Dehradun News: पूर्व मुख्यमुंत्री रावत हरीश रावत और त्रिवेंद्र रावत आयोग गठन के सवाल पर एक दूसरे के आमने सामने
Dehradun News: आधा दर्जन से अधिक पूर्व मुख्यमंत्रियों को समेटे उत्तराखंड में इन दिनों दो पूर्व मुख्यमंत्रियों में एक-दूसरे से चुटकियां लेने का सिलसिला शुरू है। फिलहाल मनोरंजन के स्तर पर बयानबाजियों की तीर छोड़ने वाले यह दोनो पूर्व मुख्यमंत्री रावत ही हैं, जो अपनी अपनी पार्टियों भाजपा और कांग्रेस से अलग अलग समय पर कुछ समय का मुख्यमंत्रित्व काल का सुख भोग चुके हैं। दोनों पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत की बयानबाजी पर बात करने से पहले बता दे कि उत्तराखंड में इन दिनों सात पूर्व मुख्यमंत्री हैं। इनमें भगतसिंह कोश्यारी महाराष्ट्र के राज्यपाल होने तो भुवनचंद्र खंडूरी अधिक उम्र के कारण चुप रहते हैं।
विजय बहुगुणा और रमेश पोखरियाल अपने दूसरे हित साधने में व्यस्त रहते हैं। तीरथ सिंह रावत अपने मुख्यमंत्रित्व काल में ही इतना बोल चुके हैं, जो अभी भी अविस्मरणीय दर्जे में आता है। ले-देकर अब हरीश रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत ही ऐसे पूर्व मुख्यमंत्री बचते हैं जो आए दिन किसी न किसी बहाने से खुद को चर्चाओं में रखने की कोशिश करते रहते हैं। ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने घपले और घोटाले का माइल स्टोन बन चुके उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अस्तित्व पर सवाल उठाए तो अपने कार्यकाल में आयोग की स्थापना करने वाले हरीश रावत ने दूसरे रावत से चुटकी लेनी शुरू कर दी।
ताजा किस्सा तब शुरू हुआ जब पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग बनाने की मंशा सही नहीं थी। ऐसी संस्थाओं की जरूरत नहीं है जो राज्य की साख को गिराने का काम करें।
जैसा की मालूम ही है कि यूकेएसएसएससी भर्ती परीक्षाओं में घपले ही घपले सामने आ रहे हैं। एसटीएफ अब तक परीक्षाओं में घपले के आरोप में आयोग के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व प्रमुख वन संरक्षक डा. आरबीएस रावत, पूर्व सचिव मनोहर कन्याल, परीक्षा नियंत्रक आरएस पोखरिया को गिरफ्तार कर चुकी है, वहीं पूर्व सचिव संतोष बडोनी को संस्पेंड किया जा चुका है। इसके साथ ही अभी तक एसटीएफ 44 से ज्यादा गिरफ्तारियां इस मामले में हो चुकी है।
इसी सब पर निशाना साधते हुए कहा था कि राज्य के प्रति जिनका समपर्ण हो, ऐसे लोग यदि किसी संस्था में जाएंगे तो ही वो संस्था ठीक चल सकती है। ऐसी संस्थाओं की कोई आवश्यकता नहीं जो राज्य की साख गिराने और व प्रतिष्ठा को समाप्त करने का काम करें।
त्रिवेंद्र के इस बयान को हरीश रावत ने अपने ऊपर हमला माना तो इसके पीछे इसकी वजह यह थी कि हरीश रावत सरकार में वर्ष 2014 में समूह ग की भर्तियों के लिए अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन किया गया था। ऐसे में हरीश का त्रिवेंद्र के लिए पलटवार आना ही था, जो की उनकी फेसबुक पोस्ट से आया भी। हरीश का तर्क है कि दरवाजे की चौखट सिर से टकराने पर पूरा घर नहीं तोड़ा जाता।
त्रिवेंद्र को निशाने पर रखते हुए हरीश रावत ने लिखा कि 'यारा बड़ी देर कर दी समझ आते-आते। 2017 में जब हमने जांच शुरू की थी, जब आपके मंत्री ने विधानसभा के पटल पर स्वीकार किया था कि गड़बड़ियां पाई गई है, जांच रिपोर्ट शासन को मिली है। यदि तब इतना गुस्सा दिखाया होता तो फिर धामी की धूम नहीं होती, रावतों की धूम होती। धन्य है उत्तराखंड, दरवाजे की चौखट पर सर टकराए तो घर ही गिरा दो। विधानसभा में भर्तियों में धांधलियां हुई तो विधानसभा भवन ही गिरा दो। संस्थाएं खड़ी की हैं, यदि संस्थाओं का दुरुपयोग हुआ है तो उसको रोकिए, दृढ़ कदम उठाइए, संस्थाएं तोड़ने से काम नहीं चलेगा। यदि हमने मेडिकल और उच्च शिक्षा का वॉक इन भर्ती बोर्ड नहीं बनाए होते तो आज डॉक्टर्स और उच्च शिक्षा में टीचर्स की भयंकर कमी होती। यदि गुस्सा दिखाना ही है तो अपनी पार्टी के लोगों को दिखाइए न, ये जितने घोटालेबाज अब तक प्रकाश में आए हैं इनका कोई न कोई संबंध भाजपा से है और विधानसभा भर्ती, यदि घोटाला है तो उसकी शुरुआत से लेकर के...कहां तक कहूं, तो गुस्सा सही दिशा की तरफ निकलना चाहिए। उत्तराखंड का संकल्प होना चाहिए कि जिन लोगों ने भी इन संस्थाओं में गड़बड़ियां की हैं, हम उनको ऐसा दंड देंगे कि कोई दूसरी बार गड़बड़ी करना तो अलग रहा, कोई भूल करने की भी गलती न करे।'