अवमानना केस : 6 महीने की कैद या जुर्माना, प्रशांत भूषण पर आज अदालत करेगी सजा का ऐलान
जनज्वार। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज अवमानना (Contempt of Court) को लेकर सीनियर वकील प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) के खिलाफ सजा तय करेगा. मामला वर्तमान और पूर्व चीफ जस्टिस के बारे में भूषण के विवादित ट्वीट का है. 14 अगस्त को कोर्ट ने इन ट्वीट पर प्रशांत भूषण के स्पष्टीकरण को अस्वीकार करते हुए उन्हें अवमानना का दोषी करार दिया था. कोर्ट ने भूषण को बिना शर्त माफी मांगने के लिए समय दिया गया था, लेकिन उन्होंने माफी मांगने से मना कर दिया था.
जस्टिस अरुण मिश्रा (Justice Arun Mirhra) की अध्यक्षता वाली बेंच प्रशांत भूषण के खिलाफ सुबह 10.30 बजे के करीब अपना फैसला सुनाएगी. अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत सजा के तौर पर भूषण को 6 महीने तक की कैद या 2000 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों सजा हो सकती हैं.
वहीं, इसके पहले अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने बेंच से अनुरोध किया कि अवमानना के मामले में भूषण को अब कोई सजा नहीं दी जाये, क्योंकि उन्हें दोषी पहले ही ठहराया जा चुका है. इस पर बेंच ने कहा- 'अदालत ये अनुरोध उस समय तक स्वीकार नहीं कर सकती जब तक प्रशांत भूषण अपने ट्वीट के लिये क्षमा याचना नहीं करने के अपने रुख पर पुनर्विचार नहीं करते.' बेंच ने वेणुगोपाल से कहा कि भूषण के बयान के स्वर, भाव और विवरण मामले को और बिगाड़ने वाला है. क्या यह बचाव है या फिर आक्रामकता. न्यायालय ने कहा कि वह बेहद नरमी बरत सकता है, अगर गलती करने का अहसास हो.
प्रशांत भूषण ने कहा कि वो इस मामले में सजा से नहीं डर रहे और उन्हें अदालत की दया या उदारता की दरकार नहीं है, उन्हें जो भी सजा दी जाएगी वो मंजूर है. उन्होंने कहा, 'मेरे ट्वीट में ऐसा कुछ भी नहीं था. ये एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए किए गए प्रयास थे. मैंने सोच समझ के साथ ये ट्वीट किए थे.' प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में महात्मा गांधी के कथन को दोहराते हुए कहा, "मैं दया की भीख नहीं मांगूंगा, मैं उदारता दिखाने की अपील भी नहीं करूंगा. अदालत जो सजा देगी उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लूंगा.'
दरअसल, प्रशांत भूषण के अदालत की तरफ से माफी मांगने के सुझाव को खारिज किए जाने के बाद सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने 25 अगस्त को अनुरोध किया था शीर्ष अदालत की ओर से 'स्टेट्समैन जैसा संदेश' दिया जाना चाहिए. भूषण को शहीद न बनाएं, बल्कि चेतावनी देकर छोड़ देना चाहिए. तीन जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस अरुण मिश्रा ने सजा के मुद्दे पर उस दिन अपना फैसला सुरक्षित रखा था. जस्टिस मिश्रा 2 सितंबर को रिटायर हो रहे हैं.