Central Vigilance Commission : मुख्य सतर्कता आयुक्त और सतर्कता आयुक्त पर जब कदाचार का आरोप लगे तब जांच कैसे और कौन करे, 19 वर्षों में नहीं बन पाया दिशा-निर्देश
प्रीति भारद्वाज की रिपोर्ट
Central Vigilance Commission: देश में सरकारी महकमे और उसमें काम करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच और कार्रवाई के लिए केन्द्रीय सतर्कता आयोग का गठन किया गया। लेकिन यदि मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) सतर्कता आयुक्त (वीसी) पर कदाचार का आरोप लगे तो जांच कौन और कैसे हो इसके लिए कोई दिशा-निर्देश ही नहीं तय किया गया है। दिशा-निर्देश तय नहीं होने की वजह से इनके खिलाफ आने वाली शिकायतों पर कोई जांच या कार्रवाई नहीं हो पाती है। सीवीसी एक्ट-2003 में बना था और तब से 19 वर्ष बीत जाने के बाद भी दिशा-निर्देश नहीं बन पाया है।
मुख्य सतर्कता आयुक्त के खिलाफ जब कदाचार की शिकायत एक अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी द्वारा की गई। जब सीवीसी के खिलाफ जांच या कार्रवाई नहीं हुई तब अधिकारी ने सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) से यह जानकारी मांगी कि उनकी शिकायत पर क्या कार्रवाई की गई है। इस पर कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की ओर से कहा गया है कि सीवीसी के खिलाफ और जांच के लिए अभी तक दिशा-निर्देश तय नहीं हो पाया है इसकी वजह से कार्रवाई नहीं हो पाई है।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग का कहना है कि अब दिशा-निर्देश बनाने का काम शुरू कर दिया गया है। जब दिशा-निर्देश तय हो जाएंगे तब जांच और कार्रवाई होगी। उधर डीओपीटी ने कहा है कि अभी तक पूर्व सीवीसी के खिलाफ चार शिकायतें आई थीं जिसमें से दो शिकायतों को आगे की कार्रवाई के लिए केन्द्रीय सतर्कता आयोग के सचिव को पत्र भेजा गया है। हालांकि यह संभव नहीं है कि सीवीसी के खिलाफ आई शिकायतों पर सचिव की ओर से कोई कदम उठाया जा सके क्योंकि सचिव सीवीसी के अधीन काम करता है। वर्तमान में मुख्य सतर्कता आयुक्त के अलावा सतर्कता आयुक्त के दोनों पद खाली पड़े हैं।
सरकार नहीं चाहती गाइडलाइन्स बनाना
यदि कहीं भ्रष्टाचार है और इसमें कोई सरकारी कर्मचारी या अधिकारी शामिल है तो इसके लिए किसी तरह की दिशा-निर्देश की जरूरत नहीं है तय कानून में जांच अधिकारी को जांच और कार्रवाई का अधिकार है। हालांकि प्रशासनिक कदाचार की जांच करनी है तो इसके लिए जरूरी है कि उस पद के लिए दिशा-निर्देश तय हो। सीवीसी एक्ट बनने के 19 वर्ष बाद भी दिशा-निर्देश नहीं बन पाने का मतलब यह है कि सरकार बनाना नहीं चाहती। सरकार का यह गलत कदम है क्योंकि यदि सरकार कोई पद सृजित करती है और उस पर किसी की नियुक्ति होती है तो नियम-कानून जरूरी है। ऐसा लगता है कि जैसे सरकार एक खास पद पर नियुक्त अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करना चाहती है-जस्टिस संतोष हेगड़े, उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त।