Ratan Tata neelachal ispat NINL : नीलांचल इस्पात टाटा को बेचना यानी हीरे को कोयले के भाव देने की कहानी
टाटा के लिए NINL को खरीदना कहीं से भी नहीं है घाटे का सौदा, घाटा सरकार को है जिसे अब बेचना पसंद है संवारना नहीं
Ratan Tata neelachal ispat NINL : उपभोगवादी आर्थिक व्यवस्था के ज़माने में कमज़ोर का साथ कोई नहीं देता। यहां तक कि सरकार भी नहीं। चाहे वह 8 हज़ार करोड़ से ज़्यादा की सरकारी कंपनी ही क्यों न हो।
बात सार्वजनिक क्षेत्र के नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड की है। 8271 करोड़ की इस कंपनी को सरकार टाटा स्टील के हाथों बेच रही है, क्योंकि 2013 से कंपनी घाटे में है। बीते एक साल से कंपनी का उत्पादन बंद है और 2020 में उसे 1758 करोड़ का घाटा हुआ है। कंपनी पर 3778 करोड़ की देनदारी है।
सरकार ने घाटे से नहीं उबारा
इससे पहले केंद्र सरकार ने एयर इंडिया भी टाटा को बेचा था, लेकिन बात यह नहीं है कि सरकार टाटा पर ज़्यादा ही मेहरबान है। बात यह है कि केंद्र सरकार ने इस साल के बजट में 65 हज़ार करोड़ के विनिवेश का टारगेट रखा है। इंसोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के पास नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड का मामला 2018 से पड़ा है।
Ratan Tata Net Worth : एयर इंडिया के बाद मोदी सरकार रतन टाटा को बेचने जा रही एक और सरकारी कंपनी
बीते 5 साल में नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड को 3234 करोड़ का नुकसान हुआ। हालांकि 2015-16 में कंपनी महज़ 333 करोड़ के घाटे में थी। यानी सरकार चाहती तो कंपनी को घाटे से उबार सकती थी। कंपनी में ओडिशा सरकार की दो कंपनियों के 32% से ज़्यादा शेयर हैं। यानी अब हीरे को कोयला मानकर सरकारें इसे बेचने को उत्सुक हैं।
कोयले के भाव हीरे का सौदा
सालाना 10 लाख टन से ज़्यादा की उत्पादन क्षमता वाली नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड को खरीदने के लिए निजी कंपनियां तभी से इंतज़ार में थीं, जब 8 जनवरी 2020 को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने इस कंपनी में केंद्र और राज्य सरकारों के 94% शेयर को बेचने पर मुहर लगा दी। निविदा निकली और टाटा स्टील ने बाज़ी मार ली।
नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड निजी इस्पात कंपनियों के लिए किसी हीरे से कम नहीं है, क्योंकि कंपनी पारादीप बंदरगाह से सिर्फ़ 120 किमी दूर है। कंपनी के पास 2500 एकड़ की खान है। खुद टाटा का जमशेदपुर प्लांट 1800 एकड़ में स्थापित है। नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड के पास ओडिशा के सुंदरगढ़ और केंउझाड़ में लोहे की खान की लीज है। दोनों खदानों की लीज 2067 तक की है। इस तरह नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड की कीमत 8271 करोड़ और खदानों की 2471 करोड़ है। इस लिहाज से टाटा स्टील की 12100 करोड़ की बोली ठीक ही है।
टाटा ने नीलांचल में पैसे क्यों लगाए?
दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन में लॉकडाउन के बाद स्टील के दाम बेतहाशा बढ़े हैं। टाटा इस मौके का फायदा उठाना चाहता है। खासकर इसलिए कि अभी लंबे समय तक स्टील के दाम कम नहीं होंगे। ढांचागत और निर्माण क्षेत्र में स्टील का इस्तेमाल होता है, इसलिए मांग आगे भी बनी रहनी है।
टाटा के लिए ये कहीं भी घाटे का सौदा नहीं है। घाटा सरकार को है, जिसे अब बेचना पसंद है, संवारना नहीं।