वे सिर्फ़ साढ़े तीन घंटे सोते हैं, जो उनके लिए काफ़ी है। मोदी ने अक्षय कुमार से यह भी कहा था कि रिटायरमेंट के बाद वे सोचेंगे कि अपनी नींद के घंटे कैसे बढ़ाएँ।)

इसे किसी उच्च-स्तरीय आध्यात्मिक साधना का परिणाम माना जा सकता है कि एक ऐसे समय जब बची हुई 57 सीटों पर मतदान के ज़रिए सरकार का भविष्य तय हो रहा था, प्रधानमंत्री बिना विचलित हुए इतने लंबे समय के लिए ध्यान में बैठे रहे होंगे! उन्हें इस दौरान न तो मतदाताओं के रुझान और न ही मतदान के प्रतिशत को जानने में कोई रुचि रही होगी। उनका पूरा ध्यान विवेकानंद की मूर्ति और स्मारक के पूजा हॉल के एकांतवास में किसी दिव्य अनुभूति से साक्षात्कार पर ही केंद्रित रहा होगा।

प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों एक टीवी चैनल के साथ साक्षात्कार में इस आशय का कुछ कहा था : 'जब तक माँ ज़िंदा थीं तब तक लगता था बायोलॉजिकली जन्म लिया होगा। माँ के जाने के बाद कन्विंस हो चुका हूँ कि परमात्मा ने मुझे भेजा है। बायोलॉजिकल शरीर से नहीं हूँ। ईश्वर ने मुझसे कोई काम लेना तय किया है। मैं सिर्फ़ ईश्वर को समर्पित हूँ।’ देश की जिज्ञासा अब ऐसे किसी चमत्कार को देखने की हो सकती है कि 132 साल पहले जिस स्थान पर तैर कर पहुँचने के बाद स्वामी विवेकानंद ने तीन दिनों का ध्यान लगाया था वहाँ से लौटने के बाद प्रधानमंत्री में किस तरह के परिवर्तन हुए हैं!

मोदी अगर तीसरी बार भी बहुमत प्राप्त करके सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं (जैसा कि एग्जिट पोल्स संकेत देते हैं) तो भय-मिश्रित उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा करना पड़ेगी कि उनके द्वारा विवेकानंद स्मारक पर बिताए गए 45 घंटे अगले पाँच सालों के लिए देश का कैसा भविष्य तय करने वाले हैं! भय-मिश्रित इसलिए कि किसी आध्यात्मिक स्थल पर एक पवित्र ध्यान-साधना के उद्देश्य के लिए रवाना होने से ठीक पहले चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री के जो रूप प्रकट हुए वे निश्चित ही चिंता उत्पन्न करने वाले हैं।

(होशियारपुर (पंजाब) की अंतिम चुनावी सभा( 30 मई) में मोदी ने विपक्षी गठबंधन को ललकारते हुए कहा था : 'मैं चुप बैठा हूँ……..गलती मत कीजियेगा मोदी को समझने में। इंडी (इंडिया गठबंधन) वाले मेरा मुँह न खुलवाएँ जिस दिन मुँह खोलूँगा तो आप की सात पीढ़ियों के पाप निकालकर रख दूँगा।’)

नागरिकों के लिए जिज्ञासा का विषय हो सकता है कि अपने विरोधियों के प्रति इतनी नाराज़गी के साथ भी एक अत्यंत शांत स्थल पर इतने कष्ट-साध्य ध्यान-योग में सफलतापूर्वक चित्त लगा लेने के बाद प्रधानमंत्री देश के लिए क्या प्राप्त करके लौटे होंगे? क्या सरकार के लिए इतने उत्साहवर्धक एग्जिट पोल को चार जून के पहले ध्यान-साधना की बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता?

(इस लेख को shravangarg1717.blogspot.com पर भी पढ़ा जा सकता है।)

Next Story