Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

Dehradun News : नए साल के छुट्टी कैलेण्डर से 'इगास' हुआ गायब, इस साल जमकर की थी भाजपा ने ब्रांडिंग

Anonymous
3 Dec 2021 2:52 PM GMT
Dehradun News : नए साल के छुट्टी कैलेण्डर से इगास हुआ गायब, इस साल जमकर की थी भाजपा ने ब्रांडिंग
x

(इगास त्योहार के दौरान की फाइल फोटो)

Dehradun News : उत्तराखंड में शासन की ओर से साल 2022 के सार्वजनिक अवकाशों की सूची जारी कर दी गई है। शासन की ओर से साल 2022 में 26 सार्वजनिक अवकाश घोषित किए गए हैं....

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Dehradun News : उत्तराखण्डी संस्कृति के एक खास त्योहार 'इगास' को लेकर एक पखवाड़ा भर पहले की गई भाजपाई सक्रियता की पोल शासन द्वारा नए वर्ष की छुट्टियों का कैलेण्डर घोषित किये जाने से एक बार फिर खुलती नजर आ रही है। शासन से जारी नए वर्ष 2022 की सरकारी छुट्टियों में इगास का दूर-दूर तक कोई जिक्र नहीं है। उत्तराखंड (Uttarakhand) में शासन की ओर से साल 2022 के सार्वजनिक अवकाशों की सूची जारी कर दी गई है। शासन की ओर से साल 2022 में 26 सार्वजनिक अवकाश घोषित किए गए हैं। हालांकि, सचिवालय और विधानसभा में पांच दिवसीय कार्य सप्ताह होता है। इसके साथ ही शासन ने 18 निर्बंधित अवकाश भी घोषित किए हैं। खास बात ये है कि अगले साल इगास पर्व की छुट्टी को कलेंडर से गायब कर दिया गया है। सलीम मलिक की रिपोर्ट

दरअसल उत्तराखण्ड में त्योहारों (Festivels) की छुट्टियां एक सांस्कृतिक मुद्दा बना रहता है। उत्तराखण्ड में छठ पूजा की छुट्टी को लेकर राज्य का एक वर्ग हर वर्ष सरकार से खासा नाराज़ रहता है। पर्वतीय राज्य में बिहारी मूल के त्योहार की इस छुट्टी को लेकर यह तबका खासा गुस्से में रहता है। इस तबके का तर्क है कि सरकार मूल पर्वतीय त्योहारों के अवसर पर छुट्टी नहीं करती। लेकिन गैरउत्तराखण्डी संस्कृति के त्योहारों पर वह छुट्टी घोषित करने से पीछे नही हटती।

जबकि गैरउत्तराखण्डी त्योहारों को मनाने वालो की संख्या उत्तराखण्डी त्योहार मनाने वालों की संख्या अधिक है। इसके साथ ही क्योंकि उत्तराखण्ड पर्वतीय बहुल प्रदेश है तो सरकार व शासन के सांस्कृतिक रूप में पर्वतीय शैली की छाप होनी चाहिए। देखा जाए तो ऐसा मानना गलत भी नहीं है। छठ व अन्य किसी मैदानी मूल के त्योहार की छुट्टी की एवज में कुछ लोग स्थानीय आधार पर मनाए जाने वाले पर्वतीय संस्कृति पर आधारित त्योहारों की छुट्टी की मांग उठाते रहते हैं।

इस साल भी ऐसे ही एक पर्वतीय संस्कृति के त्योहार 'इगास' पर राज्य सरकार ने इस तबके को खुश करने के लिए प्रदेश भर में इगास के अवसर पर 14 नवम्बर को छुट्टी घोषित की थी। केवल अपने आप को पर्वतीय संस्कृति का रक्षक घोषित करने की जल्दबाजी में घोषित की गई इस छुट्टी के बाद सरकार को याद आया कि इस साल जिस दिन इगास पड़ रहा है, उस दिन रविवार है।

सोशल मीडिया पर मज़ाक उड़ने के बाद सरकार ने इगास की छुट्टी में परिवर्तन करते हुए इसे 15 नवंबर कर दिया था। इसे लेकर सरकार ने अपनी पीठ थपथपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनावी साल होने की वजह से मूल पर्वतीय वोटर को साधने के लिए सरकार की ओर से बाकायदा इगास की इस छुट्टी की ब्रांडिंग करते हुए पर्वतीय संस्कृति की भावना का सम्मान करने का ढोल पीटा गया। अब अगले साल इगास पर्व से पहले विधानसभा चुनाव निपट जाने हैं, ऐसे में अगले साल की छुट्टी की सूची से इसे गायब कर दिया गया है।

उत्तराखंड में सार्वजनिक अवकाशों की सूची दो दिसंबर को जारी की गई। शासन से जारी सार्वजनिक अवकाश की सूची पर नजर डाली जाए तो इस बार छह सार्वजनिक अवकाश रविवार और तीन शनिवार को पड़ रहे हैं। इस साल 2021 के लिए 28 सार्वजनिक अवकाश घोषित किए गए थे। अगले साल महावीर जयंती और डा. भीमराव आंबडेकर जंयती एक साथ पड़ रही है। वहीं, ईद-ए-मिलाद-और महिर्षि वाल्मीकि की जयंती एक साथ पड़ रही है। इसके चलते 2022 में 26 सार्वजनिक अवकाश रहेंगे।

बता दें कि इगास पर्व को उत्तराखंड में गढ़ावल और कुमाऊं में दीपावली के रूप में मनाया जाता है। गढ़वाल में इसे इगास पर्व कहते हैं तो वहीं, कुमाऊं में इसे बूढ़ी दीवाली के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब रावण का वध करने के बाद अयोध्या पहुंचे तो इसकी सूचना उत्तराखंड को 11 दिन बाद मिली। तब यहां दीपावली मनाई गई थी। इसी दीवाली को इगास पर्व या बूढ़ी दीपावली कहते हैं।

एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार करीब 400 साल पहले वीर भड़ माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में टिहरी, उत्तरकाशी, जौनसार, श्रीनगर समेत अन्य क्षेत्रों से योद्धा बुलाकर सेना तैयार की गई। इस सेना ने तिब्बत पर हमला बोलते हुए वहां सीमा पर मुनारें गाड़ दी थीं। तब बर्फबारी होने के कारण रास्ते बंद हो गए। कहते हैं कि उस साल गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली नहीं मनी, लेकिन दीपावली के 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी युद्ध जीतकर गढ़वाल लौटे तो पूरे क्षेत्र में भव्य दीपावली मनाई गई। तब से कार्तिक माह की एकादशी पर यह पर्व मनाया जाता है।

कुल मिलाकर इगास पर्व राज्य की संस्कृति में अपना खासा स्थान रखता है। लेकिन राज्य की भाजपा सरकार इस सांस्कृतिक त्योहार पर भी केवल राजनीति ही करती नजर आ रही है। यदि वह राज्य की संस्कृति के प्रति उतनी ही संवेदनशील होती, जितनी कि अभी पखवाड़े भर पहले होने का दावा कर रही थी तो इगास पर्व को भी छुट्टियों के इस कैलेंडर में जगह मिलती। लेकिन पर्वतीय भावनाओं को चुनावी साल में भुनाने का प्रयास और चुनाव निकलते ही इस भावना को नजरअंदाज करना बताता है कि भाजपा के लिए कोई संस्कृति केवल चुनाव तक ही मायने रखती है। चुनाव न हो तो ऐसे मुद्दे भाजपा के एजेंडे में जगह नहीं पाते। शासन की ओर से नए साल की सरकारी छुट्टियों के जारी कैलेण्डर का तो यही सार है।

Anonymous

Anonymous

    Next Story

    विविध