पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का मंदिर ढहाने को लेकर बड़ा फैसला, उपद्रवियों से 3 करोड़ 30 लाख रुपये वसूलने का दिया आदेश
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Pakistan News (जनज्वार): पाकिस्तान (Pakistan) के सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 13 अक्टूबर को खैबर पख्तूनख्वाह सरकार को करक जिले के टेरी गांव में एक हिंदू संत की समाधि तोड़फोड़ और आगजनी मामले में शामिल दोषियों से मरम्मत के 3 करोड़ 30 लाख रुपये वसूलने का निर्देश जारी किया है। 20 दिसंबर 2020 को खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के करक जिले में हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज (Saint Paramhans Ji Maharaj) की ऐतिहासिक समाधि को स्थानीय लोगों की भीड़ द्वारा नुकसान पहुंचाने के मामले में यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया।
मामले की सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश गुलज़ार अहमद (Chief Justice Of Pakistan Gulzar Ahmed) की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों वाली पीठ ने हिंदू मंदिर (Hindu Temple) में बर्बरता की घटनाओं से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए खैबर पख्तूनख्वाह सरकार को निर्देश जारी किया और सभी दोषियों से समाधि के मरम्मत में खर्च हुए 3 करोड़ 30 लाख रुपये वसूलने का फरनाम जारी किया।
आपको बता दें कि 30 दिसंबर, 2020 को करक जिले में एक विशेष धर्म के कुछ स्थानीय असामाजिक तत्वों ने जमीन विवाद में मंदिर पर हमला (Temple Attacked in Pakistan) किया और उसे ढहाने की कोशिश की। इसमें मंदिर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। इसी मामले में पाकिस्तान की उच्चतम न्यायालय ने संज्ञान लिया था और खैबर पख्तूनख्वाह सरकार से इसकी मरम्मत कराने का निर्देश दिया था। खैबर पख्तूनख्वाह सरकार के महाधिवक्ता शुमैल बट ने मामले की सुनवाई कर रहे पीठ को बताया कि 1920 से पहले बने इस समाधि की मरम्मत कराने में सरकार के करीब 33 मिलियन रुपये से अधिक खर्च हो गए। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि मंदिर के पुनर्निमाण में लगे 33 मिलियन रुपये यानि 3 करोड़ 30 लाख रुपये सरकार दोषियों से वसूल करें।
वहीं, पाकिस्तान हिंदू काउंसिल (Pakistan Hindu Council) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई रिपोर्ट में पीएचसी प्रमुख डॉ रमेश कुमार वंकवानी ने आरोप लगाया कि कारी फैजुल्ला जिसे कोहाट में एक आतंकवाद विरोधी अदालत (Anti Terrorism Court) ने जमानत दे दिया, उसके नेतृत्व में बदमाशों ने समाधि की दीवार पर लिखे 'मंदिर' शब्द पर आपत्ति जताई थी। आरोपी चाहते हैं कि 'मंदिर' शब्द के बजाय दीवार पर 'समाधि' शब्द लिखा जाए। पीएचसी की रिपोर्ट में कहा गया कि, 'यह समझ से परे है कि क्या मंदिर, आश्रम, गुरुद्वारा, कृष्ण द्वार, मढ़ी, दरबार, तीर्थ या समाधि जैसे पवित्र स्थल के नाम भी इन बदमाशों द्वारा तय किए जाएंगे।'
वहीं, अदालत में दायर अपनी तीन पन्नों की रिपोर्ट में खैबर पख्तूनख्वाह (Khyber Pakhtunkhwah) सरकार ने दलील दी कि मामले में दोषियों को बिना समय नष्ट किए गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन उन्हें अदालतों ने जमानत दे दी थी। SC को आगे बताया गया कि 12 फरवरी, 2021 को कोहाट जेल अधीक्षक के माध्यम से सभी हिरासत में लिए गए संदिग्धों को मरम्मत में लगे खर्च की वसूली के लिए नोटिस दिया गया था।
आधिकारिक रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि घटना से एक हफ्ते पहले टेरी शांति समिति (Teri Peace Committee) और रोहित कुमार नाम के वकील ने सहमति व्यक्त की थी कि हिंदू समुदाय एक साल पहले खरीदी गई जमीन के एक टुकड़े का उपयोग निवास, कार पार्किंग और आंगन वगैरह बनाने के लिए कर सकता है। लेकिन रिपोर्ट के अनुसार हिन्दूओं द्वारा मंदिर के प्रार्थना क्षेत्र में विस्तार को लेकर विवाद था।
केपी सरकार ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उसने अपने मूल स्थान पर समाधि का जीर्णोद्धार किया था, लेकिन राज्य के खर्च पर किसी अतिरिक्त स्थल पर किसी अतिरिक्त संरचना का निर्माण शामिल नहीं किया जा सका। इसमें कहा गया है कि एक बार हिंदू समुदाय द्वारा समाधि पर कब्जा कर लिया गया था, वे स्थानीय शांति समिति के साथ अपने समझौते के अनुसार अतिरिक्त भूमि पर आवासीय क्वार्टर और अन्य सुविधाएं बढ़ा सकते थे।
हिन्दू परिषद ने शीर्ष अदालत से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि मंदिर में सिंध से आने वाले महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों सहित तीर्थयात्रियों के आराम से रहने के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। बता दें कि इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने आगे की कार्यवाही एक महीने के लिए स्थगित कर दी।
आपको बता दें कि हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की समाधि पर ये कोई पहली बार विवाद नहीं हुआ है। करक जिले के टेरी गांव स्थित इस समाधि को लेकर वहां के रूढ़िवादी लोग शुरू से ही विरोध करते रहे हैं। साल 1997 में इस समाधि पर पहली बार स्थानीय लोगों ने हमला किया था। हालांकि, बाद में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खैबर पख्तूनख्वाह की प्रांतीय सरकार ने इसका पुनर्निमाण कराया। लेकिन सरकार के समर्थन और कोर्ट के फैसले के बावजूद टेरी में हालात तनावपूर्ण बने रहे।
साल 2015 में खैबर पख्तूनख्वाह के एडिशनल एडवोकेट जनरल वक़ार अहमद ख़ान ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Of Pakistan) में इस सिलसिले में एक रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग पांच शर्तों पर तैयार हो गए थे, उसके बाद ही समाधि के पुनर्निमाण की इजाजत दी गई। ऐसा कहा जाता है कि समझौते की एक शर्त ये भी थी कि हिंदू समुदाय के लोग टेरी में अपने धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं करेंगे। वे इस गांव में केवल अपनी धार्मिक प्रार्थनाएं कर सकेंगे। इसके अलावा, समाधि पर हिंदूओं को न तो बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा करने की इजाजत होगी और न ही समाधि स्थल पर किसी बड़े निर्माण कार्य की मंज़ूरी दी जाएगी। साथ ही क्षेत्र में हिंदू समुदाय के लोग जमीन भी नहीं खरीद सकेंगे और उनका दायरा केवल समाधि स्थल तक ही सीमित रहेगा।
ये समाधि एक सरकारी ट्रस्ट की संपत्ति है। इसका निर्माण उस जगह कराया गया था जहां हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज का निधन हुआ था। माना जाता है कि साल 1919 में यहीं पर उनकी अंत्येष्टि की गई थी। उस वक्त भारत और पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था। संत को मानने वाले लोग यहां पूजा-पाठ के लिए साल आते रहे थे। लेकिन साल 1997 में ये मंदिर ढहा दिया गया।
इसके बाद हिंदू संत के अनुयायियों ने मंदिर के पुननिर्माण कराने कोशिशें शुरू कीं। हिंदू समुदाय के लोगों का आरोप था कि एक स्थानीय मौलवी ने सरकारी ट्रस्ट की प्रोपर्टी होने के बावजूद इस समाधि पर कब्जा कर लिया था। 30 दिसंबर, 2020 को इस समाधि पर किए गए हमले में मुस्लिम समुदाय के करीब 1500 लोगों ने इस समाधि पर हमला बेल दिया और तोड़फोड़ और आगजनी की। 1997 के बाद से ये दूसरी घटना थी जब इस समाधि को नष्ट करने की कोशिश की गई।