Value of Education : संतरा बेचकर शिक्षा की अलख जगाने वाले हरेकला हजब्बा को मिला देश का दूसरा सर्वोच्च सम्मान, पीएम से की गांव में कॉलेज खोलने की मांग
देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री से सम्मानित संतरा विक्रेता हरेकला हजब्बा।
नई दिल्ली। हरेकला हजब्बा ( Harekala Hajbba ) कर्नाटक ( Karnataka ) के हरेकला-न्यूपाडपु गांव के निवासी हैं। अपने जीवन में वो कभी स्कूल नहीं गए। वह पूरी तरह से अशिक्षित हैं। आजीविका के लिए उन्होंने मंगलूरु ( Mangaluru ) बस डिपों में संतरा बेचने का काम 1977 में शुरू किया। यानि 44 वर्षों से वह संतरा बेचते आए हैं। एक विदेशी यात्री के सवाल ने उनके जीवन के ध्येय को बदलकर रख दिया। अपने ध्येय को हासिल करने के लिए उन्होंने अपनी कमाई से गांव में एक स्कूल का निर्माण कर दिखाया। हालांकि, इस काम में उन्हें दो दशक से ज्यादा समय लग गया। वह वंचितों को शिक्षा देने के काम में पूरी तन्मयता से लगे हैं। एक दिन पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ( President Ramnath Kovind ) ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ( country second highest honor ) 'पद्म श्री' ( Padma Shri ) से सम्मानित कर उन्हें इस नेक कार्य का फल देने का काम किया।
इस सम्मान को पाकर हरेकला हजब्बा ( Harekala Hajbba ) बहुत खुश हैं। इतना बड़ा सम्मान पाने के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बड़ी अपील की है। उन्होंने पीएम से कहा है वो उनके गांव में एक प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज खोलने की अभिलाषा को कपूरी करने में मदद करें। अब देखना ये है कि आम लोगों की आवाज सुनने का दावा करने वाले पीएम मोदी उनकी अपील पर गौर फरमाते हैं या नहीं।
शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाना चाहते हैं हजब्बा
फिलहाल, 66 वर्षीय नारंगी विक्रेता ( Orange Vendor ) को मंगलुरु के हरेकला-न्यूपाडपु गांव में एक स्कूल का निर्माण कर ग्रामीण शिक्षा में क्रांति लाने के लिए यह पुरस्कार मिला है। स्कूल में वर्तमान में गांव के 175 वंचित छात्र हैं। श्री हजब्बा, जो 1977 से मंगलुरु बस डिपो में संतरा बेचते हैं, अनपढ़ हैं और कभी स्कूल नहीं गए। अपने गांव में शिक्षा में क्रांति लाने की इच्छा उनके मन में 1978 में तब आई जब एक विदेशी ने उनसे संतरे की कीमत पूछी।
आज भी है इस बात का मलाल
पद्म पुरस्कार विजेता ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि मैं, विदेशी टूरिस्ट के साथ संवाद नहीं कर सका। मुझे बुरा लगा और मैंने गांव में एक स्कूल बनाने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि मैं केवल कन्नड़ जानता हूं, अंग्रेजी या हिंदी नहीं। इसलिए मैं उदास था क्योंकि मैं विदेशी टूरिस्ट की मदद नहीं कर सका। मैंने अपने गांव में एक स्कूल बनाने के बारे में सोचा। स्कूल बनाने का उनका सपना दो दशक बाद ही साकार हो गया।
'अक्षरा सांता' के नाम से है लोकप्रिय
इसे पहले हजब्बा 'अक्षरा सांता' की उपाधि अपने परोपकारी कार्यों के माध्यम से अर्जित कर चुके हैं। यह उपाधि हासिल करने के बाद वह पूर्व विधायक दिवंगत यूटी फरीद से मिले थे। उनसे स्कूल निर्माण में सहयोग मांगा था। विधायक ने 2000 में स्कूल निर्माण को मंजूरी दी थी। उन्होंने स्कूल की शुरुआत 28 छात्रों के साथ शुरू किया था। अब कक्षा 10 तक 175 छात्रों को समायोजित करता है। इस काम के लिए विभिन्न पुरस्कार जीतने के बाद उससे प्राप्त पुरस्कार राशि का निवेश करना चाहते हैं।
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दानदाताओं का जताा आभार
मीडिया एजेंसी की ओर से यह पूछे जाने पर कि उनका अगला लक्ष्य क्या है? 66 वर्षीय हरेकला ने कहा कि मेरा लक्ष्य अपने गांव में और स्कूल और कॉलेज बनाना है। कई लोगों ने पैसे दान किए हैं। मैंने स्कूल और कॉलेज निर्माण के लिए जमीन खरीदने के लिए पुरस्कार राशि जमा की है। उन्होंने कहा, मैंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से अपने गांव में एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज का निर्माण करने का अनुरोध किया है। उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, सांसद नलिन कुमार कतील, जिला प्रभारी मंत्री कोटा श्रीनिवास पुजारी और विधायक यूटी खादर को उनके परोपकारी कार्यों को मान्यता देने के लिए आभार जताया।