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विमर्श

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन का निरंकुश शासक के लिए सबसे अच्छा समय अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन

Janjwar Desk
11 Dec 2022 12:36 PM IST
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन का निरंकुश शासक के लिए सबसे अच्छा समय अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन
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कतर में वर्ल्ड कप की तैयारियों के दौरान लगभग 6500 श्रमिकों की मौत दुर्घटना के कारण या अस्वाभाविक कारणों से हुई है। वर्ल्ड कप के आयोजकों ने हरेक बार ऐसी रिपोर्टों को झूठ कहा है और यह भी कहा कि अधिकतर मौतें स्वाभाविक कारणों से हुई हैं...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

When reporters asked to Chief Executive of Qatar FIFA World Cup regarding accidental death of a Filipino worker, He Said "Death is a natural part of life – whether it is at work or in sleep". पूरी दुनिया फुटबाल वर्ल्ड कप के खुमार में डूबी है, मीडिया से लेकर जनता तक सभी खिलाड़ियों की और टीमों की चर्चा में व्यस्त हैं। इसी बीच, फिलीपींस के एक श्रमिक की मौत काम करने के दौरान हो जाती है।

इस बारे में जब पत्रकारों ने चीफ एग्जीक्यूटिव नासेर अल खटर से सवाल किया तब उन्होंने कहा कि 'मौत एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, चाहे मौत काम करने के दौरान हो या फिर सोते हुए।' इससे पहले उन्होंने कहा कि, वर्ल्ड कप आधे से अधिक बीत चुका है, इसका आयोजन शानदार और सफल रहा है, ऐसे में इस तरह के ओछे प्रश्न पत्रकारों को शोभा नहीं देते। उन्होंने यह भी कहा कि यह उनकी समझ से बाहर है कि फुटबाल वर्ल्ड कप के भव्य समारोह के बीच एक श्रमिक की मौत पर पत्रकार चर्चा क्यों कर रहे हैं?

कुछ दिनों पहले फिलीपींस के एक श्रमिक की मौत वर्ल्ड कप आयोजनों से जुड़े एक रिसोर्ट के कार पार्किंग क्षेत्र में लाईट लगाने के दौरान हो गयी थी। इस श्रमिक की मौत ऊंचाई से जमीन पर गिरने के कारण हो गयी थी। क़तर के अधिकारियों ने इस मामले को दबाने का पूरा प्रयास किया, पर मीडिया को इसकी खबर मिल ही गयी।

क़तर को जब से फीफा वर्ल्ड कप के आयोजन का जिम्मा दिया गया है, तब से लगातार वहां प्रवासी श्रमिकों की काम के दौरान होने वाली दुर्घटना के कारण होने वाली मृत्यु दुनिया के मीडिया में और मानवाधिकार संगठनों में चर्चा का विषय रही है। पर, तानाशाही के अनुरूप क़तर ने हमेशा ऐसी खबरों का खंडन किया है और ऐसी खबरों को मीडिया की कारस्तानी करार दिया है।

मानवाधिकार का झंडा उठाये देशों ने और संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे मामलों पर चुप्पी साध ली है। क़तर ने ऐसे मामलों को दबाने के लिए वर्ल्ड कप से पहले अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए जो निर्देश जारी किये थे, उसें सबसे पहले लिखा था कि कोई भी पत्रकार किसी श्रमिक से बात नहीं कर सकता, उनके रहने की जगहों पर नहीं जा सकता, और ना ही ऐसी जगहों के चित्र खींच सकता है।

गार्डियन ने वर्ष 2021 में बताया था कि क़तर में वर्ल्ड कप की तैयारियों के दौरान लगभग 6500 श्रमिकों की मौत दुर्घटना के कारण या अस्वाभाविक कारणों से हुई है। वर्ल्ड कप के आयोजकों ने हरेक बार ऐसी रिपोर्टों को झूठ कहा है और यह भी कहा कि अधिकतर मौतें स्वाभाविक कारणों से हुई हैं। वर्ल्ड कप से जुडी सुप्रीम कमेटी ने कहा है कि इस श्रमिक के मौत के कारणों की जांच नहीं होगी क्योंकि वह एक दिहाड़ी श्रमिक था और किसी ठेकेदार के लिए काम करता था। वहां श्रमिकों के मौत के आंकड़ों पर किस तरह का खेल खेला जा रहा है, यह सुप्रीम कमेटी के ही दो वक्तव्यों से स्पष्ट होता है।

इसके अध्यक्ष ने हाल में ही एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि वर्ल्ड कप से जुड़े कार्यों में 400 से 500 के बीच श्रमिकों की मौत हुई है। इसके ठीक बाद उन्होंने एक पत्रकार सम्मलेन में बताया कि केवल तीन श्रमिकों की मौत निर्माण कार्यों के दौरान और 37 की मौत दूसरे कारणों से हुई है।

निरंकुश शासकों और तानाशाहों के लिए कोई भी अंतरराष्ट्रीय आयोजन अपनी निरंकुशता और मानवाधिकार हनन को ढकने का एक मौका होता है, और इस मौके का फायदा ऐसी सरकारें अपने विरोधियों के दमन के लिए करती हैं। हमारे देश में भी अगले वर्ष सितम्बर में आयोजित किये जाने वाले जी-20 सम्मलेन की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं, और उस समय तक इस सम्मेलन को सुचारू रूप से आयोजित करने के नाम पर सरकार की नीतियों के विरोधी और मानवाधिकार कार्यकर्ता अलग-अलग बहानों से खामोश किये जा चुके होंगें। जम्मू-कश्मीर में विरोध के स्वर का दमन तो पूरी दुनिया देख रही है।

हाल में ही अमेरिकन पोलिटिकल साइंस रिव्यू नामक जर्नल में इसी विषय से सम्बंधित यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगेन और कार्नेगी मेलों यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक संयुक्त दल द्वारा किया गया अध्ययन प्रकाशित किया गया है। इसके अनुसार निरंकुश शासक अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की आड़ में अपने राजनैतिक विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या और दमन करते हैं। यह दमन ऐसे आयोजनों से पहले, आयोजनों के समय और आयोजनों के बाद भी किया जाता है। दुखद तथ्य यह है कि शीत युद्ध का दौर ख़त्म होने के बाद से निरंकुश शासकों वाले देशों में ऐसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में चार-गुना बृद्धि हो गयी है।

इन आयोजनों से पहले आयोजक सरकार का विरोध करने वाले हजारों कार्यकर्ता रातों-रात अगवा कर लिए जाते हैं और इनमें से अनेकों की ह्त्या कर दी जाती है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन के लिए सबसे निरंकुश शासक की नजर में सबसे अच्छा समय अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों के दौरान होता है, इस समय पूरी दुनिया के मीडिया की निगाहें चर्चाओं, संबोधनों और नेताओं के वक्तव्यों पर होती हैं और इस दौरान की जाने वाली दमन-कार्यवाही की भनक किसी को नहीं होती।

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