डॉक्टरों का खुलासा : आखिर कोरोना मरीज आधी रात और सुबह तीन बजे के बीच ही क्यों मरते हैं ज्यादातर
संध्या रविशंकर की रिपोर्ट
जनज्वार। तकरीबन ढाई महीने पहले तमिलनाडु के डॉक्टर इस बात को लेकर माथापच्ची कर रहे थे कि कोविड-19 से पीड़ित मरीज आखिर भोर में ही क्यों मरते हैं।
उन्होंने यह देखा कि हर हाल में मरीज की मौत आधी रात से लेकर अल-सुबह 3 बजे के दरमियान ही हो रही है। वे तुरंत समझ गए कि इसका कारण खून में ऑक्सीजन की कमी हो जाना है।
और यह बात समझ में आते ही दिए जा रहे इलाज में बदलाव लाया गया- राज्य में अब कोविड मरीजों पर निगरानी दिन की तुलना में रात को ज़्यादा मुस्तैदी से की जा रही है।
ऑक्सीजन का संतोष-पूर्ण स्तर क्या है?
इस खोज की सरलता और डॉक्टरों द्वारा किये गए व्यवहार को समझने के लिए जीव विज्ञान 101 सत्र को पढ़ना होगा। हम वादा करते हैं कि यह बहुत उबाऊ नहीं होगा, इसलिए पढ़ते जाइये।
किल्पौक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में मेडिसिन के प्रोफ़ेसर डॉक्टर परन्थमान ने समझाते हुए बताया, "सभी ऊतक और कोशिकाएं तभी तक काम करती हैं जब तक उन्हें ऑक्सीजन और ग्लूकोज मिलता रहता है। ग्लूकोज ऊर्जा प्रदान करता है, ऑक्सीजन इसे परिवर्तित कर सभी कोशिकाओं तक ले जाती है।"
गौरतलब है कि डॉक्टर परन्थमान दो दशकों से भी ज़्यादा समय से नाजुक मरीजों की देखरेख में सिद्ध हैं और राज्य में कोविड-19 सम्बन्धी सरकारी पैनल के सलाहकार भी हैं।
"हीमोग्लोबिन के माध्यम से ऑक्सीजन शरीर में पहुंचता है। शरीर में ऑक्सीजनीकरण फेफड़े में होता है और फेफड़े ऑक्सीजन को खून के माध्यम से कोशिकाओं तक पहुँचाते हैं। खून ग्लूकोज को भी कोशिकाओं तक पहुँचाता है।"
ग्लूकोज टूट कर शरीर की कोशिकाओं के भीतर ऊर्जा पहुंचाता है। इस प्रक्रिया को कारगर होने के लिए ऑक्सीजन बहुत ज़रूरी है।
तो फिर खून में ऑक्सीजन का संतोषपूर्ण स्तर का मतलब क्या है?
यह शरीर में हीमोग्लोबिन पहुँचाने की खून की क्षमता है।
डॉक्टर परन्थमान बताते है, "कभी-कभी भले ही हमारे फेफड़े वातावरण से ज़्यादा ऑक्सीजन दे रहे हों, लेकिन अगर हमारा हीमोग्लोबिन कम (13 ग्राम से कम) होता है तो ऑक्सीजन सभी कोशिकाओं को नहीं पहुँचती है। इसका मतलब है कि इसे ले जाने वाला वाहन वहां नहीं है। खून में कम से कम 13 ग्राम हीमोग्लोबिन होना चाहिए। उदाहरण के लिए कम यानी कि 6 ग्राम हीमोग्लोबिन वाले खून की कमी के शिकार मरीजों की ऑक्सीजन पहुँचाने की क्षमता उन लोगों से बहुत कम होगी, जिनका हीमोग्लोबिन 13 ग्राम है।
लेकिन कोविड के मरीजों में समस्या उल्टी होती है। चूंकि वायरस फेफड़ों पर हमला करता है और ऑक्सीजन लेने की क्षमता को कम कर देता है, हीमोग्लोबिन की पर्याप्त मात्रा भी सुनिश्चित नहीं कर पाती कि शरीर की सभी कोशिकाओं में पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंच जाये।
डॉक्टर परन्थमान ने बताया-"ऐसा हो सकता है कि मरीज के शरीर में पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन हो, मान लीजिये 13 या 14 ग्राम। लेकिन फेफड़ों से ऑक्सीजनीकरण नहीं हो पा रहा है। ये ऐसी स्थिति है जहां ऑक्सीजन पहुँचाने वाला वाहन तो मौजूद है, लेकिन फेफड़े ज़रूरी ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में असमर्थ हैं।" अगर हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन की सामान्य मात्रा पहुँचाता है तो इसे शत-प्रतिशत संतोष-पूर्ण स्तर कहते हैं।
'कोविड मरीजों में हीमोग्लोबिन सामान्य होता है लेकिन फेफड़ों की दिक्कत की वजह से यह ऑक्सीजन की ज़रूरी मात्रा हीमोग्लोबिन में नहीं पहुंचा पाता है। इसलिए पर्याप्त हीमोग्लोबिन के बावजूद कोशिकाओं को कम ऑक्सीजन मिल पाती है।'
डॉक्टर ने आगे बताया कि संतोषपूर्ण स्तर हासिल करने की निम्नतम ज़रूरत 85 प्रतिशत है। 92 प्रतिशत तक होने पर तो मरीज खुद को संभाल लेंगे। लेकिन अगर संतोषपूर्ण स्तर 90 प्रतिशत से नीचे गया तो ऐसे में मरीज तभी अपनी देखभाल कर सकते हैं जब वे कोई भी गतिविधि न करें और पूरी तरह से आराम करें। केवल तभी 90 प्रतिशत संतोष-पूर्ण स्तर सभी कोशिकाओं की ऑक्सीजन की ज़रुरत को पूरा कर पायेगा।
रात में शरीर की लय और ताल
दिनभर शरीर की जो ताल और लय होती है, वो रात में बदल जाती है। डॉक्टर जिसे सहानुभूति पूर्ण स्वर कहते हैं वो निद्रा अवस्था में घट जाता है। इसीलिए कोविड संक्रमित मरीजों की मृत्यु अक्सर आधी रात और अल-सुबह ३ बजे के बीच होती है।
डॉक्टर परन्थमान समझाते हुए बताते है- "सहानुभूति पूर्ण स्वर कई कारकों से मिल कर बनता है - उदाहरण के लिए ह्रदय गति, जिसे 78 होना चाहिए, नींद के दौरान कम हो जाती है; सांस लेने की दर 20 होनी चाहिए वो नीड के दौरान 15 हो जाती है। ये सामान्य शारीरिक प्रक्रियाएं हैं। अगर ये घटित नहीं होती हैं तो आप सो नहीं पाएंगे। उदाहरण के लिए अगर आपको एड्रेनलाइन का इंजेक्शन दिया जाता है तो आप सो नहीं पाएंगे। इसी तरह, अगर आप इम्तहान को ले कर चिंतित हैं तो आपके शरीर में एड्रेनलाइन का स्तर बढ़ जाता है और आपका सहानुभूति पूर्ण स्वर ऊँचा हो जाता है -तब आप सो नहीं पाते हैं।"
डॉक्टर परन्थमान आगे कहते हैं, "कोविड मरीजों में ऑक्सीजन की दर पहले से ही कम होती है। नींद के दौरान प्राकृतिक शारीरिक घटना के चलते ह्रदय और सांस लेने की गति में गिरावट आ जाती है। गंभीर मरीज यह स्थिति सह नहीं पाते हैं। संतोषपूर्ण स्तर में गिरावट, सहानुभूतिपूर्ण स्तर में गिरावट हाइपोक्सिया यानी कि कम ऑक्सीजन वाले संतोषपूर्ण स्तर की ओर ले जाती है। यही कारण है कि दिन की तुलना में रात में ज़्यादा मौतें होती हैं। अपने इंटेंसिव केयर यूनिट्स में हमने यही होते देखा है।"
मद्रास मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन में अवकाश प्राप्त प्रोफ़ेसर डॉक्टर एलंगोवन बताते हैं, "जब हम जागृत अवस्था में होते हैं तो हमारे सभी स्वचालित रिसेप्टर्स चौकन्ने रहते हैं। जब कभी भी खून में ऑक्सीजन का स्तर घट जाता है तो रसायन रिसेप्टर्स सक्रिय हो जाते हैं और वे दिमाग को ज़्यादा हवा देने का सन्देश देते हैं। इसलिए लम्बी सांस ले कर फेफड़े के बैलून फुला दिए जाते हैं और ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा लिया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से काम करने वाली स्वाभाविक रूप में चौकन्ना रखने वाली व्यवस्था निद्रा अवस्था में सक्रिय नहीं रहती है। इसीलिये कोविड के मरीज रात में सांस लेने में ज़्यादा दिक्कत महसूस करते हैं।
डॉक्टर एलंगोवन ने आगे बताया कि इस छोटे दिखाई देने वाले अवलोकन को तमिलनाडु के डॉक्टरों द्वारा एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखा गया और फिर इसके हिसाब से उपचार के तौर-तरीके में बदलाव लाया गया।
उन्होंने कहा, "दुनियाभर में इसका अवलोकन किया गया है, लेकिन केवल तमिलनाडु के डॉक्टरों ने ही इस छोटे से अवलोकन को पहचाना और उसे महत्व दिया।"
डॉक्टरों ने इस अवलोकन से क्या सीखा और आगे क्या किया?
उन्होंने ज़्यादा कुछ नहीं किया, बस इतना किया कि अब रात में मरीजों पर ज़्यादा निगरानी रखना शुरू कर दिया क्योंकि रात में संतोषपूर्ण स्तर के अचानक गिरने की पूरी सम्भावना रहती है।
उन्होंने कहा, "रात के दौरान हम मरीजों को ज़्यादा ऑक्सीजन देते हैं। हम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि रात में ऑक्सीजन के संतुष्टिपूर्ण स्तर की बार-बार निगरानी की जाए। दिन के समय तो हम 4 घंटे में एक बार संतुष्टिपूर्ण स्तर की निगरानी करते हैं। लेकिन रात में हम ऐसा प्रत्येक दो घंटे या प्रत्येक घंटे पर करते हैं। अगर स्तर में गिरावट दिखती है तो हम मरीज को नींद से उठा देते हैं और ज़रूरी सहायता करते हैं।"
डॉक्टर परन्थमान कहते हैं कि खोज एक वास्तविक कहानी भर है और इस विधि की प्रभावोत्पादकता को सिद्ध करने के लिए ज़रूरी बेतरतीब क्लिनिकल परीक्षण करने का समय उनके पास नहीं था।
निष्क्रियता का महत्व
तमिलनाडु के डॉक्टरों के अनुसार एक अन्य महत्वपूर्ण खोज इस बात पर जोर देना था कि मरीज खुद को थकाएं नहीं। यह बात भी ऑक्सीजन के संतुष्टिपूर्ण स्तर के सवाल से जुडी है।
क्रियाकलाप को ऊर्जा की ज़रुरत होती है और जब कोविड मरीज, चूंकि उनके फेफड़े प्रभावित होते हैं, क्रियाकलापों में हिस्सा लेने की कोशिश करते हैं तो शरीर खून में ऑक्सीजन के संतुष्टिपूर्ण स्तर को बढ़ाने की कोशिश करता है और अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए फेफड़ों पर दबाव पड़ता है। वो ऐसा कर नहीं पाता है और परिणामस्वरूप संतुष्टिपूर्ण स्तर तेजी से नीचे गिरने लगता है।
डॉक्टर परन्थमान कहते हैं, "अगर मरीज विश्राम कक्ष तक ही जाता है तब भी यह गतिविधि अधिक ऊर्जा की मांग करती है लेकिन फेफड़े इस ऑक्सीजन की आपूर्ति करने में अक्षम रहते हैं और वे अचानक असंतृप्त होने लग जाते हैं। संतुष्टिपूर्ण स्तर 85 प्रतिशत से गिर कर 70 प्रतिशत पहुँच जायेगा और फिर वहां से गिर कर 40 प्रतिशत पहुँच जायेगा और जिस किसी का भी संतुष्टिपूर्ण स्तर 40 प्रतिशत पहुँच जाता है उसकी ह्रदय गति घट जाती है और फिर दिल की धड़कन बंद होने का खतरा पैदा हो जाता है। "
वे आगे कहते हैं, "आपने ऐसी बहुत सी घटनाओं के बारे में सुना होगा जिसमें लोग कहते हैं कि मरीज तो बहुत बेहतर था, लेकिन जब वो विश्राम कक्ष (शौचालय ) में गया तो अचानक मर गया या यह कि मरीज ने खाना तो अच्छी तरह खाया था लेकिन उसके बाद अचानक मर गया।
आप इस बात को समझिये कि भोजन करना भी एक तरह की गतिविधि या क्रियाकलाप है। अगर आप पेट भर खाते हैं तो उसे पचाने की भी ज़रुरत पड़ती है। पचाना भी एक तरह की गतिविधि है। ज़रूरी नहीं है कि आप जॉगिंग के लिए ही जाएँ। ज़्यादा भोजन करना भी ज़्यादा गतिविधि करना माना जाता है।
यहाँ तक कि ज़्यादा बात करना भी ज़्यादा गतिविधि करना माना जाता है। इसलिए ज़्यादा खाना, ज़्यादा बातचीत करना और विश्राम कक्ष में जाना -इन तीन गतिविधियों से बचा जाना चाहिए।"
यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोविड के मरीज अपने पाचन तंत्र पर ज़्यादा दबाव ना डालें ताकि ऑक्सीजन का संतुष्टिपूर्ण स्तर कम ना हो, मल को मुलायम करने वाली दवा दी जाती है।
डॉक्टर परन्थमान कहते हैं -" इसका इस्तेमाल ह्रदय घात के मरीजों पर किया जाता है। मरीज को बेड-पैन दिया जाता है और अगर वो विश्राम कक्ष में जाने पर जोर देता/देती है तो हम यही कहते हैं कि वो मल-मूत्र त्यागने के लिए बेड-पैन का ही इस्तेमाल करे। हमें कोविड के मरीज का इलाज दिल का दौरा पड़ने वाले मरीज जैसा ही करना पड़ता है। वो दिल का दौरा है और ये फेफड़ों का दौरा है। हम ऐसा पिछले ढाई महीनों से कर रहे हैं और परिणाम काफी उत्साहवर्द्धक हैं।"
इन प्रोटोकोल्स का अवलोकन करने और इन्हें विकसित करने का काम किल्पौक मेडिकल कॉलेज एन्ड हॉस्पिटल के डॉक्टर्स की एक टीम डीन प्रोफ़ेसर वसंथामणि के नेतृत्व में मद्रास मेडिकल कॉलेज एन्ड हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के साथ मिलके कर रही है।
रोकथाम करने और नीति बनाने के स्तर पर कोविड-19 की रणनीति तैयार करने में विषाणु विज्ञानियों और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक टीम तमिलनाडु सरकार को लगातार परामर्श दे रही है।
(संध्या रविशंकर की यह रिपोर्ट दी लीड से साभार।)