केशव प्रसाद मौर्य की फर्जी डिग्री को लेकर 11 को कोर्ट देगी फैसला, भाजपा नेता ने ही दायर की है याचिका
एक बीजेपी नेता ने ही डिप्टी सीएम की शैक्षणिक डिग्रियों को फर्जी बताते हुए याचिका दायर की है
जनज्वार। उत्तरप्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की कथित फर्जी डिग्री मामले में 11 अगस्त को कोर्ट का फैसला आ सकता है। प्रयागराज एसीजेएम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है।
बीजेपी नेता व आरटीआई एक्टिविस्ट दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने केशव प्रसाद मौर्य के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराए जाने के संबंध में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नम्रता सिंह की अदालत में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के अंतर्गत परिवाद दर्ज कराया था। कोर्ट ने दिवाकर नाथ त्रिपाठी के अधिवक्ता उमाशंकर चतुर्वेदी को सुनकर केस को आदेश के लिए सुरक्षित किया है।
अर्जी में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के विरुद्ध आरोप लगाया गया है कि उन्होंने फर्जी डिग्री का प्रयोग कर 5 अलग-अलग चुनाव लड़ा है। साथ ही इन्हीं डिग्रियों के आधार पर पेट्रोल पंप भी हासिल किया है। वरिष्ठ भाजपा नेेता और आरटीआई एक्टिविष्ट दिवाकर त्रिपाठी की ओर से दाखिल की गई अर्जी में प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के विरुद्ध कई गंभीर आरोप लगाए गए है।
कोर्ट में दायर की गई अर्जी में कहा गया है कि डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 2007 में शहर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधान सभा चुनाव लड़ा था। इसके बाद 2012 में सिराथू से भी विधानसभा चुनाव लड़ा और फूलपुर लोकसभा से 2014 में चुनाव लडा। वे एमएलसी भी चुने गये हैं।
अर्जी में यह आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपने शैक्षिक प्रमाण पत्र में हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा जारी प्रथमा और द्वितीया की जो डिग्री लगाई है, वह उत्तरप्रदेश सरकार या किसी बोर्ड से मान्यता प्राप्त नहीं है। डिप्टी सीएम पर आरोप है कि इसी डिग्री के आधार पर उन्होंने इंडियन आयल कारपोरेशन से पेट्रोल पंप भी प्राप्त किया है जो कौशाम्बी जनपद में है।
भाजपा नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट ने आरोप लगाया है कि चुनाव लडने के दौरान जो अलग - अलग शैक्षिक प्रमाण पत्र लगाये गये हैं, उन प्रमाणपत्रों में भी वर्ष की भिन्नता है अर्थात इनमें अलग-अलग वर्ष दर्ज हैं। इन प्रमाणपत्रों की कोई मान्यता नहीं है।
दिवाकर त्रिपाठी के मुताबिक उन्होंने स्थानीय थाना, एसएसपी, यूपी सरकार और केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में प्रार्थना पत्र देकर कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अब शुक्रवार को हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला रिजर्व कर लिया है और 11 अगस्त को कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी।