Begin typing your search above and press return to search.
राष्ट्रीय

किसानों पर लाठीचार्ज की जांच करेंगे रिटायर्ड जज, आयुष सिन्हा भेजे लम्बी छुट्टी पर, किसान प्रतिनिधियों ने किया आंदोलन खत्म करने का ऐलान

Janjwar Desk
11 Sep 2021 7:16 AM GMT
किसानों पर लाठीचार्ज की जांच करेंगे रिटायर्ड जज, आयुष सिन्हा भेजे लम्बी छुट्टी पर,  किसान प्रतिनिधियों ने किया आंदोलन खत्म करने का ऐलान
x

(लंबी छुट्टी पर भेजे गए करनाल एसडीएम आयुष सिन्हा)

सरकार द्वारा किसानों की मांगे माने जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों ने जिला सचिवालय के समक्ष 5 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन को खत्म करने का ऐलान कर दिया....

करनाल। बसताड़ा टोल प्लाजा घरौंडा में पुलिस द्वारा किसानों पर किए गए लाठीचार्ज (Karnal Lathicharge) मामले की जांच सरकार रिटायर्ड जज (Retd, Judge) से करवाएगी, जांच एक माह में पूरी कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी। जब तक जांच जारी रहेंगी, तब तक आईएएस आयुष सिन्हा (IAS Ayush SInha) अवकाश पर रहेंगे। इसके अलावा मृतक किसान सुशील काजल (Sunil Kajal) के परिवार के दो सदस्यों को डीसी रेट पर नौकरी सहित 25 लाख का मुआवजा दिया जाएगा। लाठीचार्ज में घायल किसानों को 2-2 लाख रुपए का मुआवजा (Compensation) सरकार की ओर से दिया जाएगा।

जिला सचिवालय के डीसी के कान्फ्रेंस हॉल में किसान प्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों की संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस में एसीएस देवेंद्र कुमार ने उपरोक्त मांगों को माने जाने का ऐलान किया। उन्होंने बताया कि शुक्रवार देर रात दोनों ही पक्षों के बीच सकारात्मक माहौल में बातचीत हुई ओर सम्मानजनक समझौता हुआ है। देर रात ही मांगों को लेकर लगभग सहमति बन चुकी थी, लेकिन किसान प्रतिनिधियों ने सुबह 9 बजे तक समय की मांग की थी ताकि संयुक्त किसान मोर्चा के अन्य प्रतिनिधियों से बातचीत कर राय मशवरा किया जा सके।

वहीं सरकार द्वारा किसानों की मांगे माने जाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों ने जिला सचिवालय के समक्ष 5 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन को खत्म करने का ऐलान कर दिया। संयुक्त प्रेसवार्ता में एसीएस देवेंद्र कुमार, डीसी निशांत यादव, एसपी गंगा राम पूनिया व किसान नेताओं में भारतीय किसान यूनियन (चढूनी)के राष्ट्रीय अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी, रतनमान, रामपाल चहल, सुरेश कौंथ, जोगिंद्र झिंडा सहित किसान नेता शामिल रहे।

आखिरकार सरकार को किसानों की मांगों को मानना पड़ा?

सरकार शुरू से ही आंदोलन को लेकर कड़ा रुख अपनाती हुई दिख रही थी, लेकिन किसानों ने जिस तरीके से जिला सचिवालय के समक्ष पहुंचकर मजबूत मोर्चाबंदी की। उसे देखते सरकार धीरे-धीरे पीछे हटती चली गई। नतीजन किसानों की मांगों को मान लिया गया। सरकार को फीड बैक मिल चुका था कि जिला सचिवालय के समक्ष चल रहे धरना प्रदर्शन का रूप कम न होकर बढ़ता जाएगा, जो आने वाले दिनों में सरकार को कही परेशानी में न डाल दे। इसे देखते हुए सरकार को किसानों की मांगे मानने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं आया।

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता भी करनाल की मोर्चाबंदी को लम्बी नहीं खींचना चाहते थे

वहीं दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा के नेतागण भी करनाल में चल रही मोर्चाबंदी को लम्बी नहीं चलाना चाहते थे, उन्हें अंदेशा था कि अगर करनाल की मोर्चाबंदी लम्बी चलेंगी तो दिल्ली बार्डरों पर चल रहे आंदोलन की धार कही कम न हो जाए। सारा ध्यान करनाल पर ही केंद्रित न हो जाए।

10 दौर की बातचीत के बाद बनी सहमति..

किसानों पर लाठीचार्ज के बाद चल रहे गतिरोध थामने के लिए किसान प्रतिनिधियों राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी, योगेंद्र यादव, बलबीर राजोवाल सहित अन्य किसान नेताओं की प्रशासन के साथ 7-8 सितम्बर को 6 दौर की करीब 6 घंटों तक बातचीत चली, बातचीत बेनतीजा निकली। बातचीत का दोर चलता रहा, जिला सचिवालय के बाहर पक्का मोर्चाबंदी होती रही। मांगे न माने जाने के बाद किसान नेताओं ने साफ ऐलान कर दिया था कि वे करनाल के प्रशासनिक अधिकारी के साथ बातचीत नहीं करेंगे।

सरकार ने एसीएस देवेंद्र कुमार को भेजा बातचीत के लिए

जिला सचिवालय के समक्ष मजबूत होती मोर्चाबंदी को देखते हुए सरकार कही न कही बैकफूट पर दिखाई दी, क्योंकि करनाल विधानसभा क्षेत्र मुख्यमंत्री मनोहर लाल का है, मनोहर लाल करनाल विधानसभा क्षेत्र से चुनकर विधानसभा पहुंचे हैं। सीएम सिटी होने के चलते सरकार पर बढ़ते आंदोलन को लेकर दवाब था। यही कारण था कि सरकार किसान प्रतिनिधियों के साथ बातचीत का दौर जारी रखना चाहती थी ओर चल रहे गतिरोध को थामने के हर जत्न करना चाहती थी। इसी के चलते सरकार ने एसीएस देवेंद्र कुमार को किसान प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के लिए भेजा।

सरकार आंदोलन के आगे झूकती हुए भी नहीं दिखना चाहती थी

हालांकि आंदोलन समाप्त हो गया, बावजूद सरकार जनता को ये दिखाना चाहती थी कि वे किसी भी प्रकार से झूकने को तैयार नहीं है। यही कारण रहा कि सरकार के मंत्रियों-विधायकों व सांसदों में से किसी भी प्रतिनिधि की डयूटी किसानों के साथ चल रहे विवाद को निपटाने में नहीं लगाई। सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों को ही किसानों के साथ बातचीत के लिए आगे रखा, पीछे से ही अधिकारियों को गतिरोध दूर करने के दिशा निर्देश जारी किए जाते रहे।

करनाल में आंदोलन लम्बा चलता, तो शायद सरकारी कार्यक्रम न हो

जिला सचिवालय के समक्ष मोर्चाबंदी लगाए बैठे किसानों के आंदोलन को देखते हुए सरकार को डर था कि अगर मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रियों के कार्यक्रम करनाल सिटी में होंगे। कही उन कार्यक्रमों में किसान सीधे तौर पर परेशानी न खड़ी कर दे। क्योंकि किसान बसताड़ा टोल प्लाजा से करनाल सिटी के अंदर तक धरना लगाकर बैठ चुके हैं। यहां से उन्हें शहर के अंदर कार्यक्रम स्थलों में जाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होंगी। कानून व्यवस्था के बिगडऩे के डर से सरकार ने सीधे बातचीत न करके प्रशासनिक अधिकारियों को आगे करके बातचीत की।

किसान मांगों को लेकर अड़े थे, प्रशासन के हाथ पांव फूले रहे

किसानों के तीव्र होते आंदोलन को देखते हुए प्रशासन के हाथ पांव फूले हुए थे, उन्हें सुरक्षा व्यवस्था बिगडऩे का डर था, एहतियात के तौर पर हजारों बीएसएफ के जवानों के साथ पुलिसबलों की भारी संख्या में तैनाती की हुई थी, ड्रोन से नजर रखी जा रही थी, सिविल वर्दी में खुफिया एजेंसियों के कर्मचारी हर जगह नजर रखे हुए थे। हालांकि प्रशासन किसानों से लगातार आंदोलन को शांतिपूर्वक रखने की अपील कर वार्ता के लिए बुलाता रहा। प्रशासन के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यही थी कि किसान अपनी मांगों पर अड़े थे।

Next Story

विविध