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विमर्श

कोरोना संकट से महिलाएं अधिक प्रभावित, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हल करनी होंगी उनकी समस्याएं

Janjwar Desk
18 July 2020 6:11 AM GMT
कोरोना संकट से महिलाएं अधिक प्रभावित, अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हल करनी होंगी उनकी समस्याएं
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कोरोना संकट ने मानव स्वास्थ्य के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ी क्षति पहुंचाई है। महिलाएं विश्व की आबादी का आधा हिस्सा हैं और यह संकट उनके जीवन पर कैसा असर डाल रहा है इस पर मेलिंडा गेट्स ने एक आलेख लिखा है। उस पर महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण पढें :

विकसित देशों के समूह, जी 20 के वित्त मंत्रियों और राष्ट्रीय बैंकों के गवर्नर की मीटिंग से पहले गेट्स फाउंडेशन की मुखिया मेलिंडा गेट्स ने फॉरेन अफेयर्स नामक पत्रिका के जुलाई-अगस्त अंक में एक आलेख प्रकाशित किया है। द पेंडेमिक्स टोल ऑन वीमेन। इसमें उन्होंने बताया है कि वैश्विक महामारी का महिलाओं पर असंतुलित प्रभाव पड़ा है, जबकि महिलाएं महामारी के प्रभाव कम करने के लिए पुरुषों से अधिक योगदान कर रहीं हैं। ऐसे में यदि सरकारों ने अर्थव्यवस्था को दुबारा पटरी पर लाने की योजनाओं में यदि महिलाओं को और उनकी समस्याओं को शामिल नहीं किया या फिर उनकी उपेक्षा की तब अर्थव्यवस्था में सुधार कठिन होगा और केवल महिलाओं की उपेक्षा के कारण वैश्विक जीडीपी में वर्ष 2030 तक 10 खरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।

मेलिंडा गेट्स के अनुसार डिजिटल और आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी जब तक सामान नहीं होगी, लैंगिक समानता नहीं हो सकती है। यदि लैंगिक समानता के लिए अगले चार वर्षों तक सरकारों द्वारा व्यापक कदम नहीं उठाये गए, तब अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सरकारों को अनुमान से अधिक समय लगेगा। दुनियाभर में महिलाओं द्वारा अवैतनिक घरेलू कार्यों के मूल्य निर्धारण का समय आ गया है। अब लैंगिक समानता के साथ अर्थव्यवस्था को दुबारा खड़ा करने का समय है। अनेक आकलन बताते हैं कि दुनियाभर में महिलाएं यदि दो घंटे भी घरेलू कार्य में संलग्न रहतीं हैं तो उनके रोजगार के अवसर 10 प्रतिशत से भी कम हो जाते हैं।

मेलिंडा गेट्स लिखती हैं, कोविड 19 का दौर ऐसा दौर है जब सभी देशों के प्रमुख और अन्य राजनेता अपने पूरे परिवार के साथ घर में कैद थे। इस दौर में उन्होंने महिलाओं पर पड़ने वाले अतिरिक्त बोझ को भी देखा होगा। घरेलू कार्यों के साथ-साथ बच्चो और बुजुर्गों को संभालने की जिम्मेदारी भी महिलाएं ही उठातीं हैं। अब इन राजनेताओं और देशों के प्रमुखों को महिलाओं को इस असंतुलित बोझ से बाहर करना होगा, जिससे महिलाओं की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

संयुक्त राष्ट्र ने अप्रैल में चेताया था कि कोविड 19 भले ही वायरस से फ़ैलाने वाली वैश्विक महामारी हो, पर इसके साथ-साथ बहुत सारी सामाजिक समस्याएं उभर रही हैं और लॉकडाउन के दौरान बंद घरों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा तेजी से पनप रही है। महामारी हमेशा समाज की कुरीतियों और सर्वहारा वर्ग की समस्याएं प्रमुखता से उजागर करती है। अमेरिका, यूरोप और दक्षिणी अमेरिकी देशों में रंगभेद पहले भी था, पर कोविड 19 के प्रभाव ने उसे पूरी तरह से उजागर कर दिया। इसी तरह लैंगिक असमानता भी पूरी तरह से उजागर हो गई है। इस दौर में गर्भवती महिलाओं को अस्पतालों से वापस भेज दिया गया। महिलाओं के घर में अवैतनिक कार्य पहले से अधिक हो गए। सरकारों ने बड़े तामझाम से ऑनलाइन शिक्षा को शुरू किया, पर इसमें करोड़ों बच्चियां पढ़ाई से वंचित रह गईं क्योंकि लैपटॉप या स्मार्टफोन की सुविधा से लड़कियां वंचित हैं।

मेलिंडा गेट्स ने सभी राष्ट्राध्यक्षों से आग्रह किया है कि इस संकट की घड़ी को लैंगिक समानता के अवसर में बदलें, पुराने विश्व को बदल कर एक नई और बेहतर दुनिया बनाएं। महिलाओं को रोजगार की गारंटी मिले, स्वास्थ्य व्यवस्था सुदृढ़ हो और महिलाओं के प्रजनन से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं आवश्यक सेवाएं घोषित की जाएँ। उन्होंने यह भी कहा कि सभी प्रकार के नीति निर्धारण में सभी वर्ग के महिलाओं की भागीदारी बढाई जाए।

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