Begin typing your search above and press return to search.
उत्तराखंड

Dehradun News: कविताओं में भी गूंजने लगी हैलंग की गूंज, दो कवियों ने कविताओं में ढाली घसियारी महिलाओं की बेबसी

Janjwar Desk
22 July 2022 5:00 PM IST
Dehradun News: कविताओं में भी गूंजने लगी हैलंग की गूंज, दो कवियों ने कविताओं में ढाली घसियारी महिलाओं की बेबसी
x
Dehradun News, Dehradun Samachar: उत्तराखंड के चमोली जिले के एक छोटे से गांव हैलंग में घसियारी महिलाओ से पुलिस द्वारा घास के गट्ठर छीने जाने की घटना की चिंगारी ने पूरे उत्तराखंड का राजनैतिक पारा गरम कर दिया तो वहीं इस घटना के बाद अलग-अलग लोग अपने तरीके से इसके विरोध में हैं।

Dehradun News, Dehradun Samachar: उत्तराखंड के चमोली जिले के एक छोटे से गांव हैलंग में घसियारी महिलाओ से पुलिस द्वारा घास के गट्ठर छीने जाने की घटना की चिंगारी ने पूरे उत्तराखंड का राजनैतिक पारा गरम कर दिया तो वहीं इस घटना के बाद अलग-अलग लोग अपने तरीके से इसके विरोध में हैं। ऐसी सूरत में उत्तराखंड के दो युवकों ने पहाड़ की इन घसियारी महिलाओं के दर्द को कविता के माध्यम से उकेरने की कोशिश है। जनज्वार के हरिद्वार निवासी एक नियमित पाठक कमल कुमार ने अपनी काव्य रचना में राज्य के शहीदों व संघर्षरत पीढ़ी के संघर्षों को याद करते हुए जल-जंगल-जमीन पर स्थानीय लोगों के अधिकार को अपनी रचना के केंद्र में रखते हुए कविता जनज्वार को भेजते हुए कहा कि जनज्वार में हैलंग प्रकरण के बारे में पढ़ा। पढ़ा तो घंटो उसी पर सोचता रहा और अंत में यह उद्गार फूट पड़े। आपने जिस तरह से जानता के इस मुद्दे को उठाया और जनता के बीच पहुंचाया उसके लिए आपकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। आपसे निवेदन है कि इन पंक्तियों को भी पाठकों की आवाज़ के रूप में प्रकाशित करें। शायद, दून में बैठा कोई माननीय पढ़ ले और ज़मीर जग जाए।

घास !

सवाल घास का नहीं

सवाल ये है कि

किसका पहाड़ है ?

किसने बांह भरकर

बचाए जंगल जमीन

किसने पूज नदियां

ढूंढे देवता यहीं !

कौन थी टिंचरी

कौन गौरा-साहासिनी

कौन सुंदरलाल था

खुद ही हिमाल था

कौन लड़ गया वहां

कौन मर गया वहां

बह गया तिराहे पे

रक्त था पहाड़ का

कौन रौतेली थी

पूछ क्या क्या झेली थी

कौन सुमन श्रीदेव था

यातनाएं झेलता रहा

किसने दिया ये घर तुझे

देवों का ये दर तुझे

कृतघ्न फिर क्यों हुआ

बलिदान भूलता गया

बेच दी गाड़ सब

कौड़ियों में बिक गया

काट काट जंगलों को

कागजों में छक गया

मेरी नदी, मेरा शहर

फिर भी मैं ही डूबता

गांव खाली क्यों हुआ

बता सके तो ये बता ?

ले लिए गांव, जंगल और जमीन सब

काट डाले पेड़, पहाड़ ये हसीन सब

कहर टूटता है तो मुफलिस पे टूटता रहे

तू बैठ दून में एसी के मजे लूटता रहे

ठीक था ये तटबंध ना टूटता अगर

मेरी इजा के हाथ से घास न छूटता अगर

मगर वो रो रही है, रो रहे पहाड़ है

देख बद्री के सीने में दहक रहे आषाढ़ है

जब भूख मेरी, मौत मेरी और मेरी बाढ़ है

मुझे बता हुक्मराँ…ये किसका पहाड़ है ?

एक ओर कमल कुमार ने हिंदी में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है तो दूसरी ओर मूल रूप से चमोली जिले के थराली ब्लॉक सोल डूंगरी गांव के महेन्द्र राणा "आजाद" जो इन दिनों अपने पहाड़ से दूर सिडकुल में पलायन का दंश झेल रहे हैं, ने भी पहाड़ की महिलाओं की तकलीफों का "बताओ तो सरकार" शीर्षक से काव्यात्मक चित्रण किया है। गढ़वाली में लिखी इस कविता का आजाद ने जनज्वार के हिंदीभाषी पाठकों की सुविधा के लिए इसका हिंदी में भी अनुवाद किया है। जोशीमठ का हेलंग गौं मा घसेरी कु घास सिपे अर अधिकारी लोगोंन छीन दीनी, ये बुरा बकत मा जब जल-जंगल-जमीन से जनता कु अधिकार लगातार छीनी जाण्या च त सरकार से कुछ सवाल के बहाने आजाद ने घसियारी महिलाओं की भावनाओं को आवाज दी है।

भूका डंगरों का गिचा पर म्वोल कन के लगोंण

(भूखे जानवरों के मुँह पर मोहरी कैसे लगाऊं)

मिन अपणा गौड़ी-भैंसी, बल्द-बखरा कख चरौंण

(मैं अपने गाय-भैंस, बैल-बकरियां कहाँ चुगाउँ)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

पुरखों कु पौराई बणों मा कतक्या पीढ़ी पली गेनी

(पुरखों द्वारा संरक्षित वन में कितनी ही पीढ़ी पल गई)

अब किले मेरु घास तुमारा ख़्वारों मा पीडांण लेगी

(अब क्यों मेरा घास तुम्हारे दिमागों में चुभने लग गई)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

मि एक घस्यारी छौं, क्वि घुसपैठ नि करी मिन

(मैं एक घस्यारी हूँ, हम कोई घुसपैठ नहीं किये)

किले तुमारा पुलिस अर फ़ौजी मेरा पिछ्याड़ी पड़ गिन

(क्यों तुम्हारे पुलिस और फौजी मेरे पीछे पड़ गए)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

सरकारी जमीन पर जब कंपनी कु राज़ ह्वे जालू

(सरकारी जमीन पर जब कंपनी का राज़ हो जाएगा)

त क्या हम मन्ख्यूँ ते इनि बेदखल करी जालू

(तो क्या हम इंसानों को ऐसे ही बेदखल किया जाएगा)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

पर ये भी बतावा जब बिक जालू सेरू पहाड़

(और ये भी बताओ जब बिक जाएगा सारा पहाड़)

हम पहाड़ी रैवासियूँन बासा रौंण के गाड़

(हम पहाड़ी रहवासियों ने रात बितानी है किस गाड़)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

बतौ द ! हे सरकार ?

(बताओ तो ! हे सरकार ?)

Next Story

विविध