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Prof Vinay Kumar Pathak: योगीराज में भ्रष्टाचार का खेल, कानपुर विश्वविद्यालय के आरोपी कुलपति पर मुकदमे के बाद भी राजभवन खामोश

Prof Vinay Kumar Pathak: योगीराज में भ्रष्टाचार का खेल, कानपुर विश्वविद्यालय के आरोपी कुलपति पर मुकदमे के बाद भी राजभवन खामोश
Kanpur University। यूपी के योगीराज में उच्च शिक्षा में भ्रष्टाचार के खेल आये दिन उजागर हो रहे हैं। इस बीच छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर के वर्तमान और डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्याल आगरा के पूर्व कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर विनय पाठक पर दर्ज मुकदमे ने तो राजभवन तक को आगोश में ले लिया है। दर्ज मुकदमे ही बता रहे हैं कि भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं।
पूरी कहानी के तह में जाने के पहले देखें दर्ज मुकदमे का मजमुन। एक करोड़ 41 लाख रूपये कमीशन के रूप में कुलपति व उनके करीबी अजय मिश्र के वसूल लेने का आरोप लगाने वाले शिकायतकर्ता ने एफआईआर में लिखवाया है कि बकौल प्रो. विनय पाठक, मैं कुलपति बनवाता हूं। 8 विश्वविद्यालयों में मेरे द्वारा ही कुलपति बनवाया गया है। मुझे उपर तक पैसा देना पड़ता है।मेरे संबंध अधिकारियों व माफियाओं से है। कहीं भी जाओगे तो कोई मदद नहीं मिलेगी। मैं तुम्हारी कंपनी को किसी भी विश्वविद्यालय में काम करने नहीं दूंगा।
एफआईआर के मजमून का यह एक हिस्सा है,जो कंपनी के मालिक ने मुकदमे में उल्लेख किया है। हालांकि यह तो जांच का विषय है, पर गंभीर आरोप व मुकदमा दर्ज होने के बावजूद राजभवन की चुप्पी पर सवाल उठना लाजमी है। इस प्रकरण को लेकर सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा के बीच उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कि ंकोई कुलपति आखिर कितना ताकतवर है कि उसने 8 अन्य कुलपतियों की नियुक्ति अपने प्रभाव में करा लिए।
स्वाभाविक है कि इसमे या तो राजभवन को अंधेरे में रखा गया होगा अथवा राजभवन के कुछ प्रभावी लोग भी इसमे अवश्य शामिल होंगे। यह उस उत्तर प्रदेश में हुआ है जिसे उत्तम और विकसित प्रदेश बनाने के लिए योगी मोदी की डबल इंजन की सरकार हाड़ तोड़ मेहनत कर रही है।ऐसे में यदि प्रदेश के विश्वविद्यालयों की यह दशा है तो चिंता की बात है। राजभवन की कोई न कोई प्रतिक्रिया तो आनी ही चाहिए। यदि इतने गंभीर प्रकरण के सामने आने के बाद भी यह चुप्पी ऐसी ही बनी रहती है तो फिर और ढंग से सोचने की जरूरत होगी। बहरहाल उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों की वास्तविक दशा के लिए यह एफआईआर अनेक चित्र प्रस्तुत कर रही हैं। अब राजभवन व लोकभवन को सोचना है। प्रधानमंत्री जी तो अपने अनेक संबोधनों में कहते है कि भ्रष्टाचारी जितना भी ताकतवर हो,बचेगा नहीं।
ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कानपुर विवि के कुलपति प्रो विनय पाठक का दम तो है। अति गंभीर एफआईआर के 4 दिन के बाद भी राजभवन में इस प्रकरण पर सन्नाटा है। कोई प्रतिक्रिया नहीं। यदि विनय पाठक ने कहा है कि उन्होंने आठ कुलपति बनवाये हैं और धन ऊपर भी पहुचाया है, जैसा कि एफआईआर में दर्ज है, तो मामला बहुत संगीन लग रहा है। कुलपतियों की नियुक्ति में किसी गिरोह के संलग्न होने की चर्चाएं तो बहुत पहले से चल रही थीं, उस धुएं की आग अब दिख भी रही है। कुलपति के करीबी अजय मिश्र पर लगे आरोपों की जांच में लखनऊ से आगरा तक एसटीएफ की टीम लगी है। एसटीएफ ने अजय मिश्र को गिरफ्तार कर पूछताछ की थी। सोमवार को उसे कोर्ट में पेश किया। इसके बाद जेल भेज दिया गया।
उपकरण सप्लाई करनेवाला अजय के कई कुलपतियों से है करीबी
एसटीएफ की पूछताछ में पता चला कि एक्सएलआईसीटी कंपनी के मालिक अजय मिश्र लखनऊ के खुर्रम नगर का रहने वाला है। उसके पिता गौरीशंकर मिश्र बैंक से सेवानिवृत्त हुए। उसने लखनऊ में पढ़ाई की। सीए की तैयारी की। मगर, सफल नहीं हो सका। वह कंप्यूटर डेटा प्रोसेसिंग का काम करने लगा। वह पैतृक घर में रहता था। स्कूटर से चलता था। उसने कुछ ही समय में कुलपतियों से संपर्क कर लिया। बताया गया है कि उसकी कंपनी में 200 से अधिक कर्मचारी हैं। 100 करोड़ का सलाना टर्न ओवर है। 20 करोड़ रुपये से अधिक कंपनी के खाते में हैं। वह शिक्षण संस्थानों में उपकरण आदि की भी सप्लाई देता था। कई अन्य कुलपति से उसकी सांठगांठ की जानकारी एसटीएफ को मिली है। अजय मिश्र ने प्रो. विनय पाठक के लिए एजेंसी से कमीशन के रूप में रुपये लिए थे। इसके कई खातों में रकम को जमा कराया। इस समय वह आलीशान कोठी में रहता है। महंगी कार में चलता है।
पूरे मामले में अब तक यह हुई है कार्रवाई
कुलपति पाठक और एक्सएलआईसीटी कम्पनी के मालिक अजय मिश्रा के खिलाफ 29 अक्टूबर को डेविड मारियो डेनिस नामक कारोबारी ने लखनऊ के इंदिरा नगर थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। उनके मुताबिक डेविड ने पाठक और मिश्रा पर डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर आगरा विश्वविद्यालय में अपने फर्म द्वारा किये गये कार्यों के पुराने बिलों का भुगतान कराने के नाम पर एक करोड़ 41 लाख रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप लगाया है। पाठक इस साल जनवरी से सितंबर तक आगरा विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति थे।
एसटीएफ ने गत रविवार को आरोपी अजय मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया था। मिश्रा भी विश्वविद्यालय में परीक्षा से जुड़े कार्यों का संचालन करता है। उस पर कुलपति से मिलीभगत करने का आरोप है।डेनिस ने यह भी आरोप लगाया है कि कुलपति विनय पाठक ने उससे 15 प्रतिशत कमीशन की मांग की थी और नहीं देने पर काम देने पर रोक लगाने और अन्य किसी भी विश्वविद्यालय से काम मिलने पर रोक लगाने की धमकी भी दी थी।
एसटीएफ के मुताबिक इस मामले में कुलपति की भूमिका की जांच की जा रही है। मामले से जुड़े वित्तीय लेनदेन, कॉल रिकॉर्ड्स तथा अन्य विवरण की जांच की जा रही है। अजय मिश्र को जल्द रिमांड पर लेने की तैयारी है। एक्सएलआईसीटी कंपनी का मालिक अजय मिश्र भी आगरा विश्वविद्यालय में प्री व पोस्ट परीक्षा का संचालन कराता है। उस पर प्रोफेसर विनय पाठक के साथ मिलीभगत का आरोप है। एसटीएफ के अफसरों का कहना है कि अजय और खातों का ब्योरा निकलवा लिया है। साक्ष्य मिलने के बाद ही प्रोफेसर पाठक से भी पूछताछ की जा सकती है।
योगीराज मेें कुलपतियों के भ्रष्टाचार का खेल हुआ पुराना
अगर देश भर के सभी कुलपतियों की संपत्ति की जांच कराई जाए तो शायद कुलाधिपति की संपत्ति से कहीं ज्यादा निकले। बेशुमार अधिकारों की बजह से भ्रष्टाचार से लिप्त कुलपति करोड़ों अरबों रुपए के घोटाले करने में जुटे हुए हैं। उत्तर प्रदेश के डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय कुलपति प्रोफेसर रवी शंकर का भी एक मामला आया था। उनअपर उन्हीं के शिक्षकों ने आरोप लगाया था कि अपने खासम खास लोगों को प्रमोशन देने एवं दीपोत्सव जैसे मामले में घोटाले किये गए हैं। जिसके बाद जांच हुई तो मामला सही निकला जांच में और भी खुलासे हुए जिसमें कुलपति ने अपने सगे संबंधी सहित पैसे लेकर अन्य लोगों को भी विश्वविद्यालय में नियुक्त कर दिया था। अवध विश्वविद्यालय के कुलपति को कुलाधिपति ने इस्तीफा लेकर प्रयागराज के प्रोफेसर रज्जू भैया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश सिंह को अवध विश्वविद्यालय का अतिरिक्त भार दे दिया। अब सवाल उठता है कि घोटाले करने वाले कुलपतियों को केवल इस्तीफा ही देना होगा या जेल की रास्ता भी दिखानी चाहिए। अगर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल आनंदीबेन पटेल सभी विश्वविद्यालय की जांच कराएं तो तमाम ऐसे विश्वविद्यालय हैं प्रदेश में जहां घोटालों का अंबार लगा हुआ है।











