Santhal Tribe Lifestyle: क्या रुढ़िवादी विचारधारा से संताल समाज का विकास होगा?
Santhal Tribe Lifestyle: क्या रुढ़िवादी विचारधारा से संताल समाज का विकास होगा?
वीरेंद्र कुमार बास्के की टिप्पणी
Santhal Tribe Lifestyle: आदिवासी समाज के अधिकांश लोग रुढ़िवाद को सीने से लगाए बैठे हैं। रुढ़िवाद से उन लोगों को इतना प्यार है कि उसे किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते हैं। चूंकि,उन लोगों के नजर में रुढ़िवाद आदिवासियों के तथाकथित पहचान और अस्तित्व जो ठहरा!
आदिवासी समाज के रुढ़िवाद भी गज़ब का है! न बदलने की रुढ़िवाद! आबो दो सेदाय खोन नोंकागे!
कुछ भी हो जाए,पर हम बदलेंगे नहीं। रुढ़ ही रहेंगे।हम जहां हैं,वहीं रहेंगे। एक तरफ आदिवासी समाज पिछड़ापन का रोना रोते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ पिछड़ापन को (रुढ़िवाद) सीने से लगाए बैठे हैं। मानो रुढ़िवाद को न छोड़ने की कसम खा ली हो।
रुढ़िवाद और परंपरा में क्या अन्तर है?
बिना तर्क किए /सही और ग़लत का तर्क किए बिना पीढ़ी दर पीढ़ी किसी प्रथा/परंपरा का अनुसरण करना ही रुढ़िवाद है।कुछ अच्छे परंपराएं हैं,कुछ गलत परंपराएं भी हैं। कुछ परंपराओं में वैज्ञानिकता/सकारात्मकता है तो कुछ परंपराओं में नकारात्मकता भी है। सकारात्मकता परंपरा के निभाने से समाज में कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। जबकि कुछ ऐसे रीति-रिवाज या प्रथा है,जिसे समाज पर बुरा असर पड़ता है।ऐसी परंपरा को गलत परंपरा या रुढ़िवाद कहते हैं।
ASA क्या कहता है ?
अच्छे और बुरे परंपरा को पहचानो। अच्छे को अपनाओगे नहीं,बुरे को छोड़ोगे नहीं; तो खग सामाजिक विकास करोंगे? सामाजिक विकास के लिए जरुरी है कि अच्छे और बुरे परंपराओं पहचानो।गलत का त्याग करो।सही परंपराओं को अपनाओ।
डायन के नाम पर महिलाओं के साथ अन्याय और अत्याचार करोगे।समाज बचाने के नाम पर डंडोम और सामाजिक बहिष्कार करोगे।दंड के पैसों से हांडिया दारु पीयोगे! बोंगा बुरु-पूजा पाठ के नाम पर शराब का सेवन करोगे तो क्या तुम्हरा समाज खग बचेगा ?
जिस वोट से दिकू लोग नेता और सरकार को झुकाते हैं, आदिवासी लोग उसी वोट को चांद रुपयों में बेच देते हैं। राजनीति को हेय दृष्टि से देखते हैं! क्या ऐसे लोग कभी समाज का भला कर पाएंगे ?
कुछ आदिवासी कितने दोगले विचारधारा के होते हैं! नशापान, रुमोक् ,बुलोक्, ईर्ष्या-द्वेश,डंडोम- बारोण, हांडी चोडोर आदि गलत परंपराओं को छोड़ना नहीं चाहते हैं।वे इसी रुढ़िवाद को आदिवासी समाज के पहचान और अस्तित्व समझते हैं।क्या ऐसे लोग और ऐसा समाज कभी प्रगति कर पाएगा ?
गलत परंपरा को छोड़ो और आगे बढ़ो। सामाजिक सुधार आवश्यक है।समाज के हित के लिए।समाज के उन्नयन के लिए।आबो दो सेदाय खोन नोंकागे कहना छोड़ना होगा।
जिसे तुम स्वशासन व्यवस्था समझते हो, वास्तव में वह स्वशोषण व्यवस्था है।स्वशासन व्यवस्था का कार्य क्या है ? शिक्षा, रोजगार,स्वस्थ्य,भाषा का विकास, धर्म की रक्षा इत्यादि। पर वह यह सब करता नहीं है।
स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख मांझी बाबा क्या करते हैं? गांव के लडा़ई झगड़ों की फैसला करते हैं। लोगों से दंड वसूलते हैं।उस दंड के रुपयों से शराब पीते हैं। पैसा न मिले तो लोगों का सामाजिक बहिष्कार करते हैं।यह स्वशोषण नहीं है तो क्या है ? आदिवासी समाज का मटियामेट गैरों ने नहीं,मांझी बाबा लोगों ने किया है।
मांझी बाबा लोग सरना धर्म कोड की मांग नहीं करते।मांझी बाबा लोग संताली भाषा को राजभाषा बनाने की बात नहीं करते। संविधान में लिखे तमाम अधिकारों की बात नहीं करते। नशापान दूर करने की बात नहीं करते। अंधविश्वास दूर करने की बात नहीं करते।
तो.... मांझी बाबा क्या बात करते हैं? हांडिया दारु पीने की। मांस भात खाने की। किसी से जबरन दंड वसूली करने की।किसी को सामाजिक बहिष्कृत करने का।
क्या आदिवासी समाज का विकास ऐसे ही होगा ?
यह सवाल आप पर छोड़ता हूं। सोचिएगा जरुर।