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झारखंड

Gumla News Hindi: सुविधाओं से वंचित ऐसा गांव जहां आज तक सांसद, विधायक, डीसी, बीडीओ, सीओ व पंचायत सेवक तक नहीं गये

Janjwar Desk
28 April 2022 10:04 AM IST
Gumla News Hindi: सुविधाओं से वंचित ऐसा गांव जहां आज तक सांसद, विधायक, डीसी, बीडीओ, सीओ व पंचायत सेवक तक नहीं गये
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Gumla News Hindi: गुमला जिले का रायडीह प्रखंड के अन्तर्गत पहाड़ पर बसे हैं दो गांव, बहेरापाट और पहाड़ टुडुरमा। जहां निवास करते हैं रौतिया, खेरवार व मुंडा जनजाति (आदिवासी) के 35 परिवार।

विशद कुमार की रिपोर्ट

Gumla News Hindi: गुमला जिले का रायडीह प्रखंड के अन्तर्गत पहाड़ पर बसे हैं दो गांव, बहेरापाट और पहाड़ टुडुरमा। जहां निवास करते हैं रौतिया, खेरवार व मुंडा जनजाति (आदिवासी) के 35 परिवार। इस गांव का दुर्भाग्य यह है कि यह गुमला जिला का यह पहला ऐसा गांव है, जहां आज तक सांसद, विधायक, डीसी, बीडीओ, सीओ तो दूर यहां पंचायत सेवक तक नहीं गये हैं। कई पीढ़ियां खत्म हो गयी, लेकिन उनको आज भी यह नहीं पता कि उनके क्षेत्र का सांसद, विधायक, डीसी, बीडीओ, सीओ व पंचायत सेवक कौन है?

बहेरापाट व पहाड़ टुडुरमा गांव घने जंगल व पहाड़ के ऊपर बसा है। इस गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं है। जंगली व पथरीली रास्तों से होकर लोग सफर करते हैं। इस गांव के लोगों को सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिला है और न आज मिल रहा है।

गांव की स्थिति यह है कि स्वच्छ भारत योजना का न तो शौचालय है न ही इन्दिरा आवास योजना या प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कोई पक्का घर। बेहद गरीबी में लोग जी रहे लोग लकड़ी व दोना पत्तल बेचकर अपनी जीविका चलाते हैं।


सरकारी योजनाओं के लाभ और पेयजल पर बात करने पर ग्रामीण बताते हैं कि गांव में एक सोलर जलमीनार लगा था, परंतु खराब है। ग्रामीण कहते हैं हमारे गांव में कहीं पानी का स्रोत नहीं है। गांव से दो किमी दूर पहाड़ की तलहटी पर एक चुआं है। जहां पहाड़ी पानी जमा होता है, उसी चुआं को श्रमदान से घेराबंदी की गई है। अब आप इसे दूषित पानी कहिए या साफ, हमलोग इसी पानी को पीते हैं। पानी लाने के लिए जंगली रास्तों से होकर पैदल गुजरना पड़ता है। अतः जंगली जानवरों के हमले का डर रहता है।

कृषि के लिए सिंचाई की हालत यह है कि मनरेगा से एक कुआं खोदा गया है, लेकिन वह एक स्मारक की तरह है, क्योंकि उसमें एक बूंद भी पानी नहीं है। ग्रामीण बताते हैं एक और कुआं पहाड़ की तलहटी के पास खोदा जा रहा है इस उम्मीद के साथ कि शायद यहां से पानी निकलेगा। गांव में रोजगार का कोई अन् साधन नहीं है सिवाय लकड़ी व दोना पत्तल बेचकर लोगों को अपनी जीविका चलाने का। पानी का कोई स्रोत नहीं होने से कृषि के लिए सिंचाई का साधन नहीं है। केवल प्रकृति पर निर्भरता है, इस तरह ग्रामीण बरसात में होने वाले फसल धान, गोंदली, मड़ुवा, जटंगी की खेती ही करते हैं। परंतु वे इसे बेचते इसलिए नहीं हैं कि यह इनके साल भर के खाने के लिए हो पाता है।

गांव पहाड़ पर है। अतः लोग पैदल पहाड़ी रास्ता से होकर बाहर से कोई सामान सिर पर ढोकर लाते हैं। रास्ता नहीं रहने से गर्भवती महिलाओं व बीमार लोगों को खटिया में लादकर मुख्य सड़क तक पैदल ले जाते हैं। इसके बाद टेंपो में बैठाकर मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि पहाड़ से उतारने में ही कई मरीजों की पूर्व में मौत हो चुकी है।


ग्रामीण जगन सिंह उम्र 70 वर्ष बताते हैं कि कई बार वृद्धा पेंशन के लिए आवेदन दिया। परंतु स्वीकृत नहीं हुई। इस बुढ़ापे में जंगल की लकड़ी काटकर बेचते हैं। तब घर का चूल्हा जल रहा है। कलावती देवी कहती है गांव का जलमीनार खराब है। एक कुआं खोदा गया है। परंतु उसमें एक बूंद पानी नहीं है। गांव से दो किमी दूर पहाड़ की तलहटी पर चुआं है। जिसका दूषित पानी हमलोग पीते हैं।

युवक संदीप सिंह बताते हैं कि गांव में शिक्षा का स्तर काफी कम है। स्कूल नहीं है। गरीबी के कारण पूरे गांव में मात्र तीन लोग इंटर पास किये हैं। गांव के अधिकांश युवक युवती पांचवीं व छठी कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। ग्रामीण मंगरू सिंह की माने तो पंचायत चुनाव है, अभी गांव में चुनाव को लेकर कोई हलचल नहीं है। मतदान से एक दिन पहले उम्मीदवार वोट मांगने गांव आते हैं। पहाड़ी सफर तय कर 20 किमी दूर लुरू बूथ जाकर वोट डालते हैं। अलीता देवी बताती हैं हमारा गांव रायडीह प्रखंड में है, परंतु प्रखंड कार्यालय तक आने-जाने के लिए सड़क नहीं है। हमलोग चैनपुर प्रखंड के सोकराहातू के रास्ते से होकर गुमला जाते हैं। इसके बाद रायडीह प्रखंड कार्यालय पहुंचते हैं।

यह पूछे जाने पर कि आपकी सरकार से क्या मांग है? पोंडरी देवी कहती हैं गांव की सड़क बन जाये। पानी की सुविधा हो। हर घर में शौचालय बन जाये। प्रशासन से यही मांग है। आज तक हमारे गांव में कभी विधायक, सांसद, बीडीओ, सीओ व पंचायत सेवक नहीं आये हैं। गांव के लोग कहते हैं - हम क्या करें, हमारी हालात ऐसी है कि जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा और जाना कहां?

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