जनज्वार ब्यूरो। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी की सदस्य और शोध छात्रा सफूरा ज़रगर को मानवीय आधार पर जमानत दे दी है। सफूरा जरगर को फरवरी में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान पूर्वी दिल्ली में हिंसा को लेकर यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था।
नागरिकता कानून समर्थकों और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसा के बाद 24 फरवरी को पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक झड़पें हुईं, जिसमें कम से कम 53 लोग मारे गए थे और कई लोग घायल हो गए थे। इससे पहले सोमवार को हाईकोर्ट ने चौथी बार याचिका को खारिज कर 23 जून तक सुनवाई को स्थगित कर दिया था।
सफूरा जरगर 23 हफ्ते की गर्भवती हैं, उन्हें कोविड-19 की महामारी के बीच दिल्ली की भीड़-भाड़ वाली तिहाड़ जेल में रखा गया था जिसको लेकर व्यापक चिंताएं पैदा हो रहीं थीं। जरगर को 10 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था।
मंगलवार को दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि राज्य को कोई समस्या नहीं है, क्योंकि सफूरा को जमानत पर रिहा किया जा रहा है, बशर्ते वह उन गतिविधियों में लिप्त न हो, जिनके लिए उसकी जांच की जा रही है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सफूरा जरगर को दिल्ली में ही रहना चाहिए। इस पर जरगर की ओर से पेश वकील नित्या रामाकृष्णन ने कहा कि उन्हें अपने डॉक्टर से सलाह लेने के लिए फरीदाबाद जाना पड़ सकता है।
कानूनी मामलों की समाचार वेबसाइट 'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस राजीव शेखर की पीठ ने सफूरा जरगर को 10 हजार के एक निजी बॉन्ड प्रस्तुत करने और इन शर्तों पर जमानत दी है।
- उसे उन गतिविधियों में लिप्त नहीं होना चाहिए जिनकी जांच की जा रही है।
- उन्हें जांच में बाधा डालने से बचना चाहिए।
- उन्हें छोड़ने से पहले संबंधित अदालत की अनुमति लेनी होगी।
- उन्हें हर 15 दिनों में फोन कॉल के माध्यम से जांच अधिकारी के संपर्क में रहना होगा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में या किसी अन्य मामले में आदेश को 'एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाना चाहिए'। जस्टिस शंखधर ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि उन्हें राज्य से 'सील कवर' में कुछ दस्तावेज प्राप्त हुए थे, जिन्हें उन्होंने खोला या नष्ट नहीं किया है। जज ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल के पास वापस भेज दिया जाएगा।
इससे पहले पटियाला हाउस कोर्ट ने 4 जून के आदेश में जरगर की जमानत याचिका खारिज की थी जिसे जरगर ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। जरगर के खिलाफ 23-25 फरवरी के दौरान उत्तरी पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के पीछे आपराधिक साजिश रचने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।
सफूरा जरगर के वकीलों ने 18 जून को हाईकोर्ट का रूख किया था। उस सुनवाई के अंत में राज्य को एक नोटिस किया गया था। दिल्ली पुलिस को 21 जून तक मामले पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का समय दिया गया था और मामले को 22 जून को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
बता दें कि इससे पहले सफूरा जरगर की रिहाई की मांग विभिन्न सामाजिक संगठन, सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता और कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठन करते रहे हैं। हाल ही में सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स, अमेरिकन बार एसोसिएशन ने सफूरा जरगर की रिहाई की अपील की थी। अमेरिकन बार एसोसिएशन ने इसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के लिए बने मानकों का उल्लंघन माना था।
इसके अलावा रविवार 21 जून को अपर्णा सेन समेत 500 बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जरगर की रिहाई को लेकर केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। बता दें कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों और दिल्ली दंगों को लेकर कोरोना महामारी के बीच केवल सफूरा जरगर को ही गिरफ्तार नहीं किया गया बल्कि पुलिस पिंजरा तोड़ संगठन की नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को भी गिरफ्तार कर चुकी है। इसलिए सरकार पर विपक्षी दल यह आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार के खिलाफ आवाजा उठाने वालों के खिलाफ कोरोना महामारी का इस्तेमाल का इस्तेमाल किया जा रहा है।