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किसान आंदोलन को जो अबतक न समझ पाए वो एक बार अडानी के सेब के बागों की कहानी सुन लें

Janjwar Desk
2 Sep 2021 9:04 AM GMT
किसान आंदोलन को जो अबतक न समझ पाए वो एक बार अडानी के सेब के बागों की कहानी सुन लें
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अडानी अग्रिकल्चर फ़्रेश लिमिटेड का हिमाचल के सेब के बाजार पर हो गया है पूरा कब्जा

बागवानों की मजबूरी हो गई है कि वह अडानी को उसी के मूल्य पर सेब बेचे, इस सेब पर अडानी ‘फार्म-पिक’ का चवन्नीछाप स्टिकर चिपका कर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में 200-250 रुपए किलो बेच रहा है...

राजकुमार राकेश की टिप्पणी

जनज्वार। किसान आंदोलन (Farmer Protest) क्यों कर रहे हैं, इसे जानने के लिए भूल जाइए शिमला शहर और वहाँ जाने वाली सड़क से होने वाले पर्यावरण के नुक़सान की रोमेंटिसिज्म से लवरेज तमाम थियोरीज़ को, बल्कि इस मसले को समझने के लिए शिमला के भीतरी ग्रामीण हिस्सों और उससे ऊपर ओऊटर कुल्लू व किन्नौर में में जाइए। ठंडी हवाओं के बीच ज्ञानचक्षु खुलेंगे।

रुरल शिमला, किन्नौर और रामपुर कि साथ वाले कुल्लू के हिस्से में सेब के बाग हैं। पहले सारा सेब दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में ले ज़ाया जाता था। उसका एकाधिकार तोड़ने के लिए स्थानीय स्तर पर मंडियाँ खुलीं। बाग़वानों से छोटे व्यापारी सेब ख़रीदकर देश भर में वितरण करने लगे। इन व्यापारियों ने स्थानीय सेब मंडियों में अपने छोटे छोटे गोदाम स्थापित कर रखे थे।

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अचानक अडानी की नज़र इस कारोबार पर पड़ी और पूरा परिदृश्य ही बदल गया। उसकी नई कम्पनी 'अडानी अग्रिकल्चर फ़्रेश लिमिटेड' (adani agriculture fresh limited) ने रुरल शिमला में, सैंज,रोहडू और बिथल में, अपनी पूँजी के बल पर अपने हाई-टेक गोदाम स्थापित किए, जो मौजूदा छोटे व्यापारियों के गोदाम से हज़ारों गुना बड़े और आधुनिकतम सुविधाओं से लेस हैं। सेब को लम्बे समय तक स्वस्थ और फ़्रेश रखते हैं।

अडानी (Adani) ने सेब ख़रीदना शुरू किया, छोटे व्यापारी जो सेब किसानों से 20 रुपए किलो के भाव से ख़रीदते थे, अडानी ने वो सेब 25 रुपय किलो ख़रीदा। अगले साल अडानी ने रेट बढ़ाकर 28/30 रुपए किलो कर दिया। धीरे धीरे छोटे व्यापारी वहाँ ख़त्म हो गए, अडानी से कम्पीट करना किसी के वश में नहीं था। जब वहाँ अडानी का एकाधिकार हो गया तो तीसरे साल अडानी ने सेब का भाव कम कर दिया।

अब छोटा व्यापारी वहाँ बचा नहीं था, बागवानों की मजबूरी हो गई है कि वह अडानी को उसी के मूल्य पर सेब बेचे। इस सेब पर अडानी 'फार्म-पिक' का चवन्नीछाप स्टिकर चिपका कर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में 200-250 रुपए किलो बेच रहा है। ढली जैसी सेब की मंडियाँ कहने को तो ख़त्म नहीं हुई हैं, मगर अब उनमें उल्लू बोलते हैं। धीरे धीरे ढह जाएँगी।

कृषि बिल अगर लागू हो गया तो गेहूँ, चावल और दूसरे कृषि उत्पाद का भी यही हश्र होगा। पहले दाम बढ़ाकर वे छोटे व्यापारियों को ख़त्म करेंगे और फिर मनमर्ज़ी रेट पर किसान की उपज ख़रीदेंगे। जब सारी उपज केवल अडानी जैसे लोगों के पास होगी तो मार्केट में इनका एकाधिकार और वर्चस्व होगा और वे अपने रेट पर बेचेंगे। अब सेब की महंगाई तो आप बर्दाश्त कर सकते हो क्यूँकि उसको खाए बग़ैर आपकी ज़िंदगी चल सकती है, लेकिन गंदूम और चावल के बिना कैसे गुज़ारा होगा।

अभी भी वक्त है, जाग जाइए, किसान केवल अपनी नहीं आपकी और देश के 100 करोड़ से अधिक मध्यमवर्गीय परिवारों की लड़ाई लड़ रहा है। बाक़ी फ़ैसला आपके हाथ में है।

(राजकुमार राकेश की यह टिप्पणी उनकी एफबी वॉल पर भी प्रकाशित)

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