Russia Ukraine War Update: रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का विरोध सीरिया, चीन और रूस में भी, जानिए कौन किसके साथ है?
Russia Ukraine War Update: रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले का विरोध सीरिया, चीन और रूस में भी, जानिए कौन किसके साथ है?
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Russia Ukraine War Update: मार्च को संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली (UN General Assembly) में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले से सम्बंधित आपात बैठक (Emergency Meeting) बुलाई गयी थी, जिसमें पारित प्रस्ताव में कड़े शब्दों में रूस की निंदा की गयी है और रूस से कहा गया है कि वह उक्रेन पर लगातार की जाने वाली सैन्य कार्यवाही को तत्काल प्रभाव से रोक दे| कुल 193 सदस्यों में से 141 ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट दिया, भारत और चीन समेत 35 देशों ने वोटिंग प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया (abstained) और रूस, बेलारूस और सीरिया समेत 5 देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया| शेष देशों के प्रतिनिधि आज बैठक में मौजूद नहीं थे| आज के दौर में संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशनों का बहुत महत्व नहीं है, फिर भी ऐसी बैठकों से देशों की मानसिकता का पता चल जाता है, यह भी पता चलता है कि एक तानाशाह के समर्थन देने वाले दुनिया में कितने तानाशाह हैं|
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UN Security Council) में भी रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की निंदा करने से सम्बंधित प्रस्ताव पर मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था, और अकेले रूस ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था| रूस का विरोध, वीटो, है – इसलिए यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया था| इसके बाद ही इस प्रस्ताव को जनरल असेंबली में लाया गया था| इस प्रस्ताव को दुनिया के 94 देशों ने जेनरल असेंबली के पटल पर रखा था| भारत का बार-बार ऐसे प्रस्ताव पर मतदान से भागना स्पष्ट तौर पर एक तानाशाह, दुनिया से लोकतंत्र मिटाने और नरसंहार करने वाले का समर्थन है| इसे आप दूसरे नजरिये से भी देख सकते हैं, वर्ष 2016 में जब डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे, तब उस समय चुनावों में ट्रम्प जैसे सनकी व्यक्ति को जिताने के लिए समर्थन बनाने में पुतिन ने बहुत योगदान दिया था| तो क्या पुतिन या रूस सरकार भारत समेत दूसरे देशों में कट्टरपंथियों और लोकतंत्र का हनन करने वाले शासकों को चुनाव जीतने का माहौल तैयार करने में मदद नहीं करती होगी? यहाँ यह जानना आवश्यक है कि जनरल असेंबली की इमरजेंसी बैठक एक सामान्य प्रक्रिया नहीं है, वर्ष 1950 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से यह 11 इमरजेंसी बैठक थी, इससे पहले ऐसी बैठक 1982 में आयोजित की गयी थी|
अब भारत सरकार की तरफ से यह प्रचारित किया जा रहा है कि भारत सरकार ने यूक्रेन में जिन जगहों पर रूस को हमला नहीं करने को कहा था, वहां हमले नहीं किये गए और अधिकतर भारतीय हमले से सुरक्षित रहे| इस वक्तव्य को दूसरे नजरिये से देखें तो ऐसा महसूस होता है कि यूक्रेन पर हमला भारत से पूछ कर रूस ने किया होगा, और भारत सरकार को हमले की पूरी जानकारी शुरू से ही रही होगी| भारत सरकार पुतिन का विरोध कभी नहीं करेगी, पर यहाँ की जनता और बुद्धिजीवी भी पूरी तरह से इस मसले पर खामोश हैं| इन दिनों सीरिया, चीन और यहां तक कि रूस में भी रूस द्वारा हमले की निंदा की जा रही है, पर हमारे देश में एक अजीब सा सन्नाटा है और सोशल मीडिया पर पुतिन को महान करार देने की होड़ चल रही है|
गृहयुद्ध और गरीबी से घिरे सीरिया के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में उक्रेन के समर्थन में बड़ी रैलियाँ की गयी हैं| वर्ष 2015 में राष्ट्रपति बशर अल असद (Bashar Al Assad) की सहायता के नाम पर रूस ने लगभग 4 वर्षों तक लगातार उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों, विशेष तौर पर इद्लिब (Idlib) प्रांत पर लगातार हमले किये थे और हजारों लोगों को मार डाला था| इस युद्ध को पुतिन ने दुनिया में चर्चित नहीं होने दिया और दुनिया की नज़रों में कुछ इस तरह प्रस्तुत किया मानों उन्होंने सीरिया का भला किया और इसके संप्रभुता की रक्षा की| उक्रेन पर हमले के समय भी वे स्कूलों, अपार्टमेंट्स, कार्यालयों, अस्पतालों और टीवी टावरों पर हमला करते हुए दुनिया को यही बता रहे हैं कि वे महज सैन्य ठिकानों पर हमले कर रहे हैं| सीरिया में भी उनके लड़ाकू वायुयानों ने स्कूलों, अस्पतालों, बाजारों और बेकरी पर लगातार बमबारी की थी| सीरिया के नागरिकों के अनुसार पुतिन ने सीरिया को अपने नए हथियारों और मिसाइलों के परीक्षण का केंद्र बना दिया था| इसके साथ ही युद्ध से सम्बंधित अफवाह और गलत समाचार प्रचारित करने और साइबर-युद्ध के कौशल की दक्षता का भी परीक्षण किया| इसका नतीजा सबके सामने है, सीरिया में रूस ने इस दौर के सबसे बर्बर युद्ध को अंजाम दिया पर दुनिया इसे सीरिया की मदद के तौर पर देखती रही| ना ही रूस के विरुद्ध कोई प्रस्ताव पारित हुआ, ना ही प्रतिबन्ध लगे और ना ही इसे युद्ध अपराध की तरह देखा गया|
सीरिया के इद्लिब प्रान्त में रूस के विरुद्ध और उक्रेन के समर्थन में आयोजित रैली के एक आयोजक, मरवन इस्सा (Marwan Issa) के अनुसार हमलोगों ने लगातार 6 वर्षों तक रूस के बमों और अफवाहों को झेला है, इसलिए जाहिर है कि उक्रेन के साथ हमारा भाग्य जुड़ा है| वे आगे कहते हैं कि, यह अफ़सोस तो जरूर होता है कि सीरिया पर हमले के समय दुनिया खामोश रही, पर यह खुशी भी है उक्रेन के मामले में रूस पर हरेक दिन नए प्रस्ताव पारित हो रहे हैं और नए प्रतिबंधों की घोषणा की जा रही है| मरवन इस्सा के अनुसार उन्हें उम्मीद है कि उक्रेन पर हमले बंद होने के बाद दुनिया नए सिरे से पिछले कुछ वर्षों के दौरान रूस द्वारा की गयी कार्यवाहियों की नए सिरे से समीक्षा करेगी, और सीरिया पर रूस की बर्बरता की भी समीक्षा करेगी|
रूस के कुछ शहरों में सरकार द्वारा तमाम प्रतिबंधों के बाद भी रूस द्वारा किये गए हमले के विरोध में प्रदर्शन किया है| रूस के 600 से अधिक वैज्ञानिकों, वैज्ञानिक लेखकों और विज्ञान पत्रकारों ने एक खुले पत्र के माध्यम से, जो वेबसाइट trv-science.ru/2022/02/we-are-against-war पर उपलब्ध है, के माध्यम से रूस की इस कार्यवाही का विरोध किया है और उक्रेन की आजादी और संप्रभुता का समर्थन किया है| इस पत्र में कहा गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध में रूस ने उक्रेन के साथ एकजुट होकर हिस्सा लिया था, और अब रूस उक्रेन पर ही हमला कर विश्युद्ध के सेनानियों के साथ विश्वासघात कर रहा है| यूरोप के अनेक विश्विद्यालयों और साइंस अकादमी के वैज्ञानिकों ने भी उक्रेन का समर्थन किया है| रूस के वैज्ञानिकों के अनुसार उनके देश की इस हरकत से भविष्य में रूस फिर से विश्वपटल पर अकेला पड़ जाएगा, इससे संस्कृति और प्रौद्योगिकी के विकास में बाधा आयेगी|
चीन खुले आम रूस के समर्थन में खड़ा है, और वहां सरकारी नीतियों से अलग कहना या लिखना बहुत खतरनाक है| चीन के सोशल मीडिया पोस्ट पर अधिकतर नागरिक भी रूस का समर्थन कर रहे हैं| इसके बाद भी चीन के प्रख्यात इतिहासकार क्सु गेव्की (Xu Guoqi) की अगुवाई में पांच सबसे प्रतिष्ठित इतिहासकारों ने एक खुले पत्र के माध्यम से उक्रेन का समर्थन किया है और रूस की भर्त्सना की है| इन लोगों ने लिखा है कि चीन ने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया है और यह बहुत निराशा की बात है| इन लोगों ने कहा है कि पूरा घटनाक्रम इतना स्पष्ट है कि कहीं संदेह की गुंजाइश ही नहीं है| इस सन्दर्भ में चीन की एक पुराणी कहावत को भी उद्धृत किया है – आप एक हिरन को घोड़ा तो नहीं कह सकते| इस खुले पत्र को इन्टरनेट के माध्यम से प्रसारित किया गया था, पर चीन के मीडिया सेंसर अधिकारियों ने इसे 2 घंटे 40 मिनट बाद ही हटा दिया|
लेखकों की संस्था पेन इंटरनेशनल (PEN International) की तरफ से दुनिया के 1000 से अधिक प्रतिष्ठित लेखकों ने उक्रेन का समर्थन किया है| इन लेखकों के अनुसार रूस द्वारा किया गया हमला केवल उक्रेन की संप्रभुता, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं है बल्कि यह दुनिया पर हमला है| यूरोपियन फिल्म अकादमी ने रूस की फिल्मों के बहिष्कार का फैसला किया है| रूस के अनेक प्रतिष्ठित खिलाड़ियों ने भी इस हमले की निंदा की है और उक्रेन का समर्थन किया है| हाल में ही आयोजित टेनिस की प्रतियोगिता, दुबई ओपन (Dubai Open), में फाइनल में पहुंचे रूसी टेनिस खिलाड़ी अंदरे रुब्लेव (Andre Rublev) से जब इस युद्ध से सम्बंधित सवाल पूछा गया तब उन्होंने कैमरे पर ही लिखा, No War Please|