चुनावी राजनीति में इरोम शर्मिला जैसा हो सकता है अखिल गोगोई का भी हश्र
दिनकर कुमार का विश्लेषण
भारत में अधिकांश आंदोलनों से निकले नेता और पार्टियां अंतत: उसी सत्ता-तंत्र का हिस्सा बन जाती हैं जिसे बदलने का सपना लेकर वे चुनावी राजनीति में उतरती हैं। जेपी आंदोलन से निकले नेताओं का सत्ता में पहुंचकर क्या हश्र हुआ, इसकी मिसालें कई हैं। शुरू में लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, रामविलास पासवान वगैरह में कई संभावनाएं दिखी थीं लेकिन बाद में यथास्थितिवाद और राजनैतिक रसूख कायम रखने के चक्कर में वे कुनबापरस्ती की ओर मुड़ गए। कुछ-कुछ ऐसा ही हाल कांशीराम के सामाजिक न्याय आंदोलन से निकली मायावती की बहुजन समाज पार्टी और इंडिया अगेंस्ट करप्शन नामक संगठन से अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए जन लोकपाल आंदोलन से निकली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का भी हुआ। ऐसी मिसालें उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक कई हैं।
आंदोलन को व्यवस्थागत राजनीति में बदलने के चक्कर में साख गंवा देने का सबसे प्रमुख उदाहरण मणिपुर की इरोम शर्मिला का है। उन्होंने सैन्यबल विशेष अधिकार अधिनियम को हटाने के लिए दशक से अधिक समय तक अपनी भूख हड़ताल को खत्म करके विधानसभा चुनावों में मैदान में उतरने का फैसला किया तो जमानत भी नहीं बचा पाईं। इरोम विधानसभा चुनाव में थउबल सीट से मुख्यमंत्री ओकराम ईबोबी सिंह के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ीं, लेकिन उन्हें मात्र 90 वोट ही मिल सके। इस सीट पर उनसे ज़्यादा वोट नोटा को मिला। 143 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया, जबकि इरोम को मात्र 90 वोट मिले।
अब असम के कृषक नेता अखिल गोगोई ने भी चुनावी राजनीति में प्रवेश करने का फैसला किया है। देखना यह है कि उनका हश्र इरोम से कितना अलग होता है। किसान अधिकार समूह कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) जल्द ही अगले साल की शुरुआत में असम चुनाव लड़ने के लिए एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी शुरू करेगी और इसके संस्थापक अखिल गोगोई मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।
गोगोई फिलहाल जेल में हैं। उन्हें एनआईए ने राजद्रोह के आरोपों के तहत और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों के तहत कथित तौर पर प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) का ओवरग्राउंड वर्कर होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उन्होंने और केएमएसएस ने पिछले साल दिसंबर में असम में सीएए के खिलाफ प्रदर्शनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
'हम एक राजनीतिक पार्टी का गठन करेंगे। गोगोई के जेल से बाहर आने के बाद हम पार्टी के नाम और अन्य विवरणों की घोषणा करेंगे, ' केएमएसएस के अध्यक्ष भास्को डी सैकिया ने कहा। उन्होंने कहा कि गोगोई सीएम पद के उम्मीदवार होंगे। नई पार्टी राज्य के विभिन्न जातीय, धार्मिक और भाषाई समुदायों से संबंधित लोगों को साथ लेकर बनेगी।
यह घोषणा कांग्रेस और एआईयूडीएफ द्वारा चुनाव के लिए गठबंधन करने के निर्णय के तुरंत बाद हुई है। इसी समय प्रभावशाली छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) और असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी) ने भी एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी बनाने का संकेत दिया है।
कांग्रेस और एआईयूडीएफ के नेताओं ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि केएमएसएस का राजनीतिक मोर्चा उनके साथ जुड़ेगा। सैकिया ने इस तरह के किसी भी गठबंधन से इनकार किया। उन्होंने कहा, 'हम किसी भी राष्ट्रीय पार्टी या किसी भी सांप्रदायिक पार्टी पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। हम अपील करते हैं कि सभी क्षेत्रीय दलों को भाजपा को असम से बाहर करने के लिए एक साथ आना चाहिए।' उन्होंने कहा कि नया संगठन एक गैर-समझौतावादी राजनीतिक शक्ति होगा।
उन्होंने कहा, 'हमारी गैर-समझौतावादी स्थिति के कारण अखिल गोगोई अभी भी जेल में है। अक्टूबर तक हमें उम्मीद है कि अखिल गोगोई रिहा हो जाएंगे। हमें देश की न्यायपालिका पर भरोसा है। वह जेल से बाहर आने के बाद पार्टी के नाम की घोषणा करेंगे।'
इसमें कोई दो राय नहीं कि अखिल गोगोई ने आम लोगों के मुद्दों पर लगातार संघर्ष करते हुए एक जुझारू नेता की छवि बनाई है। लेकिन इस देश में जन आंदोलन और राजनीति के बीच जो छत्तीस का आंकड़ा है, उसे समझने में वह नाकाम होने वाले हैं। आदर्श, नैतिकता और विचारधारा की बातें आंदोलन में अच्छी लगती है। चुनावी राजनीति का क्षेत्र तो अनैतिकता का अखाड़ा होता है। इस अखाड़े में जीत हासिल करने के लिए अपराध, भ्रष्टाचार और नफरत जैसे हथकंडों का इस्तेमाल करना जरूरी होता है। बड़े-बड़े आदर्शवादी इस अखाड़े में कूदने के बाद पतित हो जाते हैं और यथास्थितिवाद के पुर्जे में तब्दील हो जाते हैं।
असम के संदर्भ में हम छात्र आंदोलन से निकली पार्टी असम गण परिषद का उल्लेख कर सकते हैं। एक समय आंचलिकतावाद के नारे के साथ सत्ता में पहुंचनेवाली असम गण परिषद ने अपने किसी भी वादे को पूरा नहीं किया। उसे असम की जनता ने दो बार जनादेश दिया। इस पार्टी के नेताओं ने अपने लिए दौलत जुटाई लेकिन असम के हितों के लिए कुछ नहीं किया। आज इस पार्टी को भाजपा लगभग पूरी तरह निगल चुकी है। जिस आसू के बैनर तले असम गण परिषद का जन्म हुआ, आज वही आसू एक और आंचलिक दल बनाने की बात कर रहा है। इस बात की क्या गारंटी है कि नया दल फिर भाजपा के लिए बी टीम का काम नहीं करेगा? यही बात अखिल गोगोई के बारे में भी कही जा सकती है।
अखिल गोगोई अपने विरोध प्रदर्शनों में भले ही लाखों की भीड़ जुटा सकते हैं, लेकिन वे उन लाखों लोगों से अपने लिए मतदान करने की अपेक्षा नहीं कर सकते। धनबल और बाहुबल से जब चुनाव जीतने का सिलसिला चल रहा हो, जब पैसे की थैली देकर चुनावी टिकट खरीदने का युग चल रहा हो और जब मतदाता दारू या पैसे के बदले वोट बेचने के लिए तत्पर हो, तब विचारधारा या जमीनी संघर्ष की कोई अहमियत नहीं रह जाती।
(दिनकर कुमार पिछले तीस वर्षों से पूर्वोत्तर की राजनैतिक मसलों की रिपोर्टिंग करते रहे हैं।)