म्यांमार में सेना मीडिया पर लगा चुकी पूर्ण पाबंदी, 80 से ज्यादा पत्रकारों को भेजा जेल
वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
जनज्वार। अमेरिका में जो बाईडेन ने राष्ट्रपति बनने के बाद दुनिया में लोकतंत्र को मजबूत करने पर बहुत जोर देकर कहा था, पर उनके राष्ट्रपति बनने के ठीक बाद से भारत का पड़ोसी अदना सा देश म्यांमार में लोकतांत्रित सरकार को गिराकर सेना से कमान संभाल ली, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत सभी नेताओं को जेल में बंद कर दिया या नजरबंद कर दिया और देश के दुश्मनों पर उपयोग किये जाने वाले गोला-बारूद का इस्तेमाल निहत्थे शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे नागरिकों पर कर रही है।
पर लोकतंत्र का दम भरने वाले अमेरिका समेत सभी देश शांति से तमाशा देख रहे हैं। पहले तो म्यांमार से खबरें भी आती थीं, पर अब तो खबरों को भेजने के सारे रास्ते भी सेना बंद कर रही है और पत्रकारों को जेल में डाल रही है।
म्यांमार की सेना लगभग सभी समाचारपत्र और न्यूज़ चैनल बंद करा चुकी है, अब केवल सरकारी मीडिया देश में काम कर रही है। ब्रॉडबैंड है, पर इस पर बहुत सारी पाबंदियां हैं। पिछले 50 से अधिक दिनों से मोबाइल डाटा को काट दिया गया है और अब सैटेलाइट डिश पर भी पाबंदी लगा दी गयी है। सैटेलाइट डिश पर पाबंदी का उल्लंघन करने वाले के लिए एक वर्ष जेल या फिर 320 डॉलर के जुर्माना का प्रावधान है।
सभी स्वतंत्र मीडिया आउटलेट को प्रतिबंधित करने के बाद से कुछ पत्रकार छिपकर ऑनलाइन समाचार प्रसारित कर रहे थे या फिर केबल टीवी के माध्यम से समाचार भेज रहे थे। सरकारी मीडिया ग्लोबल न्यू लाइट ऑफ़ म्यांमार के अनुसार अब सैटलाइट डिश को प्रतिबंधित कर दिया गया है क्योंकि इससे देश की सुरक्षा और शांति को खतरा था।
एक प्रतिबंधित मीडिया आउटलेट, इरावादी न्यूज़ आउटलेट के अनुसार सेना और पुलिस ने अब तक 80 से अधिक पत्रकारों को जेल में भेज दिया है। इनमें से अधिकतर पर धारा 505 (ए) के तहत कानूनी कार्यवाही की जा रही है, जो डर का माहौल पैदा करने और फेक न्यूज़ फैलाने से सम्बंधित है।
इसके तहत दोषी ठहराए जाने पर तीन वर्ष की कैद का प्रावधान है। म्यांमार की सेना ने एक जापानी पत्रकार युकी किताज़ुमी को भी इसी धारा के तहत गिरफ्तार किया है। युकी किताज़ुमी जापान की क्योडो न्यूज़ एजेंसी से जुड़े हैं, और पहले विदेशी पत्रकार हैं जिन्हें म्यांमार की सेना ने कैद किया है।
म्यांमार के असिस्टेंस एसोसिएशन फॉर पोलिटिकल प्रिजनोर्स नामक संस्था के अनुसार सेना ने अब तक 770 आंदोलनकारियों की जान ली है, और लगभग 3700 आंदोलकारियों को जेल में बंद किया है। सेना लगातार शांतिपूर्ण आंदोलनों को कुचल रही है। काचिन में शांतिपूर्ण कैंडल मार्च पर भी गोलियां चलाई गईं, बागो में प्रदर्शनकारियों पर सेना की कार्यवाही में 5 आन्दोलनकारियों की मृत्यु हो गयी, इसमें एक संसद सदस्य थेट विन ह्लैंग भी थे। मंडले में स्कूली छात्रों के साथ, अभिभावकों और शिक्षकों ने भी सेना की सत्ता में शिक्षा के बहिष्कार का नारा बुलंद किया।
यांगून में लोकतंत्र समर्थकों ने अनेक बम धमाके किये, जिससे सेना और सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचा। संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के राजदूत ने दुनिया से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है, और आग्रह किया है कि म्यांमार की सेना और दूसरे संस्थानों के विरुद्ध कड़े प्रतिबंध लगाए जाएँ। राजदूत ने यह भी कहा है कि म्यांमार का मसला किसी एक देश का नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के लिए खतरा है।
अनेक विशेषज्ञों के अनुसार म्यांमार अब दूसरा सीरिया बनाने की राह पर है। वर्ष 2011 से सीरिया गृहयुद्ध की आग में झुलस रहा है, और विश्व समुदाय ने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया है। गृहयुद्ध में अब तक 5 लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और लगभग डेढ़ करोड़ नागरिक देश छोड़कर दूसरे देशों में विस्थापितों की जिन्दगी बिता रहे हैं।
सीरिया के नाम पर अमेरिका और रूस में लगातार तनातनी बनी रहती है, जिसके कारण गृहयुद्ध पहले से अधिक भयानक होता जा रहा है। म्यांमार में अभी तक जनता शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही है और इसके जवाब में सेना और पुलिस गोलियां चला रही है। अनेक खबरों के अनुसार अब जनता भी एकजुट होकर सशस्त्र संघर्ष की तैयारी कर रही है। दूसरी तरफ म्यांमार की अनेक जनजातियाँ भी सेना के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष और गोरिल्ला युद्ध का ऐलान कर चुकी हैं।
इस बीच म्यांमार में 1 फरवरी को सेना द्वारा तख्तापलट के बाद से लगभग 770 लोग मारे जा चुके हैं और 3700 से अधिक आन्दोलनकारियों को जेल में बंद कर दिया गया है। पूरी दुनिया लोकतंत्र की इस हत्या का तमाशा देख रही है और तालियाँ पीट रही है।