Subhadra Kumari Chouhan : देश की पहली महिला सत्याग्रही सुभद्रा कुमारी चौहान ने जबलपुर जेल में बैठकर लिखी थी 'खूब लड़ी मर्दानी'

देश की पहली महिला सत्याग्रही सुभद्रा कुमारी चौहान ने जबलपुर जेल में बैठकर लिखी थी 'खूब लड़ी मर्दानी'
मनीष दुबे की रिपोर्ट
Subhadra Kumari Chauhan : 'खूब लड़ी मर्दानी वह वह तो झांसी वाली रानी (Jhansi Wali Rani) थी।' हम में से शायद ही कोई ऐसा होगा जो इन पंक्तियों से वाकिफ नहीं होगा। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (Rani LakshmiBai) को याद करते हुए कई बार ये पंक्तियां बोली गई हैं। यह पंक्तियां हैं मशहूर कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान कीं।
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं में वीर रस की प्रधानता रही है। उनकी लिखी गई कविताओं में झांसी की रानी सबसे चर्चित है। इस एक कविता से न सिर्फ उन्हें प्रसिद्धि मिली बल्कि वह साहित्य में अमर हो गईं। उनका लिखा यह काव्य सिर्फ कागजी नहीं था, उन्होंने जो लिखा उसे अपनी निजी जिंदगी में जिया भी। इसी का प्रमाण है कि सुभद्रा कुमारी चौहान, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थीं। इसके लिए वह कई बार जेल भी गई थीं।
कुछ तथ्य यह भी
सुभद्रा कुमारी का जन्म 16 अगस्त, 1904 में इलाहाबाद (Allahabad) के पास निहालपुर ग्राम में हुआ था। पिता रामनाथ सिंह जमींदार थे। सुभद्रा कुमारी को बचपन से ही कविता लिखने का शौक था। 1921 में उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था। वे पहली महिला सत्याग्रही थीं जिन्हें गिरफ्तार किया गया था। 15 फरवरी, 1948 में मात्र 43 वर्ष की उम्र एक सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। सुभद्रा कुमारी तो नहीं रहीं लेकिन झांसी की रानी पर लिखी उनकी कविता हमेशा के लिए अमर हो गई।
वरिष्ठ पत्रकार और इन दिनों जेलों के सुधार पर काम कर रहीं वर्तिका नंदा सुभद्रा कुमारी चौहान के विषय मे लिखती हैं कि, 'झांसी की रानी का शौर्य जेल में बैठ लिखा सुभद्रा कुमारी चौहान ने...
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।
वर्तिका कहती हैं कि, बहुत कम लोगों को इस बात का इल्म होगा कि सुभद्रा कुमारी चौहान ने इस कविता को जेल में रहते हुए लिखा था। वर्ष 1930 में प्रकाशित अपनी एक किताब "मुकुल' की प्रस्तावना में सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी जेल यात्राओं का ज़िक्र किया है और इसके अंत में जबलपुर जेल का ही पता लिखा है जहां वे बंद थी। प्रस्तावना में इसकी तारीख 30 नवम्बर, 1930 है। जेल की कोठरी में बैठकर सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने लेखन से राष्ट्रभक्ति की अलख जगाई। और उनका इस्तेमाल किया गया शब्द ''मर्दानी'' ऐतिहासिक बन गया।
यहां पढ़ें रानी पर लिखी सुभद्रा की कविता?
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबेलों के मुँह हमेशा सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की रानी थी।।
कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के संग पढ़ती थी वह, नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।।
वीर शिवाजी की गाथाएं उसको याद जंबानी थी,
बुंदेले हरबेलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।।
महाराष्ट्र- कुलदेवी उसकी भी भवानी थी,
बुंदेले हरबेलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की रानी थी।।











