राममंदिर विवाद में हिंदू पक्ष की कोर्ट में दलील, 'राम का जन्मस्थान ही है देवता'
(प्रतीकात्मक तस्वीर)
अयोध्या भूमि विवाद में हिंदू पक्ष के वकील ने दी कोर्ट में दलील, देवता सार्वजनिक पूजा के स्थानों में जमीन से निकलते हैं और जहां किसी देवता की कोई मूर्ति या तस्वीर नहीं है, लेकिन बड़ी संख्या में उपासकों द्वारा की जाती है पूजा...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
अयोध्या भूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के 35वें दिन मंगलवार 1 अक्टूबर को हिन्दू पक्ष के वरिष्ठ वकील के. परासरन ने कहा कि भागवत गीता में कहा गया है कि भगवान की पूजा अव्यक्त और साथ ही प्रकट, दोनों रूपों में हो सकती है, लेकिन मानवरहित रूप में पूजा करना मुश्किल है।
उन्होंने चिदंबरम मंदिर और केरल के एक अन्य मंदिर का हवाला देते हुए कहा, जहां देवता सार्वजनिक पूजा के स्थानों में जमीन से निकलते हैं और जहां किसी देवता की कोई मूर्ति या तस्वीर नहीं है, लेकिन बड़ी संख्या में उपासकों द्वारा 'पूजा' की जाती है।
इस बिंदु पर मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने आपत्ति जताई कि इनमें से प्रत्येक उदाहरण में एक मंदिर के रूप में एक अभिव्यक्ति है जो अयोध्या में नहीं है। परासरन ने जवाब दिया कि एक मंदिर सार्वजनिक पूजा का स्थान है, जहां लोग अपनी आस्था और भक्ति और इस विश्वास से प्रार्थना करते हैं कि इससे उनकी आध्यात्मिक और लाभकारी उन्नति होगी।
अनुच्छेद 25 के अनुसार, कोई भी हिंदू संस्था, जहां निराकार की भी पूजा होती है, ईश्वर होता है, वो एक मंदिर हो सकता है। नामकरण कोई मायने नहीं रखता। संविधान की कही गई बातों से कोई परिभाषा नहीं हट सकती। एक शब्द का अर्थ बदलते समय से है। उपासना और आस्था किसी पर भी निर्भर करती है और संस्था एक मंदिर है।
परासरन ने कहा कि एक मंदिर का निर्माण करना पर्याप्त है, यदि यह सार्वजनिक धार्मिक पूजा का स्थान है और यदि लोग इसकी धार्मिक प्रभावकारिता पर विश्वास करते हैं, तो इस तथ्य के बावजूद कि कोई मूर्ति या कोई संरचना नहीं है या अन्य विरोधाभास है। यह पर्याप्त है यदि भक्त हों या तीर्थयात्रियों को लगता है कि कुछ बड़ी मानव शक्ति है जिसकी उन्हें पूजा करनी चाहिए और इसके आशीर्वाद का आह्वान करना चाहिए।
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जस्टिस चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि देवता की विभिन्न अभिव्यक्तियों के लिए पूजा की पेशकश की जाती है, जो एक तालाब या यहां तक कि भूमि भी हो सकती है। इन स्थानों में से प्रत्येक जहां पूजा की पेशकश की जाती है तो क्या सब न्यायिक व्यक्ति बन जाते हैं या क्या वास्तव में केवल एक न्यायिक इकाई है, अगर लोग मानव रहित रूप में एक सर्वोच्च देवता के लिए प्रार्थना कर रहे है?
जस्टिस अशोक भूषण ने पूछा कि भगवान राम की आत्मा को, जन्मभूमि में और मूर्ति में, दोनों को जोड़ा गया है या ये केवल एक ही न्यायिक व्यक्ति हैं। इस पर परासरन ने कहा एक ही संस्था में कितने भी न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं। जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा, लेकिन हमेशा एक प्रमुख देवता होता है जिसके नाम पर एक मंदिर जाना जाता है। परासरन ने इस पर जवाब दिया कि एक देवता एक ही मंदिर में कई रूपों में खुद को प्रकट कर सकता है, लेकिन सभी अभिव्यक्तियों में अखंडता होती है। जैसे हम कहते हैं कि 2 या 3 न्यायाधीशों आदि द्वारा निर्णय होते हैं, लेकिन न्याय प्रशासन उच्चतम न्यायालय और न्याय के मंदिर के माध्यम से होता है ।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि पूजा की भौतिक जगह में एक दिव्य आत्मा की विभिन्न अभिव्यक्त़ियां हो सकती हैं, लेकिन न्यायिक व्यक्ति केवल एक ही हो सकता है। देवता भगवान राम की भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं और जन्मभूमि प्रकट होती है। सभी व्यक्तित्वों में न्यायिक व्यक्तित्व का उल्लेख नहीं किया जा सकता। जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा कि जैसे कई ट्रस्टी हो सकते हैं और कई निर्देशक, अभी भी न्यायिक व्यक्ति केवल एक हैं।
धवन ने कहा कि मेरा तर्क यह था कि एक विश्वास करना होगा, दूसरा इसे भौतिक रूप में प्रकट करना होगा और तीसरा इसकी पूजा का प्रमाण होना चाहिए, उनकी पूजा कहां से शुरू होती है? पूजा का प्रमाण सिर्फ यात्रियों से नहीं आ सकता है। इस पर परासरन ने कहा कि क्या भगवान की छवि बनी हुई है या क्या मूर्ति रखी गई है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। आध्यात्म व्यक्ति की आत्मा की अभिव्यक्ति से आता है ।
जस्टिस बोबडे ने कहा कि क्या आप इस तर्क को हर मंदिर में लागू करेंगे? इस तर्क को स्वीकार करने में कोई दोष होगा। परासरन ने इस पर टिप्पणी की कि हर केस के आधार पर मामले को देखा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति बोबड़े ने फिर टिप्पणी की किहमें आपके तर्क को लागू करने में सावधानी बरतनी चाहिए। आप कह रहे हैं कि भगवान राम के जन्म के कारण देवत्व जन्मभूमि के रूप में जाना जा सकता है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हमें इस मामले को तय करने में एक सिद्धांत प्रस्तुत करना होगा। क्या हम कह रहे हैं कि जन्मस्थान अपने आप में एक उच्च धार्मिक महत्व रखता है और यह एक न्यायिक व्यक्ति है? ऐसी जगहें हो सकती हैं जहां एक अविवाहित व्यक्ति जीवनसाथी के परिप्रेक्ष्य के लिए प्रार्थना करने जा सकता है या जहां एक निःसंतान दंपति जा सकता है, न केवल हिंदू धर्म में, बल्कि ईसाई धर्म में भी, क्या हम भक्त के दृष्टिकोण को देखते हैं, क्योंकि स्थान का अर्थ है उसके लिए सब कुछ? कितनी दूर तक कानून का जाल डाला जा सकता है?
परासरन ने इस पर कहा कि यह देखना होगा कि क्या यह काल्पनिक रूप पाया गया है।
जस्टिस भूषण ने पूछा कि रेखा कहाँ खींचनी है? कुछ बड़े व्यक्ति के अनुयायी कल कह सकते हैं कि उनका जन्मस्थान एक न्यायिक व्यक्ति है। कहिए, क्या साईं बाबा के जन्मस्थान को एक न्यायिक व्यक्ति माना जा सकता है।" परासरन ने कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय पहले ही ऐसा कह चुका है।
जस्टिस बोबडे ने पूछा कि हम नहीं जानते लेकिन जन्म स्थान का महत्व कुछ ज्योतिषीय गणना के कारण हो सकता है। परासरन ने बताया कि खगोलशास्त्र ने 50 और 100 साल पहले की घटनाओं की भविष्यवाणी कैसे की है तो मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने चुटकी ली कि क्या आप डॉ. धवन के लिए कुछ कहेंगे?
परासरन की दलील के बाद रामलला विराजमान की तरफ से ही सीएस वैद्यनाथन ने दलीलें रखी शुरू की। वैद्यनाथन ने कहा कि एक बार अगर ये साबित हो जाए कि भगवान राम उसी जगह पर पैदा हुए थे तब इस बात का कोई महत्व नहीं रह जाता कि वहां पर कोई मंदिर की मूर्ति स्थापित थी या नहीं।
वैद्यनाथन इसके साथ ही एएसआई की रिपोर्ट का भी जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट के आदेश के बाद दो अधिकारियों की निगरानी में एएसआई ने खुदाई का काम किया था यह अदा एसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठाना ठीक नहीं है। इतना ही नहीं किसी भी प्रत्यक्षदर्शी ने उस दौरान ईदगाह की बात नहीं कही थी। इस मामले की सुनवाई गुरुवार 3 अक्टूबर को जारी रहेगी।
वैधनाथन ने दलील दी कि मुस्लिम पक्ष एएसआई की रिपोर्ट पर सवाल उठा रहे हैं। वो दलील दे रहे हैं कि मस्जिद ईदगह पर बनी थी, मतलब वह मान रहे हैं कि मुग़लों ने वहां पर मस्जिद बनाने के लिए ईदगाह को गिराया था। वैद्यनाथन ने सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की याचिका का अंश पढ़ते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद सपाट ज़मीन पर बनाई गई थी, वहां पर कोई भी ईदगाह नहीं था। अब मुस्लिम पक्ष कह रहा है कि वहां पर ईदगाह थी।
वैधनाथन ने एएसआई की खुदाई में मिली दीवार के बारे में बताया जिस पर मुस्लिम पक्ष की तरफ़ से राजीव धवन और मीनाक्षी अरोड़ा ने आपत्ति जताई। राजीव धवन और मीनाक्षी अरोड़ा ने उच्चतम न्यायालय को नक्शे के जरिए ये साबित करने की कोशिश की कि जिस दीवार को एक कमरे की दीवार बता रहे हैं वो दलील गलत है।