Begin typing your search above and press return to search.
आजीविका

Ground Report : लॉकडाउन के बाद से एक-एक रुपये को तरस गये स्टेशनों पर कुली, भुखमरी के हालात

Janjwar Desk
12 May 2021 7:36 AM GMT
Ground Report : लॉकडाउन के बाद से एक-एक रुपये को तरस गये स्टेशनों पर कुली, भुखमरी के हालात
x

photo - janjwar

लॉकडाउन के बाद से बेरोजगार हुए कुली कहते हैं कोरोना हमें बाद में मारेगा, हमारा घर-परिवार तो पहले ही भूख से मर जायेगा...

कानपुर से मनीष दुबे की रिपोर्ट

जनज्वार। आपने कुली फिल्म का वो गाना तो सुना ही होगा जिसमें दर्जा प्राप्त महानायक अमिताभ बच्चन सिर पर बोझा लादे गाना गाते हैं 'सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लोग आते हैं लोग जाते हैं हम यहीं खड़े रह जाते हैं।' फिल्म हिट रही थी, लेकिन असल जिंदगी में कुलियों के हालात तब से अब तक कभी नहीं सुधरे। इस महामारी के समय तो कुलीयों की कंडीशन और भी खराब हो चली है।

कानपुर सेंट्रल में जब-कब कोई ट्रेन आ-जा रही है। महामारी के समय आदमी-आदमी को छूने से बच रहा है और तो जो लोग सफर कर भी रहे हैं आपदा के मारे हुए हैं। ऐसे में सवारी और उसका सामान कुली नहीं खुद के भरोसे है। परिवार बच्चे पालने के लिए कुली कभी कर्ज तो कभी कहीं से मांगकर काम चला रहे हैं। केंद्र और राज्य की सरकारों का तनिक भी सहारा या मदद उन्हें कभी नहीं मिली।

जनज्वार संवाददाता ने शहर के सेंट्रल स्टेशन पर कुछ कुलियों से बात की तो सभी के हालात एक जैसे ही मिले। कुली मंजूर लगभग रूआसा होकर हमसे कहता है कि 'भाई क्या करें? कई-कई दिन गुजर जाते हैं और बोहनी तक नसीब नहीं होती। बाल बच्चे तो पालने ही हैं, काम बिल्कुल ठप है ये समझिए की कर्जा लेने की नौबत आ रही है। मंजूर के दो बच्चे हैं जिसमें 4 साल की एक लड़की तो ढ़ाई साल का बेटा है।'

कुली दीपक कहता है कि 'चल रहा है साहब सब भगवान भरोसे। हफ्ता का हफ्ता निकल जाता है 50 का नोट तक देखे हुए। 4 बच्चे हैं मेरे, हम मियां बीबी कैसे पाल रहे हम ही जानते हैं। काम बिल्कुल डाउन हो गया है। ट्रेन आती भी है तो सवारी सामान नहीं देती। सामान जादातर बड़ा आदमी देता था और अब जो सफर कर रहे हैं वह सब पहले से ही हालातों के मारे हैं तो कहां से हमारी सेवा लेंगे। दीपक ने बताया कई कुली गांव चले गए हैं।'

अलीमुद्दीन पिछले 11 साल से यहां कुली का काम कर रहे हैं। अलीमुद्दीन के 2 बच्चे हैं, और वह ढ़ाई हजार का किराए पर मकान लेकर रह रहे हैं। हमसे बात करते हुए अलीमुद्दीन बताते हैं कि 'हालात बहुत खराब और जोखिमभरे हैं। ना राज्य सरकार से मदद है ना केंद्र से और तो कोई अधिकारी तक हमारी हाल खबर लेने आज तक नहीं आया। क्या करें कोई दूसरा काम भी तो नहीं है इस समय परिवार को जिंदा रखना हमारे लिए किसी चुनौती की तरह है।'

आगे बढ़ने पर सामान उठाने वाली गाड़ी में बैठे अधेड़ उम्र के कुली शंकर ट्रेन की पटरियां देख रहे थे। हमसे बात करते हुए शंकर अपने हालातों पर झुंझला जाते हैं। दोनो हाथ उपर उठाकर शंकर कहते मालिक सब भगवान भरोसे है। पेपर पढ़ते हैं हम भी, सरकार से उम्मीद करना बेईमानी है। अब तो कर्जे में जिंदगी डूब रही है। परिवार पालना है, जिंदा रहे तो कर्जा भी उतार देंगे। इसके अलावा कर भी क्या सकते हैं? शंकर के घर में पत्नी के अलावा चार बेटियां शादी के लायक हैं।'

स्टेशन के बाहर बैठे कासिम खान कहते हैं 'बहुत कष्ट होता है, सुबह से शाम तक बैठे रहते हैं। हमारा काम पैसेंजर से चलता है, पैसेंजर बंद हो गई। हमने बताया कि कुछ कुलियों नें बोहनी तक ना होने की हमसे बात कही है, जिसपर कासिम कहते हैं बिल्कुल सही बात है। अब देखिए मैं सुबह से यहां बैठा हूँ, 11 बज गया है बोहनी नहीं हुई है। सब भगवान भरोसे ही चल रहा है। अब कैसे भी करें परिवार तो पालना ही है।'

यहां की कुलियों ने सरकार से उनपर भी ध्यान देने की बात कही है। कुलियों ने हमसे कहा कि सरकार तक उनकी बात पहुँचाई जाए। लेकिन हम इन बेचारों को कैसे समझाते की सरकार जो है वह अपने अलावा किसी का ख्याल और ध्यान नहीं दे पा रही है। सरकार की मानसिकता सिर्फ और सिर्फ खुदके ही आस-पास घूम रही है।

Next Story

विविध