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स्कूल की छात्राओं में मेडिकल जांच के बहाने चुपके से फिट किया गया गर्भनिरोध, बर्बाद हुई कई जिंदगियां

Janjwar Desk
8 Oct 2022 11:03 AM GMT
स्कूल की छात्राओं में मेडिकल जांच के बहाने चुपके से फिट किया गया गर्भनिरोध, बर्बाद हुई कई जिंदगियां
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स्कूल की छात्राओं में मेडिकल जांच के बहाने चुपके से फिट किया गया गर्भनिरोध, बर्बाद हुई कई जिंदगियां

Pregnancy Control : पॉपुलेशन कंट्रोल के नाम पर डेनमार्क की ओर से ग्रीनलैंड के महिलाओं और लड़कियों के साथ गुपचुप तरीके से यह काम किया गया, उनके यूट्रस में एक डिवाइस (IUD) लगा दिया गया, जिससे वे जीवन में बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं रहें...

Pregnancy Control : ग्रीनलैंड में 1960 से लेकर 1970 तक इनुइन समूह से संबंध रखने वाली हजारों महिलाओं और लड़कियों ने पॉपुलेशन कंट्रोल के नाम पर ऐसा असहनीय दर्द सहा है कि जिसे वे दशकों के बाद भी भूल नहीं पाई हैं। पॉपुलेशन कंट्रोल के नाम पर डेनमार्क की ओर से ग्रीनलैंड के महिलाओं और लड़कियों के साथ गुपचुप तरीके से यह काम किया गया। उनके यूट्रस में एक डिवाइस (IUD) लगा दिया गया, जिससे वे जीवन में बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं रह पाईं। हालांकि दशकों के बाद अब डेनमार्क और ग्रीनलैंड ने इस मामले की जांच के लिए सहमति जताई है लेकिन जो महिलाएं इस दर्द से गुजर चुकी हैं, उनके साथ न्याय नहीं हो सकता है।

मेडिकल जांच के बहाने लगाया गया IUD डिवाइस

बीबीसी की एक खबर के अनुसार उस समय इस एंटी प्रेंग्नेंसी डिवाइस की शिकार होने वाली महिला नाजा लिबर्थ ने अपना दर्द साझा किया है। नाजा की उम्र 60 वर्ष है। उन्होंने बताया है कि साल 1970 में जब वो 13 साल की थीं, एक रूटीन स्कूल मेडिकल एग्जामिनेशन के बहाने IUD डिवाइस को उनके अंदर फिट कर दिया गया था।

डिवाइस लगाते समय वर्जिन थीं नाजा

ग्रीनलैंड के एक टाउन में रहने वाली नाजा का कहना है कि उन्हें उस समय बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि यह क्या है और ना ही उन्हें समझाया गया था। इसके साथ ही उनके अनुमति भी नहीं ली गई थी। वह काफी डरी हुई थीं। इसी वजह से उन्होंने अपने परिवार वालों को भी इसके बारे में कुछ नहीं बताया। नाजा का कहना है कि जिस समय वह IUD कॉइल लगाई गई, उस समय वह वर्जिन थीं और यहां तक कि कभी किसी लड़के को किस तक नहीं किया था।

किसी ने भी इस बारे में खुलकर नहीं की बात

नाजा ने बताया कि इस काम के लिए उनके परिवार से भी अनुमति नहीं ली गई थी। स्कूल में सब कुछ इतनी सामान्य मेडिकल प्रोसेस की तरह हो रहा था कि नाजा की एक क्लासमेट को भी अस्पताल भेजा गया। बाद में उसने भी कुछ नहीं बोला। नाजा ने बताया कि हमारे साथ इतना कुछ अजीब था कि कोई इस बारे में बात नहीं करना चाहता था।

उस समय तो किसी ने खुलकर बात नहीं की लेकिन अब नाजा इस बारे में खुलकर बात कर रही हैं। इसके साथ ही वह फेसबुक के जरिए उन महिलाओं के अनुभवों को भी जाने की कोशिश कर रही हैं, जो इन सब से गुजरी हैं। अभी तक 70 महिलाएं नाजा के साथ जुड़ चुकी हैं।

4500 लड़कियों और महिलाओं के शरीर में लगाया गया IUD डिवाइस

बीबीसी के रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में इस कॉइल कैंपेन के कुछ रिकॉर्ड भी मिले हैं, जिसमें सामने आया है कि साल 1996 से 1970 के बीच ही करीब साढे 4 हजार महिलाओं और लड़कियों के शरीर में आईयूडी डिवाइस को लगाया गया। हालांकि यह प्रक्रिया आगे भी करीब 1975 तक जारी रही, जिसका कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं मिल पाया है। सबसे खास बात यह है कि इन सभी में कितनों की मर्जी के खिलाफ यह फिट किया गया होगा, उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है।

कम उम्र में कॉइल लगने का ज्यादा नुकसान

नाजा का कहना है कि काफी महिलाओं ने उनसे इस बारे में संपर्क किया। यह देखा जा रहा है कि उस समय जितनी कम उम्र की लड़कियों को यह कॉइल लगाई गईं, उतनी ज्यादा ही उन्हें परेशानी हुई थी।

महिलाओं ने किया अपना दुःख साझा

वहीं एक अन्य महिला Arnannguaq Poulsen ने इस बारे में अपना दुख शेयर करते हुए कहा है कि साल 1974 में जब वह 16 साल की थीं तो उन्हें भी इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ा था। चौंकाने वाली बात यह है कि वे उस समय ग्रीनलैंड नहीं बल्कि डेनमार्क के ही एक द्वीप पर बोर्डिंग स्कूल में थीं। उनका कहना है कि उनसे भी इस प्रक्रिया को करने से पहले पूछा नहीं गया था, इसलिए उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह है क्या। कॉइल फिट होने के बाद वह बहुत ज्यादा दर्द से भी गुजरती थीं। करीब 1 साल बाद जब वे अपने घर ग्रीनलैंड वापस लौटीं तो उन्होंने इस कॉइल को निकलवा दिया। इस बारे में Arnannguaq Poulsen कहती हैं कि जब यह लगाया गया था तो उनके पास कोई चॉइस नहीं थी।

कॉइल के कारण निकलवाना पड़ा यूट्रस

वहीं एक अन्य पीड़िता कैटरीन जैकबसन ने भी अपना दर्द साझा किया है। उन्होंने कहा है कि जिस समय यह कॉइल उनके शरीर में डाली गई थी, उस समय वह सिर्फ 12 साल की थीं। कैटरीन को एक जानकार महिला साल 1974 में डॉक्टर के पास ले गई थीं, जिसके बाद उसे भी इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। करीब 20 सालों तक कैटरीन ने कॉइल की वजह से दर्द और परेशानियां झेली। आखिरकार उन्हें अपना यूट्रस ही निकलवाना पड़ गया। कैटरीन का कहना है कि इसका सबसे बड़ा असर उनकी जिंदगी पर देखने को मिला है। इस वजह से उन्हें कभी बच्चे नहीं हुए। कैटरीन ने इस बारे में किसी को बताया तक नहीं क्योंकि उन्हें लगता था कि वह पहली है जिसके साथ ऐसा हुआ है।

जांच के लिए बनाई गई कमेटी

जनसंख्या नियंत्रण के लिए चलाए गए इस प्रोग्राम की उस समय ग्रीनलैंड और डेनमार्क में ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन जब रिपोर्ट्स बाहर आईं तो इसकी जांच के लिए कमेटी बनाई गई है। साल 1992 में डेनमार्क से ग्रीनलैंड को स्वास्थ्य सेवाओं का पूरा कंट्रोल मिल गया था। ऐसे में अब उन सभी बर्थ कंट्रोल नीतियों की जांच की जाएगी, जो 1960 से 1991 तक लागू की गईं।

स्वास्थ्य मंत्री ने पीड़ित महिलाओं से की मुलाकात

वहीं दूसरी ओर रिपोर्ट सामने आने के बाद डेनमार्क के स्वास्थ्य मंत्री Magnus Heunicke ने कहा है कि जांच में यह पता लगाया जाएगा कि किस तरह के फैसलों के बाद यह शुरू हुआ और लागू किया गया था। स्वास्थ्य मंत्री ने आगे कहा कि उन्होंने कई ऐसी महिलाओं से मुलाकात की है, जो इस दर्द को झेल चुकी हैं।

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